एक नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का आधा भोजन यूं ही बर्बाद चला जाता है. अक्सर उपभोक्ता खाने को फेंकने से पहले ये नहीं देखते हैं कि खाना खराब हुआ है या नहीं बल्कि वे इस्तेमाल करने की अंतिम तिथि देखने के बाद इसे फेंक देते हैं.
लेकिन क्या ऐसा करने से पहले खाने को सूंघा नहीं जाना चाहिए?
"समस्या ये है कि छोटे लेकिन ख़तरनाक रोगाणुओं की मौजूदगी का पता केवल सूंघने से नहीं लगाया जा सकता है. याद रखिए कि जीवाणु अच्छे और बुरे दोनों तरह के हो सकते हैं. खासकर योगर्ट और चीज़ में अच्छे जीवाणु होते हैं जबकि ई. कोली, साल्मोनेला, बोट्यूलिज्म और क्लोस्ट्रिडियम जैसे जीवाणु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं"
अक्सर लोग खाद्य पदार्थों को फेंकने के लिए उन पर लगे अंतिम तिथि के लेबलों को देखते हैं.
ब्रिटेन की खाद्य मानक एजेंसी के दिशानिर्देशों के मुताबिक इस्तेमाल करने की अंतिम तिथि का मतलब उपभोक्ताओं को सुरक्षा के बजाए गुणवत्ता की अधिक जानकारी देना है. इसका मतलब है कि खाने की कोई ची़ज़ कब अपना स्वाद खोना शुरु करेगी लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि अमुक भोज्य पदार्थ अब खाने के लायक नहीं रहा.
अंडे भी नहीं हैं अपवाद
अंडे भी कोई अपवाद नहीं हैं. अंडों के सेवन की नियत तिथि से एक या दो दिन के बाद भी खाया जा सकता है बशर्ते कि उन्हें अच्छी तरह पकाया गया हो. अंडे में अगर साल्मोनेला विषाणु मौजूद है तो उसका सेवन आपको बीमार कर सकता है.
इस्तेमाल की नियत तिथि ऐसे खाद्य पदार्थों पर लागू होती है जो जल्दी खराब हो जाते हैं जैसे मांस उत्पाद. ये ऐसे भोज्य पदार्थ हैं जिनका नियत समय के बाद सेवन आपके स्वास्थ्य को मुश्किल में डाल सकता है.
लेकिन क्या सूंघने से खाने की बर्बादी कम की जा सकती है?
खाद्य विशेषज्ञ स्टीफेन गेट्स के मुताबिक खाद्य पदार्थों विशेषकर मांस से आ रही तीक्ष्ण बदबू का मतलब है कि इसे तुरंत फेंक देना चाहिए लेकिन वास्तविकता ये है कि केवल सूंघकर आप निश्चत रूप से नहीं कह सकते कि अमु्क खाद्य पदार्थ खाने लायक है या नहीं.
भोजन में होते हैं फायदेमंद जीवाणु भी
उन्होंने कहा, “समस्या ये है कि छोटे लेकिन ख़तरनाक रोगाणुओं की मौजूदगी का पता केवल सूंघने से नहीं लगाया जा सकता है. याद रखिए कि जीवाणु अच्छे और बुरे दोनों तरह के हो सकते हैं. खासकर योगर्ट और चीज़ में अच्छे जीवाणु होते हैं जबकि ई. कोली, साल्मोनेला, बोट्यूलिज्म और क्लोस्ट्रिडियम जैसे जीवाणु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.”
उन्होंने कहा, “ऐसे जीवाणुओं पर काम करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि इनमें से कुछ की बदबू अलग तरह की होती है लेकिन ये तभी होता है जब वे एक निश्चित मात्रा में होते हैं और संभवतया इसमें दूसरे कारक भी शामिल होते हैं.”
गेट्स खासकर मांस जैसे खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल के मामले में नियत तिथि पर चलने की वकालत करते हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि यह फार्मूला सब्जियों के मामले में ज्यादा कारगर नहीं है क्योंकि कम हानिकारक जीवाणु होते हैं.
उन्होंने कहा कि लोग खासकर बच्चे खाना बनाने में ज्यादा दिलचस्पी लें तो उन्हें इस बारे में ज्यादा जानकारी मिलेगी और इस तरह खाने की बर्बादी को कम किया जा सकता है.
मैनचेस्टर खाद्य शोध केन्द्र में खाद्य विज्ञान के प्रोफेसर क्रिस स्मिथ भी इस बात से सहमत हैं कि इस मामले में जानकारी ही सबसे अहम है.
उन्होंने कहा कि उपभोक्ताओं का नियत तिथि पर निर्भर होने की सबसे बड़ी वजह ये है कि वे अब इस बात को नहीं जानते हैं कि कोई खाद्य पदार्थ कब खाने के लायक नहीं रहता.
स्मिथ ने कहा, “1960 के दशक में लोग बूचड़ के पास जाते थे और उससे पूछते थे कि मांस कितना ताज़ा है. सर्वोत्तम गोमांस को 21-28 दिन तक लटका रहता था और उसके बाद ही उसका सेवन किया जाता था. लेकिन अब सबकुछ पहले के ही डिब्बाबंद रहता है और लोगों के पास सूंघने का वो अनुभव नहीं रह गया है.”
उन्होंने कहा “जब तक हम सूंघकर किसी भोज्य पदार्थ की असली स्थिति का पता लगाने की क्षमता को दोबारा हासिल नहीं करते हैं तब तक हमें नियत तिथि जैसी मौजूदा व्यवस्थाओं पर ही निर्भर रहना पड़ेगा.”
विशेषज्ञों की सलाह मानें तो रूक सकती है भोजन की बर्बादी
सूंघना कुछ ही मामलों में है कारगर
वो कहते हैं कि सूंघकर ये पता लगाने के लिए कि डिब्बाबंद मांस खाने के लिए सुरक्षित है या नहीं, डिब्बा खोलना पड़ेगा और कमरे के तापमान पर 30 मिनट के लिए खोलकर रखना पड़ेगा.
लेकिन उन्होंने साथ ही कहा कि सूंघकर भोजन के सेवन के लिए सुरक्षित होने का पता लगाना कुछ परिस्थितियों में मददगार हो सकता है लेकिन अन्य मामलों में ये इतना आसान नहीं है.
स्मिथ ने कहा “गंध वाले चीज़ जैसे स्टिंकिंग बिशप का पता सूंघकर नहीं लगाया जा सकता है. कई मामलों में तो खाद्य पदार्थों के तभी खाया जाता है जब वे खराब होना शुरू होते हैं.
कई लोग तीतर को खाने से पहले उसे कई दिनों तक लटकाकर रखते हैं.”
उन्होंने कहा “अन्य मामलों में सूंघना उतना कारगर नहीं होता है. ब्रेड पर दुर्गंध आने से पहले ही फंफूद लगना शुरू हो जाता है. ऐसे में सूंघने के बजाए देखकर खाना ही ज्यादा कारगर है.”
तो पाककला के शौकीनों के लिए सूंघकर खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता का पता लगाना एक अतिरिक्त विकल्प हो सकता है लेकिन सबसे सुरक्षित सलाह यही है कि नियत तिथि की व्यवस्था पर ही चलें(बीबीसी डॉटकॉम,15.1.13).
जी-
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति ||
आभार-
अन्न को बचाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
जवाब देंहटाएंसार्थक सटीक जानकारी के लिए आभार,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: मातृभूमि,
nice.
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट की चर्चा 17-01-2013 के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत करवाएं
ध्यान देने योग्य बातें ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास दामिनी की मूक शहादत
जवाब देंहटाएंआप भी जाने @ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .
अच्छी जानकारी .... खाद्य पदार्थ बचा सकें तो बचाने चाहिए ।
जवाब देंहटाएंमगर भारत में अधिकतर शाकाहारी लोग हैं। शाकाहारी लोगो का मूलमंत्र होता है कि खाना बना कर रखा नहीं जाना चाहिए और ताजा ही खाना चाहिए। श्री श्री रविशंकर जी कहते हैं कि घरों से फ्रिज हटा दिया जाए तो आधी बीमारियों से छुटाकार मिल जाएगा। साथ ही देश में भूखमरी भी घट जाएगी। कहते तो बेहतर हैं..पर आज की जीवनशैली में फ्रिज का ना होना मुश्किल है। हम जैसे जिनके यहां फ्रिज महज कुछ साल पहले आया क्योंकि कुछ खाना बचता ही नहीं था, वहां आधुनिक जीवन शैली से होने वाली बीमारी न के बराबर रही।
जवाब देंहटाएंसूंघने की क्षमता भारत में अब भी बेहतर है अगर उपरोक्त रिपोर्ट को देखें, क्योंकि डिब्बाबंद खाना कम ही उपयोग होता है अब भी। हां फ्रिज में ऱखा खाना तीन-चार दिन तक चलाने की आदत से निजात पाना जरुरी है।
यानि शाकाहार हो मांसाहार भोजन ताजा ही करना चाहिए.....ये हमारा खानपान का नियम है...जिसे हम वैसे जानते हैं और अब भूलने के बाद विदेशी रिसर्च से जान रहे हैं। जय हिंद
मांसाहार औऱ शाकाही
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जवाब देंहटाएंजानने योग्य बाते हैं |
जवाब देंहटाएंआशा
सार्थक और सटीक!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
खाद्य-पदार्थों की बर्बादी रोकना बहुत बड़ा काम है !
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