एम्पावर्ड, इनफार्म्ड और इंगेज्ड- ये कुछ गुण हैं ई-पेशेंट्स के। बीते तीन-चार सालों के भीतर एक नई ऑनलाइन बिरादरी तेजी से बढ़ी है, जो किसी खास मेडिकल कंडीशन के बारे में जानकारियां इकट्ठी करने के लिए इंटरनेट खंगाल रही है। इन्होंने पेशेंट कम्युनिटीज भी बना रखी हैं, जिसमें वे एक-दूसरे की वर्चुअल मदद नॉन-प्रोफेशनल ढंग से करते हैं।
स्वास्थ्य से संबंधित ज्यादा से ज्यादा जानकारियां एकत्र करने के लिए मरीज अब सिर्फ चिकित्सकों पर निर्भर नहीं, बल्कि वे हेल्थ-कंज्यूमर के रूप में इंटरनेट की मदद ले रहे हैं। इंटरनेट कंज्यूमर्स की इस श्रेणी में मरीज खुद अपनी बीमारी के बारे में पढ़ रहा और चिकित्सक से इसकी चर्चा कर रहा है। इसके अलावा मरीज के दोस्त, परिचित, रिश्तेदार यानी ई-केयरगिवर भी इस श्रेणी में शामिल हैं, जो स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां इंटरनेट से ले रही हैं। कई तरह की बीमारियों की जानकारियां एक क्लिक पर उपलब्ध हैं और सपोर्ट ग्रुप भी बने हुए हैं। इसमें एडिक्शन, एड्स, एल्जाइमर्स, स्लीप डिसऑर्डर, डाइबिटीज और कैंसर से लेकर मानसिक स्वास्थ्य की विभिन्ना अवस्थाएं भी शामिल हैं।
इस तरह की ऑनलाइन हेल्थ रिसर्च से मुख्यतः दो तरह के बदलाव दिख रहे हैं, बेहतर स्वास्थ्यगत जानकारियां व सुविधाएं और चिकित्सकों के साथ अलग तरह का संबंध, हालांकि जरूरी नहीं कि ये संबंध सकारात्मक ही हों। कई चिकित्सक जानकार मरीज को सकारात्मक ढंग से लेते हैं और मानते हैं कि इससे वे डॉक्टर को अपनी तरह से सपोर्ट ही कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ चिकित्सक इससे इत्तेफाक नहीं रखते।
ऑनलाइन सपोर्ट
बीमारियों के अनुसार इनकी अलग-अलग कम्युनिटीज बनी हुई हैं। बीमारी की प्रकृति के अनुसार मरीज या केयरगिवर ही इन्हें बनाते हैं ताकि किसी खास मर्ज से जुड़ी नए शोध, फाइंडिंग्स या सुविधाओं की जानकारियों का आदान-प्रदान कर सकें। कम्युनिटी में लोग जुड़ते हैं और एक-दूसरे की मदद भी करते हैं। फिजिकल इलनेस के अलावा बहुत सी कम्युनिटीज मानसिक स्वास्थ्य पर भी केंद्रित हैं।
इसके फायदे
मरीज और केयरगिवर स्वीकार करते हैं कि ऑनलाइन हेल्थ कम्युनिटीज के कारण उनके स्वास्थ्य पर कई तरह से सकारात्मक असर हुआ है। इसमें सबसे बड़ा फायदा वे गिनाते हैं कि इंटरनेट की मदद से स्वास्थ्य के बारे में अपनी उत्सुकताएं वे शांत कर पा रहे हैं। खासकर ऐसी स्थिति में जब डॉक्टर्स मरीज को बहुत कम समय देते हैं, इंटरनेट और हेल्थ कम्युनिटीज में वे अपने बहुत से सवालों के जवाब ढूंढ पा रहे हैं।
एक्टिव हुए मरीज
यदि मरीज और उसका परिवार इंटरनेट फ्रैंडली हैं और साथ ही वे अस्पताल स्टाफ और प्रबंधन से भी उम्मीद करने लगे हैं कि वे भी नेट-फ्रैंडली हों। अस्पतालों की वेबसाइट का प्रबंधन देखकर भी ये ई-मरीज अपने लिए अस्पताल चुन रहे हैं। तकनीक के जरिए ऐसा होना एक मेडिकल क्रांति के रूप में भी देखा जा रहा है। पार्टिसिपेटरी मेडिसिन को मेडिकल केयर के खास मॉडल के रूप में तवज्जो दी रही है यानी इसमें मरीज की भूमिका पैसिव न होकर एक्टिव है। इसमें मरीज किसी रोग के ट्रीटमेंट को बेहतर और सफल बनाने में चिकित्सक की मदद करता है।
कनेक्शन बनाएं,मदद पाएं
ऑनलाइन सपोर्ट ग्रुप के जरिए किसी क्रॉनिक इलनेस से गुजर रहे मरीज आपस में अपनी समस्याएं और जानकारियां शेयर करते हैं। खासकर सोशल साइट्स पर ऐसी कम्युनिटीज की सफलता का अंदाजा इसमें शामिल हो रहे लोगों को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। इसकी मदद से मरीज अपने जैसे लोगों से बातचीत करते हुए खुद को बेहतर महसूस करता है। किसी खास हेल्थ कनसर्न को लेकर यह ग्रुप कोई भी बना सकता है। कई बार मरीज खुद के बारे में बात करते हुए नर्वस हो सकते हैं, ऐसे में शुरुआत सुनने से करें। धीरे-धीरे अपने अनुभव बांटे लेकिन याद रखें कि सपोर्ट ग्रुप किसी मेडिकल केयर का विकल्प नहीं है।
कुछ विशेष असर
१. बीमारी से इलाज से जुड़े निर्णय में चिकित्सक के साथ एक्टिव पार्टिसिपेशन
२. पढ़कर या दूसरे मरीजों के अनुभवों के आधार पर स्वास्थ्य की देखभाल
३. लक्षणों के आधार पर चिकित्सकों से सवाल और सेकंड ओपिनियन लेना
ऐसी कुछ कम्युनिटीज बनाने का आधार
-किसी बीमारी विशेष पर केंद्रित
-मरीजों पर केंद्रित
-बीमारी की खास अवस्था पर
-सपोर्ट ग्रुप्स पर आधारित
जुड़ने के फ़ायदे
ये न सिर्फ देश, बल्कि दुनियाभर में फैले होते हैं इसलिए इसमें एक ही बीमारी के सारे लक्षण, विविध अनुभव और विभिन्न चिकित्सकों के इलाज का विवरण ग्रुप में बांटते हैं। इसमें शामिल हुए मरीज जो पहले अपने अनुभवों की यूनीकनेस के कारण खुद को आइसोलेट महूसस करते हैं, वे अनुभवों का मिलान कर पाते हैं, जो उन्हें मनोवैज्ञानिक राहत देता है। समूह के चुनिंदा फायदों में अनुभव शेयर करना, एक-दूसरे को भावनात्मक सहारा देना, अकेलापन, तनाव और अवसाद कम होना, कोपिंग स्किल और सेंस ऑफ एडजस्टमेंट में बढ़ोत्तरी, इलाज के विकल्पों के बारे में प्रैक्टिकल सलाह मिलना और रिसोर्सेज, चिकित्सकों और अल्टरनेटिव विकल्पों की तुलनात्मक स्टडी का मौका आदि शामिल हैं।
ग्रुप ज्वाइन करने से पहले
हर ग्रुप के अपने फायदे और नुकसान हैं इसलिए किसी सपोर्ट ग्रुप से जुड़ते वक्त एडमिन से कुछ सवाल करें, जैसे-
१. क्या इसका कोई मीटिंग शेड्यूल है
२. क्या अनौपचारिक मुलाकात (वर्चुअल) संभव है
३. क्या ग्रुप से कोई प्रोफेशनल भी जुड़ा हुआ है
४. क्या ग्रुप की बातचीत गोपनीय है
५. क्या यह किसी खास सांस्कृतिक जरूरत को भी पूरा करता है
६. अपनी पर्सनल जानकारियां जैसे नाम, पता आदि यहां शेयर न करें
७. किसी उत्पाद या चिकित्सा के विज्ञापन से सावधान रहें
ऐसे खोजें सपोर्ट ग्रुपः
१. ग्रुप की खोज में चिकित्सक, नर्स, बीमारी पर काम कर रहे सोशल वर्कर या मनोवैज्ञानिक की मदद लें।
२. इंटरनेट, कोई हेल्थ-जर्नल खंगालें या कम्युनिटी सेंटर पर संपर्क करें।
३. दूसरों से बातचीत करके जानें कि कोई और इसी अवस्था में तो नहीं
४. रोग या उसकी किसी अवस्था पर काम कर रहे स्टेट या नेशनल ऑर्गेनाइजेशन की वेबसाइट देखें।
५. सामान्यतः चैट रूम, ब्लॉग या सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सपोर्ट ग्रुप्स की जानकारी मिल जाती है।
सपोर्ट ग्रुप के फ़ायदे
ई-मदद लेने वाले मरीज आमतौर पर जानते हैं कि हम क्या कह रहे हैं या मरीज किस हालत में है। ऐसे में उनका रवैया इलाज में सहयोग ही करता है। ऐसा कम ही मामलों में देखा गया है कि जानकारियों के साथ वे आक्रामक हो जाएं या चिकित्सक पर हावी होने का प्रयास करें। हालांकि कई बार ऐसा भी होता है कि वे पढ़कर खुद ही कोई इलाज सजेस्ट करने लगें, तब उन्हें कनविंस करना मुश्किल होता है। मरीज या केयरगिवर का सपोर्ट ग्रुप से जुड़ना बहुत ही फायदेमंद है। लांग-टर्म इलनेस में कई बार छोटी-छोटी बातों के लिए चिकित्सक से संपर्क कठिन होता है। ऐसे में सपोर्ट ग्रुप के अनुभवी सदस्य काफी मददगार साबित होते हैं(डॉ. राकेश शुक्ला,सेहत,नई दुनिया,जनवरी द्वितीयांक 2013)।
आपकी पोस्ट 31 - 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें ।
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बढ़िया उपयोगी जानकारी,,,,
जवाब देंहटाएंआपसे बात नही हो पा रही है मो० न० बदल गया है क्या ,,,,
recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
अच्छा कार्य है.
जवाब देंहटाएंसराहनीय पहल..... अच्छी जानकारी दी
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय कार्य! उम्मीद है, इससे कुछ फायदा हो ...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
अच्छी उपयोगी जानकारी
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन जानकारी है। इस तरह औनलाइन जानकारी से कई बार इलाज का सही पता भी चल जाता है। इस तरह कई तरह के फायदे हैं। खासतौर पर आजकल के मंहगाई के दौर में अगर दो पैसे की बचत भी हो जाती है तो काफी राहत मिलती है। कई ऐसी चीजें जिसके लिए डाक्टर के पास जाने की जरुरत नहीं होती उनका हल हो सकता है।
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