ऐसी बहुत सारी चीज़ें है जो विदेशियों को स्थानीय लोगों से अलग करती हैं. ये बात मुझे हमेशा कौतूहल में डालती है कि किसी स्थिति में खुद को ढालने या उससे बचे रहने का फ़ैसला लोग कैसे करते हैं. और शायद दुनिया इसी प्रश्न पर विभाजित भी है.
ये सही है कि कुछ विदेशी स्थानीय संस्कृति में ढलने से बचते हैं. मैंने अपनी यात्राओं के दौरान देखा है कि ब्रितानी और अमरीकी लोग तो स्थानीय संस्कृति में समा जाने के उद्देश्य से पहला क़दम तक नहीं उठाते.
और इस बात का सबसे बड़ा संकेत ये है कि ये लोग अंग्रेज़ी बोलने वाले हिस्से में भी ज़ोर-ज़ोर से बोलते हैं. शायद सिंद्धात ये है कि इससे लोग उन्हें बेहतर ढंग से समझ लेंगे.
और हां एक अन्य ब्रितानी बोझ जो इस ग्रह की बाक़ी प्राणियों पर लादा गया है वो है -अधेड़ मर्दों का दूसरों को सैंडल के साथ लंबे मौज़े पहनने पर मजबूर करना.
आह! और फिर वो खान-पान की आदतें.
मेरा मतलब आपने दिल्ली, रोम, मैक्सिको सिटी या सिडनी में कितने अमरीकियों को मैक्डोनाल्ड या केएफ़सी में देखा है? बहुतों को ना?
लेकिन मुझे ये कहना पड़ेगा कि ब्रिटेन आने वाला एक औसत भारतीय पर्यटक भारतीय रेस्तरां ही खोजता है और पब में भी उसे भारतीय व्यंजन ही चाहिए होते हैं.
व्यक्तिगत तौर में जिस जगह जाता हूं वहीं के खाने को अपना लेता हूं. और मुझे ये यात्रा का सबसे अच्छा पहलू लगता है. हां, इस आदत की वजह से आपकी प्लेट में नाइजीरिया में बैल के पैरों का शोरबा हो सकता है!
खुद को दूसरी जगहों के खान-पान में ढालने में सबसे बड़ा सहायक होता है खाना मूंह तक पहुंचाने के स्थानीय तरीके के इस्तेमाल से.
तो जनाब हाल के दिनों में मेरे सर पर रोटी तोड़ने की तकनीक में दक्ष होने का जुनून छाया है. क्योंकि भारत में लगभग हर विदेशी रोटी को दो हाथों से तोड़ता है, जैसे वो किसी कागज़ को फाड़ रहा हो.
मैं तो यही कहूंगा कि मुझे ये तरीका काफी भद्दा लगता है लेकिन हो सकता है कि मैं ग़लत होऊं.
बहरहाल मैं दिल्ली में अपने दफ़्तर के साथियों के खान-पान को देखता रहा हूं. और अब हम इस बारे में सार्वजनिक रूप से बात करते हैं. इसी के आधार पर मुझे लगता है कि रोटी एक हाथ से तोड़ने के कई तरीके हो सकते हैं.
तो बीते शुक्रवार मेरा सामना एक, दो और तीन उंगलियों से रोटी तोड़ने के तरीके से हुआ. और हां एक आधुनिक तरीके से भी जिसमें छोटी उंगली के रोटी में धंसा दिया जाता है.
अब बड़े ही सलीके से रोटी तोड़ने वाले एक सहयोगी का क़िस्सा. इनके बचपन की सबसे बड़ी टेंशन दरअसल रोटी तोड़ने का तरीका ही थी.
इन जनाब को रोटी तोड़ने के लिए दोनों हाथों का इस्तेमाल करना भाता था लेकिन इनके पिताश्री उन्हें एक हाथ से रोटी तोड़ने वाला बनाने के प्रति दृढ़संकल्प थे.
अब मैं कुछ ज्यादा ही जुनूनी दिख रहा होउंग लेकिन मुझे सलीके से, एक दुरुस्त आकार में तोड़ी गई रोटी देखना बहुत अच्छा लगता है.
और मैं अब इसी की खोज में हूं - मैं रोटी को बेहतरीन ढंग से तोड़ने की किसी भी तकनीक या टिप का स्वीकार करने के लिए तैयार बैठा हूं.
तो क्या है आपकी रोटी तोड़ने की बेहतरीन तकनीक?(नील करी,बीबीसी,29.11.12)
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में दोनो हाथ से रोटी तोड़ना असभ्यता का परिचायक माना जाता है। सबसे प्रचलित तरीका है दाहिने हाथ के अंगूठे के सहयोग से तर्जनी और मध्यमा का प्रयोग करते हुये रोटी को तोड़ना। जहाँ तर्जनी अंगुली रोटी को दबाकर अपने स्थान पर बनाये रखने कार्य करती है वहीं अंगूठा और मध्यमा अंगुली रोटी को पकड़कर खीचते हुये तोड़ने का काम करते हैं।
जवाब देंहटाएंबचपन से लोगो की जैसी आदत पड़ जाती है,वैसे ही रोटी तोड़ते है,कई लोगों को बांये हाथ से खाना खाते देखा है,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: मातृभूमि,
वाकई विदेशी दोनों हाथों से रोटी तोड़ते हैं (वे हमारी तरह दमदार नहीं होते न....)
जवाब देंहटाएंहम तो आम तरीके से याने जैसे कौशलेन्द्र जी ने बताया वैसे तोड़ते हैं...पूरे सलीके के साथ :-)
जिससे पूरा खाना खाने के बाद भी सिर्फ तीन उंगलियाँ ही जूठी हों.
सादर
अनु
हाँ, रोटी तो तीन अँगुलियों से ही तोड़ना अच्छा लगता है.
जवाब देंहटाएंपुराना तरीका ही अपनाते हैं>.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरोटी खाएं मुफ्त की, मुँह में लगी हराम ।
हटाएंरोटी तोड़ें बाप की, है नहिं दूजा काम ।
है नहिं दूजा काम, रोज फ़ोकट में तोड़ें ।
बाप रहा फटकार, कहे माँ ठूस निगोड़े ।
भाई राधा-रमण, हमारी किस्मत खोटी ।
चार्वाक प्रभु -शरण, खिलाता रह तू रोटी ।।
बहुत रोचक...वैसे कौशलेन्द्र जी द्वारा बताया गया तरीका ही सही है...
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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जवाब देंहटाएंनील करि जी तक यहां कि टिप्पणियां पहुंच जाए तो भारतीय तरीके से रोटी तोड़ना सीखने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
जवाब देंहटाएंraman ji, pata nahi kaise aapke blog par meri tippani gyab ho rahi hai ...
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