बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

इलाज़ की क़ीमत

गनीमत है कि सुधारों की दूसरी लहर देश के हेल्थकेयर सेक्टर तक भी पहुंचनी शुरू हो गई है। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (डीजीएचएस) के एक बयान पर यकीन करें तो आने वाले दिनों में प्राइवेट अस्पतालों को अपनी चिकित्सा सेवाओं की कीमत तय करके बाकायदा उन्हें अपने परिसर में बोर्ड पर प्रदर्शित करना होगा। अभी तो हालत यह है कि नामी-गिरामी अस्पताल अपने मरीज से या उसके रिश्तेदारों से जितना भी मांग लें उतना उन्हें देना पड़ता है। किस बीमारी में वे कितने और कौन-कौन से टेस्ट करा डालेंगे, इसका कोई ठिकाना नहीं है। बाजार में जिस दवा का जेनेरिक वर्जन तीन रुपए में मिलता है, उसकी कीमत अस्पताल के बिल में 300, बल्कि 3 हजार रुपए भी दर्ज पाई जा सकती है। 

यह सब भारत के चिकित्सा क्षेत्र में पहले दौर के रिफॉर्म की उपज है, जिसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं को बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र में लाया गया था। अलबत्ता इसकी गड़बडि़यां गिनाते वक्त इसके फायदों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। प्राइवेट हेल्थकेयर चेन्स के अस्तित्व में आने के बाद से कई बीमारियों को लाइलाज मानने का सिलसिला खत्म हो गया है। सुपर स्पेशलिटी एक्सपर्टाइज का लाभ अब गिने-चुने लोगों तक सीमित नहीं रह गया है, क्योंकि अपनी विशेषज्ञता की कदर देखकर ऊंचे पाए के ज्यादातर भारतीय डॉक्टर अब भारत में ही रहना पसंद करते हैं। टू-टियर शहरों में गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर का इलाज और एमआरआई जैसी डायग्नोस्टिक सुविधाओं की कल्पना भी अभी 10-15 साल पहले तक नहीं की जाती थी। लेकिन अब थ्री-टियर शहरों में भी इनमें से ज्यादातर सेवाएं उपलब्ध हैं।

हेल्थकेयर सेक्टर की आलोचना का मकसद उसकी इन उपलब्धियों की आलोचना करना या उन पुराने दिनों का गुणगान करना नहीं है, जब असाध्य बीमारियों के शिकार मरीज अपने ऑपरेशन के लिए सरकारी डॉक्टरों की हड़ताल खत्म होने का इंतजार करते थे। दरअसल, किसी भी व्यवस्था की गड़बड़ी वहां से शुरू होती है, जब उसे चलाने वाले लोग खुद को खुदमुख्तार समझने लगते हैं और कानून के डर या नैतिकता की बाधा को अपने लिए पूरी तरह बेमानी मान बैठते हैं। उम्मीद करें कि केंदीय स्वास्थ्य मंत्रालय और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की नई पहल के बाद यह गलती सुधार ली जाएगी। दरअसल, भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को ठीक उसी तरह एक नियामक मेकेनिज्म या रेगुलेटिंग एजेंसी के तहत लाने की जरूरत है, जैसे टेलिकॉम सेवाओं को ट्राई और उड्डयन सेवाओं को एएआई के तहत लाया गया है। हेल्थकेयर सेक्टर के जिम्मेदार लोगों को लेकर एक ऐसी संस्था बनाई जानी चाहिए, जो सरकारी और निजी, हर तरह की स्वास्थ्य सेवाओं पर, उनकी कीमतों, नीचे तक उनके फैलाव और उनकी सहज उपलब्धता पर नजर रखे। देश के सबसे गरीब आदमी को इनसे लाभान्वित करने का मामला इससे आगे का है, हालांकि यथास्थिति बनाए रखने के लिए सबसे ज्यादा हवाला उसी का दिया जाता है(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,9.10.12)।

7 टिप्‍पणियां:

  1. गनीमत है कि सुधारों की दूसरी लहर देश के हेल्थकेयर सेक्टर तक भी पहुंचनी शुरू हो गई है।
    बिल्‍कुल सही कहा आपने ...

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  2. वैसे अभी यह सिर्फ एक छोटी शुरुआत है ... काफी समय लगेगा ... देश के हर एक नागरिक तक इन सब का लाभ पहुंचाने मे !


    विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर देश के नेताओं के लिए दुआ कीजिये - ब्लॉग बुलेटिन आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम देश के नेताओं के लिए दुआ करते है ... आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  3. फायदा है तो नुकसान बी है ेक ही सिक्के के दो पहलू । पर फायदे ज्यादा हैं तो नुकसान कम किये जा सकते हैं ।

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  4. कुछ आशा की किरण तो दिखाई दी कमसे कम वर्ना इस और तो किसी का ध्यान ही नहीं था गरीब लोगों की बड़ी बिमारी का इलाज तो संभव ही नहीं है आज के दौर में

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  5. बाजार में जिस दवा का जेनेरिक वर्जन तीन रुपए में मिलता है, उसकी कीमत अस्पताल के बिल में 300, बल्कि 3 हजार रुपए भी दर्ज पाई जा सकती है।
    यह बिलकुल सच है

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  6. ये महानिदेशक ह्दय शल्य चिकित्सक भी हैं। जिस समय बाईपास सर्जरी दो लाख रुपए से कम में नहीं होती थी उस समय इन्होंने सफदरजंग अस्पताल में इसका रेट 30 हजार रुपए करवा दिया था। जाहिर है कि अगर चिकित्सा सेवा से जुड़े लोग इस तरह काम करते रहें तो काफी पहले ही इलाज सस्ता हो जाता। एक बात औऱ है कि प्राइवेट अस्पताल हर अच्छी शुरुआत को बेकार करने में भी विशेषज्ञ हैं।

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  7. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में ऐसे ही सद्बुद्धि बनी रहे !

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