गालब्लैडर स्टोन यानी पित्त की थैली में पथरी, आम बीमारी हो गई है। देश में अधिक दूध और दुग्ध उत्पाद का प्रयोग करने वाले राज्यों में यह बीमारी ज्यादा होती है। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, झारखंड, हरियाणा, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में यह बीमारी अधिक पायी जाती है। आंकड़ों की बात करें तो 40 साल से अधिक उम्र के 10-15 प्रतिशत लोगों को यह बीमारी होती है। महिलाओं में यह संख्या ज्यादा है। 50 साल से अधिक उम्र की 30 प्रतिशत महिलाओं में यह बीमारी आम है।
गालब्लैडर स्टोन को लोग अकसर जल्दी समझ नहीं पाते क्योंकि केवल 25 से 30 प्रतिशत लोगों में इसके शुरुआती लक्षण दिखते हैं, वह भी स्टोन बनने के लगभग दो साल बाद। स्टोन बनने के बाद पेट में दर्द महसूस होता है, लेकिन जिनको दर्द या लक्षण नहीं महसूस होते वे इस बीमारी को हल्के में लेते हैं। जानते हुए भी कि उन्हें पथरी है, वे गंभीर नहीं होते। यह कभी-कभी जानलेवा साबित होता है। लोग सोचते हैं कि अगर गालब्लैडर में स्टोन है और दर्द नहीं करता और दूसरी समस्या नहीं हो रही है तो ऑपरेशन जरूरी नहीं है लेकिन देखा गया है कि गालब्लैडर कैंसर के 80 प्रतिशत मामलों में मरीज को पहले पथरी थी। इसके चलते कैंसर हुआ है। स्टोन गालब्लैडर से निकल कर पित्त नली में पहुंच जाय तो पीलिया और पैंक्रियाज नली में पहुंच जाय तो पैंक्रिटाइटिस होने का खतरा रहता है। पैंक्रिटाइटिस में मृत्यु-दर बहुत अधिक है।
कारण
चालीस साल से अधिक उम्र का होना। महिलाओं में मेंसेज बंद हो ने के बाद हुए हार्मोनल बदलाव। अधिक वजन होना। तेजी से वजन घटना। अधिक फास्टिंग करना। प्रेगनेंसी में हार्मोस बदलाव मधुमेह और हेल्दी डाइट का अभाव।
लक्षण
पेट में दायीं तरफ ऊपर की ओर तेज दर्द, जिसे बिलयरी पेन कहते हैं। यह खाने के बाद शुरू होता है। अकसर उल्टी होना। दर्द शुरू होने के तीन-चार दिन तक दर्द का बने रहना। बुखार के साथ पेट फूलना, पेट में गैस बनना। खाना हजम ना होना। पेट भारी रहना।
बचाव
हेल्दी डाइट लें। वजन नियंत्रित रखें। नियमित व्यायाम करें। अगर अधिक वजन है तो इसे धीरे-धीरे कम करने का प्रयास करें। गालब्लैडर में बनने वाला स्टोन कोलेस्ट्रॉल स्टोन कहलाता है। कोलेस्ट्रॉल वाली डाइट से परहेज करें। ज्यादा से ज्यादा पानी पियें जिससे कोलेस्ट्रॉल बाहर निकलता रहे। चालीस साल से अधिक उम्र होने पर नियमित गालब्लैडर की जांच करायें।
जांच और इलाज
गालब्लैडर की जांच के लिए सबसे अच्छा तरीका अल्ट्रासाउंड है। कभी-कभी पीलिया वाली स्थिति में लिवर फंक्शन टेस्ट भी कराया जाता है। गालब्लैडर स्टोन का एकमात्र इलाज ऑपरेशन है। इसमें पूरा गालब्लैडर निकाल दिया जाता है। यह ऑपरेशन दो प्रकार से किया जाता है। पहली और आसान विधि दूरबीन विधि है। इसमें दो-तीन छेद से ऑपरेशन किया जाता है। मरीज को तीसरे दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है जबकि दूसरी विधि ओपन सर्जरी होती है। इसमें पेट में चीरा लगाकर ऑपरेशन होता है। इसमें दवाओं से खास लाभ नहीं मिलता है (प्रो. हेमंत पाण्डेय,आधी दुनिया,राष्ट्रीय सहारा,8.8.12)।
बचाव के साथ उपयोगी जानकारी देता सार्थक आलेख ...आभार
जवाब देंहटाएंगाल स्टोंस के उम्मीदवार --- फैट , फिमेल , फेयर , फोर्टी !
जवाब देंहटाएंयानि सबसे अधिक चालीस के ऊपर , मोटी , रईस महिलाओं में !
बहुत अच्छी विस्तृत जानकारी के लिए
जवाब देंहटाएंआभार:-)
Kaam Ki Jankari hai..... Dhanywad
जवाब देंहटाएंsahi nd satik jankari .....
जवाब देंहटाएंराधारमण जी नमस्कार...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग 'स्वास्थ्य सबके लिए' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 11 अगस्त को 'गॉलब्लैडर की नियमित जांच कराएं' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
सही सलाह। आभार।
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महान गणितज्ञ रामानुजन!
चालू है सुपरबग और एंटिबायोटिक्स का खेल।
राधा रमण जी मेरे लिए भी काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा नै थी यहाँ यु एस में यह बहुत प्रचलित है मेरी छोटी बिटिया स्पाइनल एडजस्ट मेंट (लम्बर हर्नियेशन )के समाधान के लिए यह चिकित्सा ले रही है मैं भी उसके साथ काइरो -प्रेक्टिक क्लिनिक गया हूँ जिज्ञासा भाव जागा साहित्य संजोया क्लिनिक से ही और लिखने का सिलसिला धारावाहिक इसी चिकित्सा व्यवस्था पे चल निकला लग - भग दस आलेख मौजूद हैं राम राम भाई पर . अगला आलेख TMJ SYNDROME AND CHIROPRACTIC.
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