हेल्दी ईटिंग की आदत कई बार अनजाने ही ईटिंग डिसऑर्डर में बदल जाती है, जिसका परिणाम शारीरिक और मानसिक परेशानी के रूप में दिखाई देता है। ध्यान रखें कि कहीं आप ऑबसेस्ड तो नहीं हो रहे।
बीते कुछ सालों में खानपान की आदतों में काफी बदलाव आया है। लोगों में बढ़ी हुई अवेयरनेस उन्हें जंक फूड छोड़कर संतुलित डायट की ओर ले जा रही है। वहीं इसी दिशा में एक्सट्रीम तक जाने वाले लोग भी हैं, जो अतिवाद के कारण कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। कुछ लोग फलाहार, वेगनिज्म आदि को इस हद तक फॉलो कर रहे हैं कि शरीर कई पोषक तत्वों से भी वंचित रह जाए। वहीं कुछ लोग खाकर उसे बाहर निकालने के लिए अजीबोगरीब तरीके फॉलो कर रहे हैं। इस श्रेणी के कुछ डिसऑर्डर्स-
एनोरेक्जिया
एनोरेक्जिया या एनोरेक्जिया नर्वोसा एक तरह की मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति वज़न बढ़ने के डर से खाने को भूखे रहने की हद तक कंट्रोल कर लेता है। अधिकतर इससे महिलाएं प्रभावित होती हैं, जिसमें टीनएज लड़िकयों से लेकर ३० पार की महिलाएं भी शामिल हैं। इसका कोई एक कारण नहीं है। नेशनल वीमन्स हेल्थ इंफॉर्मेशन सेंटर के अनुसार हॉर्मोनल बदलाव के अलावा सोशल और इमोशनल फैक्टर्स भी इसके पीछे हैं। स्लिम यानी ब्यूटीफुल की छवि पाने की कोशिश में इसे अनजाने ही अपनाते किशोरवय बच्चे पेरेंट्स के सामने भी इसे स्वीकारते हुए कतराते हैं। उन्हें जोर-जर्बदस्ती से कुछ खिलाने की बजाए उन्हें इस स्थिति से अवगत कराने की कोशिश करना कारगर हो सकता है। वहीं महिलाएं खुद अपनी स्थिति को देखने की कोशिश करें और अपने किसी करीबी से समस्या की चर्चा करें।
बुलीमिया नर्वोसा
यह गंभीर ईटिंग डिसऑर्डर है, जिसमें व्यक्ति अधिकतर समय खाने की आदतों पर कंट्रोल नहीं कर पाता लेकिन ज्यादा खाने के बाद उल्टी करने से लेकर, व्रत, लैक्सटिव, डाययुरेटिक और यहां तक कि बहुत ज्यादा व्यायाम करता है ताकि वजन न बढ़े। वे अपने एपीयरेंस को लेकर अतिसंवेदनशील होते हैं लेकिन स्किनी दिखने की चाह उन्हें तनावग्रस्त कर देती है। ये एनोरेक्जिया से अलग है, जहां व्यक्ति भूखे रहने लगता है। बुलीमिया में ज्यादा खाकर उसे शरीर के भीतर न रहने देने की कोशिश होती है। चूंकि समस्याग्रस्त व्यक्ति सबके सामने अच्छी तरह से खाता है और उसे पेट में न रहने देने की क्रिया छिपकर करता है इसलिए समस्या तब तक पकड़ में नहीं आती, जब तक कि कोई गंभीर परेशानी न हो जाए।
ऑर्थोरेक्जिया नर्वोसा
यह सबसे अनोखी समस्या है, जो हाल में बढ़ी है। इसमें व्यक्ति खाने की क्वांटिटी पर नहीं , बल्कि खाने की क्वालिटी पर ओवर-फोकस्ड रहने लगता है। संतुलित खाने के प्रति किसी का इतना संवेदनशील हो जाना कि कुछ खास तरह की चीजें खाना संतुलन को ग़लत तरह से प्रभावित करने लगता है। ऐसे लोग क्रमशः खाने को कुछ खास चीजों तक ही लिमिटेड करते जाते हैं और "राइट फूड" के लिए इतने संवेदनशील हो जाते हैं कि हर व्यक्ति की आलोचना करने लगते हैं, जो उन-सा न हो। इनका सामाजिक दायरा भी बहुत छोटा होता है क्योंकि खाने की लिमिटेड पसंद इन्हें कई बार भूखा भी रखने लगती है।
ये हैं नुकसान
ईटिंग डिसऑर्डर से कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। गौरतलब है कि ऐसे डिसऑर्डर्स की आशंका मिडिल और उच्च वर्ग को ही होती है क्योंकि कई बार ये अपीयरेंस के लिए अति-संवेदनशील होते हैं। चूंकि किशोरियां सबसे ज्यादा वल्नरेबल होती हैं, इसलिए ये डिसऑर्डर उनके विकास को प्रभावित करते हैं। इनसे एनीमिया, थॉयरॉइड असंतुलन, लो ब्लडप्रेशर, हड्डियां और बाल-नाखून कमज़ोर होना, जोड़ों में सूजन से लेकर फेटल समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि पेरेंट्स बच्चों को विश्वास में लें और उनमें अपीयरेंस को लेकर आत्मविश्वास की कमी न आने न दें। लंबे समय तक पकड़ में न आने पर बढ़ती उम्र के बच्चों में इससे बहुत सी परेशानियां पैदा हो सकती हैं इसलिए डायग्नोस होना उपचार की दिशा में पहला कदम है(सेहत,नई दुनिया,नवम्बर द्वितीयांक 2012)
सार्थक रचना ! उपयोगी जानकारी देने के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं~सादर !
बहुत अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 27/11/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका चर्चा मंच पर स्वागत है!
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी है
जवाब देंहटाएंआभार...