गुरुवार, 27 सितंबर 2012

काश,बर्फी के कानों की जांच हुई होती !

आज टाइम्स ऑफ इंडिया में मुंबई से छपी एक रिपोर्ट कहती है कि इस बारे में अभी निश्चित रूप से भले कुछ न कहा गया हो कि मोबाइल फोन का बहरेपन से संबंध है अथवा नहीं,मगर डाक्टरों का कहना है कि जो शिकायतें पहले साठ साल से ज्यादा के लोगों में मिलती थीं,अब बीस-पच्चीस साल के युवाओं में भी मिल रही हैं। कान में पैदा हो रही समस्याएं ट्यूमर तक का कारण बन रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल से दूर रहने वालों की तुलना में,इसके प्रयोक्ता में ऐसा ट्यूमर होने की संभावना 50 फीसदी ज्यादा होती है। 

बहरेपन की मूल वजह है वांछनीय स्तर से अधिक तेज़ आवाज़ को अधिक देर तक सुनने की आदत। यदि हम 80 डेसीबल से ज्यादा की आवाज़ चार घंटे से ज्यादा सुनें,तो बहरापन निश्चित है। डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल फोन और म्यूजिक प्लेयर की लत के कारण लोग घंटों तक तेज़ आवाज़ सुनते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहना है कि 85 डेसीबल से ज्यादा तेज़ आवाज़ हमारे कानों के लिए नुकसानदेह है और इसमें 3 डेसीबल की बढ़ोत्तरी भी बहरेपन की गति दोगुना कर सकती है। 

कम सुनाई देना अथवा बहरापन कोई सामान्य घटना नहीं है। अमूमन, स्रवण-शक्ति उम्रदराज़ होने पर ही घटती है। यह दो ही स्थिति में तेज़ी से घटती है। पहली स्थिति है-वायरल संक्रमण की और दूसरी तेज़ आवाज़ की। तेल अवीव विश्वविद्यालय में हुए एक शोध से पता चलता है कि एमपी3 प्लेयर अथवा आईपॉड पर चार घंटे से ज्यादा संगीत सुनने वाले युवाओं की स्रवण-शक्ति काफी घट जाती है। आवाज़ फाउंडेशन की सुमैरा अब्दुलाली कहती हैं कि ध्वनि-प्रदूषण के जिस हद तक हम शिकार हो रहे हैं,डर है,कहीं हम बहरों के देश में न तब्दील हो जाएं। लिहाज़ा,डॉक्टर महसूस करते हैं कि यह सही समय है कि हम अपनी जीवन-शैली पर गंभीरता से विचार करें। 55वें अंतरराष्ट्रीय वधिर सप्ताह के मौक़े पर, पढ़िए नवभारत टाइम्स,दिल्ली संस्करण में 23 सितम्बर,2012 के अंक में प्रकाशित यह आलेखः 

फिल्म बर्फी के हीरो मर्फी के किरदार में रणबीर कपूर ने सभी का दिल जीत लिया है। बचपन से ही सुन और बोल न पाने वाला मर्फी जिंदगी के हर लम्हे को जिंदादिली से जीता है। हालांकि सच यह है कि अगर उसके पैरंट्स ने पैदा होने के बाद उसके कानों का चेकअप कराया होता , तो उसका इलाज मुमकिन था और वह सामान्य रूप से बोल और सुन सकता था। 

कान की रचना 
कान के तीन हिस्से होते हैं - आउटर ईयर , मिडल ईयर और इनर ईयर। आउटर ईयर वातावरण से ध्वनि तरंगों के रूप में आवाजों को ग्रहण करता है। ये तरंगें कैनाल से होती हुई ईयरड्रम तक पहुंचती हैं और इनकी वजह से ईयरड्रम वाइब्रेट करने लगता है। 

इस वाइब्रेशन से मिडल ईयर में मौजूद तीन बेहद छोटी हड्डियों में गति आ जाती है और इस गति के कारण कान के अंदरूनी हिस्से में मौजूद द्रव हिलना शुरू होता है। 

इनर ईयर में कुछ हियर सेल्स (सुननेवाली कोशिकाएं) होती हैं , जो इस द्रव की गति से थोड़ी मुड़ जाती हैं और इलेक्ट्रिक पल्स के रूप में सिग्नल दिमाग को भेज देती हैं। ये सिग्नल ही हमें शब्दों और ध्वनियों के रूप में सुनाई देते हैं। 

कितनी तरह का लॉस 
हियरिंग लॉस यानी सुनने का दोष या नुकसान दो तरह का हो सकता है: 

1. कंडक्टिव हियरिंग लॉस 
यह कान के बाहरी और बीच के हिस्से में आई किसी समस्या की वजह से होता है। इसे बीमारी की वजह से होने वाला बहरापन भी कह सकते हैं। 

वजह 
- कानों से पस बहना या इन्फेक्शन 
- कानों की हड्डी में कोई गड़बड़ी 
- कान के पर्दे का डैमेज हो जाना 
- ट्यूमर , जो कैंसरस नहीं होते 

2. सेंसरीन्यूरल हियरिंग लॉस 
यह कान के अंदरूनी हिस्से में आई किसी गड़बड़ी की वजह से होता है। ऐसा तब होता है , जब हियर सेल्स नष्ट होने लगते हैं या ठीक से काम नहीं करते। दरअसल , कान में तकरीबन 15 हजार स्पेशल हियरिंग सेल्स होते हैं। इनके बाद नर्व्स होती हैं। हियर सेल्स को नर्व्स की शुरुआत कहा जा सकता है। इन्हीं की वजह से हम सुन पाते हैं , लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ ये सेल्स नष्ट होने लगते हैं , जिससे नर्व्स भी कमजोर पड़ जाती हैं और सुनने की शक्ति कम होती जाती है। 

वजह 
- उम्र का बढ़ना 

- कुछ खास तरह की दवाएं मसलन जेंटामाइसिन का इंजेक्शन। बैक्टीरियल इन्फेक्शन आदि में इस्तेमाल 

- कुछ बीमारियां जैसे डायबीटीज और हॉर्मोंस का असंतुलन। इसके अलावा मेनिंजाइटिस , खसरा , कंठमाला आदि बीमारियों से भी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। 

- बहुत तेज आवाजः जब तक हमें पता चलता है कि हमें वाकई सुनने में कोई दिक्कत हो रही है , तब तक हमारे 30 फीसदी सेल्स नष्ट हो चुके होते हैं और एक बार नष्ट हुए सेल्स हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं। उन्हें दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता। 

लक्षण 
सुनने की क्षमता में कमी आने के शुरुआती लक्षण बहुत साफ नहीं होते , लेकिन यहां ध्यान देने की बात यह है कि सुनने की क्षमता में आई कमी वक्त के साथ धीरे-धीरे और कम होती जाती है। ऐसे में जितना जल्दी हो सके , इसका इलाज करा लेना चाहिए। नीचे दिए गए लक्षण हैं तो डॉक्टर से मिलना चाहिए। 

- सामान्य बातचीत सुनने में दिक्कत होना , खासकर अगर बैकग्राउंड में शोर हो रहा हो 

- बातचीत में बार-बार लोगों से पूछना कि उन्होंने क्या कहा 

- फोन पर सुनने में दिक्कत होना 

- बाकी लोगों के मुकाबले ज्यादा तेज आवाज में टीवी या म्यूजिक सुनना 

- नेचरल आवाजों को न सुन पाना मसलन बारिश या पक्षियों के चहचहाने की आवाज 

- नवजात बच्चे का आवाज न सुन पाना 

इलाज 
- इन्फेक्शन की वजह से सुनने की क्षमता में कमी आई है , तो इसे दवाओं से ठीक किया जा सकता है। 

- अगर पर्दा डैमेज हो गया है , तो सर्जरी करनी पड़ती है। कई बार पर्दा डैमेज होने का इलाज भी दवाओं से ही हो जाता है। 

- नर्व्स में आई किसी कमी की वजह से सुनने की क्षमता में कमी आई तो जो नुकसान नर्व्स का हो गया है , उसे किसी भी तरह वापस नहीं लाया जा सकता। ऐसे में एक ही तरीका है कि हियरिंग एड का इस्तेमाल किया जाए। हियरिंग एड फौरन राहत देता है और दिक्कत को आगे बढ़ने से भी रोकता है। ऐसी हालत में हियरिंग एड का इस्तेमाल नहीं करते , तो कानों की नर्व्स पर तनाव बढ़ता है और समस्या बढ़ती जाती है। 

हर बच्चे की जांच जरूरी 
सुनने की क्षमता में कमी पैदायशी हो सकती है , इसीलिए सलाह यही है कि पैदा होते ही हर बच्चे की सुनने की क्षमता की जांच होनी चाहिए। सामान्य बाल रोग विशेषज्ञ यह जांच नहीं करते। इसके लिए किसी ईएनटी विशेषज्ञ से जांच कराएं। जांच में बच्चे को कुछ करने की जरूरत नहीं है। मशीन की मदद से उसकी ब्रेन की वेव्स को देखकर ही पता चल जाता है कि उसकी सुनने की क्षमता कैसी है। वैसे तो सभी बच्चों की जांच होनी चाहिए। बाद में अगर किसी बच्चे में कुछ शक लगे , तब तो यह जांच जरूर करानी चाहिए। मसलन , अगर छह महीने तक बच्चा किसी आवाज की ओर ध्यान न दे या दो साल की उम्र तक एक भी शब्द नहीं बोल पाए। अगर जल्द ही यह पता चल जाए कि बच्चे की सुनने की क्षमता में कमी है तो उसका इलाज किया जा सकता है , लेकिन इसके लिए 2 से 3 साल तक की उम्र ही सही है। इसके बाद इलाज कराने का कोई फायदा नहीं है। इसकी वजह यह है कि पांच साल की उम्र तक बच्चे के सुनने , समझने और बोलने की क्षमता का पूरा विकास हो जाता है , इसलिए इसी उम्र तक उसके सुनने की क्षमता में सुधार हो गया तो ठीक है , वरना पांच साल के बाद ऑपरेशन कराने से उसके सुनने की क्षमता तो वापस आ जाएगी , लेकिन वह बोलना नहीं सीख पाएगा। 

बच्चों के इस तरह के बहरेपन के इलाज में या तो हियरिंग एड दिए जाते हैं या फिर बच्चे का कोकलियर ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इन तरीकों से बच्चे की सुनने की क्षमता ठीक हो जाती है। अगर हियरिंग एड से फायदा नहीं मिल रहा है तो कोकलियर इम्प्लांट बड़ों का भी किया जा सकता है। यह सेफ तकनीक है और नतीजे बहुत अच्छे हैं , लेकिन महंगी बहुत है। एक कान के ऑपरेशन का खर्च आमतौर पर 6 से सात लाख रुपये आ जाता है। 

हियरिंग एड्स 
अगर कान का पर्दा फट गया है और कान से सुनाई नहीं देता , तो डॉक्टर हियरिंग एड लगा सकते हैं। इससे सुनाई भी देने लगता है , लेकिन आमतौर पर डॉक्टर ऐसा नहीं करते। डॉक्टर ऐसी स्थिति में सर्जरी कराने की ही सलाह देते हैं क्योंकि हियरिंग एड से कान की जो समस्या है , वह जहां की तहां बनी रहती है , जबकि सर्जरी से उसे ठीक कर दिया जाता है। अगर कान से डिस्चार्ज हो रहा है तो किसी भी हालत में हियरिंग एड लगाने की सलाह नहीं दी जाती।

हियरिंग एड मोटे तौर पर दो तरह के हैं : 
एनालॉग : इन हियरिंग एड को काफी समय पहले इस्तेमाल किया जाता था। अब इनका इस्तेमाल मोटे तौर पर बंद हो गया है। कंपनियां भी अब इन्हें नहीं बनातीं। एनालॉग हियरिंग एड में वातावरण की आवाजें पूरी की पूरी अंदर कान में आ जाती हैं , जिससे सुनने वाले को असली आवाज सुनने में दिक्कत होती है , यानी ये गैरजरूरी साउंड को कंट्रोल नहीं कर पाते। 

डिजिटल : ये पूरी तरह प्रोग्राम्ड होते हैं और गैरजरूरी आवाज को कंट्रोल कर लेते हैं। आवाज ज्यादा साफ सुनाई देती है। इनकी कीमत 10 हजार रुपये से शुरू होती हैं। इसमें वायरलेस तकनीक पर चलने वाले हियरिंग एड भी आते हैं। इन्हें मोबाइल , टीवी और रिमोट कंट्रोल के साथ सिंक किया जा सकता है। एक ही हियरिंग एड को तीनों के साथ सिंक कर सकते हैं , बशर्ते उस एड में इस काम के लिए जरूरी तकनीक हो। ऐसा करके हियरिंग एड से ही आवाज को घटा-बढ़ाकर मोबाइल की आवाज सुनी जा सकती है। टीवी का वॉल्यूम बिना घटाए-बढ़ाए मरीज अपने हियरिंग एड की आवाज को एडजस्ट कर टीवी की आवाज सुन सकता है। 

आकार के हिसाब से हियरिंग एड चार तरह के हो सकते हैं। ये हैं : पॉकेट मॉडल , कान के पीछे लगाए जाने वाले , कान के अंदर लगाए जाने वाले और चश्मे के साथ लगाए जाने वाले। चारों तरह के हियरिंग एड एनालॉग और डिजिटल , दोनों कैटिगरी में उपलब्ध हैं। 

कीमत : 
अच्छी क्वॉलिटी का डिजिटल हियरिंग एड (सिंगल) 15 से 20 हजार रुपये में आता है। वैसे , मार्केट में डेढ़ लाख रुपये तक के हियरिंग एड मौजूद हैं। एनालॉग हियरिंग एड (सिंगल) की कीमत 3 से 10 हजार रुपये के बीच होती है। 

रेग्युलर चेकअप 
- अगर कान की कोई समस्या नहीं है और सुनाई ठीक देता है तो आंखों की तरह कानों के रेग्युलर चेकअप की कोई जरूरत नहीं है। 

- हालांकि कुछ डॉक्टरों का यह भी मानना है कि अगर आपकी उम्र 30 से 45 साल के बीच है और आपको लगता है कि आपकी सुनने की क्षमता ठीक है , तो भी दो साल में एक बार कानों का चेकअप करा लें। 

- 50 साल की उम्र के आसपास कान की नसें कमजोर होने की शिकायत हो सकती है , इसलिए 50 साल के बाद साल में एक बार कानों का चेकअप करा लें। 

- चेकअप के लिए अगर आप ईएनटी विशेषज्ञ के पास जा रहे हैं तो वह आपके कान के पर्दे आदि की जांच करेगा , लेकिन कान की संवेदनशीलता और उसके सुनने के टेस्ट के लिए ऑडियॉलजिस्ट के पास भी जा सकते हैं। 

- वैसे बेहतर यही है कि कान की जांच के लिए ईएनटी विशेषज्ञ के पास ही जाएं। पूरी जांच के बाद अगर ईएनटी विशेषज्ञ को जरूरत महसूस होगी तो वही आपको ऑडियॉलजिस्ट के पास जाने को कह सकते हैं। 

वैक्स हो तो क्या करें 
- कानों में वैक्स होना कोई गलत बात नहीं है और न ही यह किसी बीमारी की निशानी है , बल्कि ऐसा होना अच्छी बात है। स्वस्थ कान वैक्स पैदा करते ही हैं। वैक्स कानों के लिए एक तरह के सुरक्षा कवच का काम करता है। 

- जब तक कानों में दर्द या कोई और दिक्कत न हो , तब तक वैक्स को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है। वैक्स कान को बचाता है। बाहर की गंदगी को अंदर जाने से रोकता है। कान के बाल भी यही काम करते हैं। 

- अगर कभी वैक्स ज्यादा बन रहा है तो वह धीरे-धीरे कान के अंदर जमा होने लगता है और कान की कैनाल को ब्लॉक कर देता है। इससे कान बंद हो जाता है और भारी-भारी लगने लगता है। कई बार सुनने में भी दिक्कत होने लगती है। 

- ऐसे में सलाह यह है कि कान में कभी भी ईयरबड न डालें। इससे पर्दा डैमेज होने का खतरा होता है। 

- ऐसे वैक्स को हटाने के लिए अपने ईएनटी स्पेशलिस्ट के पास जाएं , लेकिन भूलकर भी बाजार में चिमटी आदि लेकर घूमने वाले लाल पगड़ी वाले लोगों से वैक्स न निकलवाएं। 

- ऑलिव ऑयल की दो बूंदें कान में डाल सकते हैं , लेकिन तेल डालने के बाद उसे ईयरबड से कुरेदने की कोशिश न करें और न वैक्स को बाहर निकालें। तेल डालने से वैक्स अपने आप ही घुल जाता है और परेशानी ठीक हो जाती है। कोई दिक्कत होने पर ही ऐसा करें। सरसों का तेल न डालें। 

- अगर कान के बाहरी हिस्से की सफाई निश्चित अंतराल पर खुद ही कॉटन के ईयरबड से करते रहें , तो वैक्स इकट्ठा ही नहीं होगा क्योंकि वैक्स आमतौर पर कान के बाहरी हिस्से में ही पैदा होता है। कान की सफाई नहाते वक्त उंगली से कर सकते हैं। 

पानी चला जाए तो... 
सामान्य तौर पर कान के अंदर पानी जाने का कोई खास रिस्क नहीं होता , लेकिन अगर कान में इन्फेक्शन है तो डॉक्टर सलाह देते हैं कि कान को पानी से बचाकर रखा जाए। आमतौर पर पानी खुद ही निकल जाता है , लेकिन अगर दिक्कत हो तो डॉक्टर से मिलें। अगर कान की कोई समस्या है तो ज्यादा स्विमिंग करने से नुकसान हो सकता है। ऐसे में स्विमिंग से बचना ही अच्छा है। वैसे डॉक्टर स्विमिंग करते वक्त कानों में ईयरप्लग लगाना बेहतर है। 

कैसे बरकरार रखें सुनने की क्षमता 
- पैदा होते ही बच्चे के कानों का टेस्ट कराएं। 45 साल की उम्र के बाद कानों का रेग्युलर चेकअप कराते रहें। 

- अगर शोरगुल वाली जगह मसलन फैक्ट्री आदि में काम करते हैं तो कानों के लिए प्रोटेक्शन जरूर लें। ईयर प्लग लगा सकते हैं। 

- 90 डेसिबल से कम आवाज कानों के लिए ठीक है। 90 या इससे ज्यादा डेसिबल की आवाज कानों के लिए नुकसानदायक होती है। इससे बचें। 

- आईपॉड , एमपी 3 प्लेयर को हेडफोन या ईयरबड्स की मदद से जरूरत-से-ज्यादा आवाज पर और लगातार लंबे वक्त तक सुनना हमारी सुनने की क्षमता को बिगाड़ सकता है। 

- म्यूजिक सुनते वक्त वॉल्यूम हमेशा मीडियम या लो लेवल पर रखें , लेकिन कई बार बाहर के शोर की वजह से आवाज तेज करनी पड़ती है। तेज आवाज में सुनने से कानों को नुकसान हो सकता है इसलिए शोरगुल वाली जगहों के लिए शोर को खत्म करने वाले ईयरफोन का इस्तेमाल कर सकते हैं , लेकिन आवाज कम ही रखें। 

- कितनी आवाज कितनी देर तक सुनना ठीक है , इसके लिए 60/60 का नियम फॉलो कर सकते हैं। इसमें आईपॉड को 60 मिनट के लिए उसके मैक्सिमम वॉल्यूम के 60 फीसदी पर सुनें और फिर कम से कम 60 मिनट यानी एक घंटे का ब्रेक लें। 

- म्यूजिक या मोबाइल सुनने के लिए ईयरबड्स भी आती हैं और हेडफोंस भी। ईयर बड्स कान के अंदर कैनाल में घुसाकर लगाए जाते हैं , जबकि हेडफोन कान के बाहर लगते हैं। ईयर बड्स की तुलना में हेडफोन बेहतर है।  

कितनी देर म्यूजिक सुनें (हर दिन)  -    वॉल्यूम 
                                             50%     -   कोई सीमा नहीं 
                                             60%     -    18 घंटे 
                                            70%      -    साढ़े चार घंटे 
                                            80%      -    करीब डेढ़ घंटा 
                                            90%      -    करीब 18 मिनट 
                                          100%      -    करीब 5 मिनट 

किसकी कितनी तेज आवाज 
फुसफुसाने की आवाज =30 डीबी 
शांत ऑफिस =40 डीबी 
बारिश की आवाज= 50 डीबी 
सामान्य बातचीत= 60 डीबी 
सामान्य ट्रैफिक , कार का इंजन= 70 डीबी 
एमपी 3 की अधिकतम आवाज= 105 डीबी 
रॉक कंसर्ट =110 डीबी 
जेट का उड़ना= 120 डीबी 
पटाखे की आवाज= 150 डीबी 

नोट : जब भी डेसिबल में 10 की बढ़ोतरी होगी , आवाज में 10 गुना तेजी आ जाएगी। जैसे सामान्य बातचीत के मुकाबले कार का इंजन 10 गुनी आवाज देता है। 

भ्रामरी प्राणायाम है मददगार 
सुनने की क्षमता बरकरार रखने में अनुलोम विलोम , कपालभाति , भस्त्रिका और भ्रामरी प्राणायाम बहुत लाभकारी हैं। इनमें से भी भ्रामरी खासतौर पर उपयोगी है। इसे करने के लिए किसी आसन में बैठ जाएं। पूरा सांस भरें। सांस भरने के बाद अंगूठों से दोनों कानों को बंद कर लें और तर्जनी उंगलियों को माथे पर लगाएं। दोनों हाथों की बाकी तीन-तीन उंगलियां आंखों पर आ जाएंगी। इसके बाद सांस निकालें और भंवरे जैसी गूंज करें। इस तरह से 10 से 11 बार रोजाना करें। इसके अलावा जल नेति , सूत्र नेति और घृत नेति करने की भी सलाह दी जाती है , लेकिन ये क्रियाएं किसी योग गुरु से सीखकर ही करनी चाहिए। 

एक्सपर्ट्स पैनल 
डॉ. सोमेश्वर सिंह , ईएनटी स्पेशलिस्ट , कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल 
डॉ. शलभ शर्मा , ईएनटी स्पेशलिस्ट , गंगाराम हॉस्पिटल 
डॉ. मनुज अग्रवाल , सीनियर ऑडियॉलजिस्ट , एम्प्लिफोन इंडिया

10 टिप्‍पणियां:

  1. अगर कान के बीमारी का इलाज शुरू के ही दिनों में करा लिया जाय
    तो बहरेपन ठीक हो सकता है,,,,अच्छी उपयोगी जानकारी,,,

    RECENT POST : गीत,

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  2. फिल्म बर्फी के हीरो मर्फी के किरदार में रणबीर कपूर ने सभी का दिल जीत लिया है। बचपन से ही सुन और बोल न पाने वाला मर्फी जिंदगी के हर लम्हे को जिंदादिली से जीता है। हालांकि सच यह है कि अगर उसके पैरंट्स ने पैदा होने के बाद उसके कानों का चेकअप कराया होता , तो उसका इलाज मुमकिन था और वह सामान्य रूप से बोल और सुन सकता था।
    लेकिन हम एक अच्छी फिल्म देखने से वंछित रह जाते !
    बाकी सब जानकारी जागरूक करती है अच्छी पोस्ट ...आभार !

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  3. जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत आभार !


    कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  4. ज्ञानवर्द्धक लेख के लिए आपका बहुत - बहुत आभार। मेरे नए पोस्ट "श्रद्धांजलि : सदाबहार देव आनंद" को भी एक बार अवश्य पढ़े। धन्यवाद
    मेरा ब्लॉग पता है:- Harshprachar.blogspot.com

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  5. आज की जीवन पद्धति में ये बातें जानना बहुत ज़रूरी है .
    धन्यवाद!

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  6. अच्छी जानकारी..... समय रहते चेत जाएँ यह ज़रूरी है....

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  7. १- हम तो गाना नहीं सुनते किन्तु ये बाप्पा के भक्त ८-९ दिनों से कान के पर्दे फाड़ रहे है इसका क्या करे ?
    २- काश की बर्फी को आस्कर में भेजने से पहले उसके मौलिक होने की भी जाँच कर ली जाती :)

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  8. उपयोगी और ज्ञानवर्धक.


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