सूंघने की क्षमता आंशिक या पूरी तरह से खत्म होना एनॉस्मिया है। इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव मरीज की डाइट पर पड़ता है। खाने की खुशबू न ले पाने के कारण वे सेंस ऑफ टेस्ट भी खो देते हैं। कई बार एनॉस्मिया के कारण मरीज के सामने गंभीर हालात भी खड़े हो जाते हैं, जब गैस रिसने या इस तरह की स्थिति का मरीज को आभास भी नहीं हो पाता।
हर खुशबू कुछ कहती है, तभी तो किसी खास खुशबू से हम किसी खास व्यक्ति या मौके को जोड़ पाते हैं। बहुत से लोग खुशबू से ही हांडी में पकती सब्जी का नाम बता देते हैं। कई बार सूंघ सकने की यही क्षमता खत्म हो जाती है। ऐसे में जल्दी ही मरीज की खाने-पीने में रुचि घट जाती है, जिसका गंभीर असर सेहत पर पड़ता है। कई केसेज में सेंस ऑफ स्मेल खत्म होने के कारण मरीज को अवसादग्रस्त होता भी देखा गया है।
एनॉस्मिया के कारण
सूंघने की क्षमता का संबंध ऑलफैक्टरी नर्व से होता है, जो नाक और मस्तिष्क से जुड़ी होती है। कोई भी गंध नाक से होकर मस्तिष्क तक जाती है। ऐसे में इस नर्व पर किसी भी तरह की चोट, सिर में चोट, केमिकल इंडस्ट्री में लंबे समय तक काम, फ्लू, साइनस इंफेक्शन, नाक का ट्यूमर, ड्रग्स लेना, कुछ खास तरह की दवाइयां और कीमोथैरेपी जैसे कई कारणों से गंध का अनुभव करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। यह कई तरह की होती है। जैसे सेंस ऑफ स्मेल आंशिक तौर पर घटने को हाइपॉस्मिया कहते हैं। कुछ लोग किसी खास गंध को महसूस नहीं कर पाते, जिसे स्पेसिफिक एनॉस्मिया कहते हैं और यह कंडीशन प्रायः आनुवंशिक होती है।
क्या है नुकसान
एनॉस्मिया के मरीज खाने को नमकीन, मीठा, खट्टा या कड़वा तो महसूस कर पाते हैं लेकिन उसका फ्लेवर नहीं समझ पाते। इसका सीधा असर डाइट कम होने के रूप में दिखता है। मरीज कई बार घबरा भी जाते हैं और मानसिक परेशानियों से घिर जाते हैं। एनॉस्मिया से प्रभावित व्यक्ति गंध महसूस न कर पाने के कारण कई बार किसी गंभीर परेशानी में भी पड़ जाते हैं जैसे गैस लीकेज या बारूद आदि की गंध महसूस न कर पाना।
इसके लक्षण
इसकी पहचान का सबसे सीधा तरीका है गंध का अनुभव कर पाने की क्षमता में कोई बदलाव दिखना यानी घटना या खत्म होना। इसके अलावा कई बार अल्टर्ड सेंस ऑफ स्मेल जैसे केस भी होते हैं, जिसमें तेज गंध में लगातार रहने वाला व्यक्ति उस स्पेसिफिक गंध को अनुभव करने की क्षमता खो देता है। लक्षणों के आधार पर इसकी पहचान की जा सकती है. कई बार एमआरआई और सीटी स्कैन की जरूरत भी होती है।
सुंदर, सुगंधित और स्वादिष्ट
१. प्रिपरेशन के दौरान खाने में कई तरह के रंग वाली सब्जियां आदि शामिल करें ताकि खाना आकर्षक लगे।
२. खाने में हींग या दूसरे मसालों के तड़के से उसकी सुगंध बढ़ाई जा सकती है।
३. मरीज कांबीनेशन फूड अवॉइड करे क्योंकि अक्सर इससे रंग और फ्लेवर बदल जाता है।
कीमो से संबंध
कैंसर में रैपिड ग्रोइंग सेल्स को नष्ट करने के लिए कीमोथैरेपी दी जाती है। ऐसे में नाक की सेल्स और स्वाद-ग्रंथियां भी लगभग ७० प्रतिशत नष्ट हो जाती हैं, इस वजह से स्मेल और टेस्ट लॉस की समस्या मरीज के सामने आती है। यह स्थिति बहुत से मरीजों के लिए मानसिक प्रताड़ना की तरह होती है इसलिए कई बार इससे निबटने के लिए हम मरीज की काउंसलिंग करते हैं। उसके लिए खास डाइट प्लान करते हैं ताकि शरीर में प्रोटीन की कमी न हो। साथ ही तेज गंध वाला भोजन करने की सलाह देते हैं जैसे हींग की बघार आदि(डॉ. श्याम जी रावत,सेहत,नई दुनिया,जनवरी 2013 प्रथमांक)।
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जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंहमारी मम्मी को ये समस्या हुई थी कुछ वर्षों पहले ! फिर कुछ समय रहने के बाद ठीक भी हो गयी! उन्हें भी साइनस की प्रॉब्लम थी, जो कि अभी भी है ! अब उन्हें कभी महक आती है, कभी नहीं भी आती ...
~सादर !!!
अमन की आशा या अमन का तमाशा - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छी और काम की जानकारी
जवाब देंहटाएंजानकारी देती उपयोगी प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
बहुत उपयोगी जानकारी...आभार
जवाब देंहटाएंचलो पता चला कि नाक की हड़ताल का असर क्या होता है। कमबख्त हड़लात सब कुच बंद कर देती है। काश ये हड़ताल बंद हो जाए हमेशा के लिए। कम से कम समाज में।
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