शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

थोड़े-से बदलाव से बदल सकती है ज़िंदगी

सुबह होती है शाम होती है, जिंदगी यूं ही तमाम होती है। हर व्यक्ति कोल्हू के बैल की भांति अपने खूंटे से बंधे घर से दुकान, दुकान से घर, घर से ऑफिस, ऑफिस से घर चलता रहता है। कहते हैं एक साइड पर तवे पर रोटी भी पड़ी सड़ जाती है। उसे भी कभी उलट कभी पलट करना पड़ता है। तालाब में रुका पानी सड़ांध मारने लगता है। बहते पानी में कभी दुर्गंध नहीं पड़ती। हर व्यक्ति कुछ बदलाव चाहता है। कुएं का मेंढक भी चाहता है कि मैं बाहर आऊं। मैदानी लोग पहाड़ पर चेंज के लिए जाते हैं और पहाड़ी लोग ठंड से बचने के लिए मैदानी इलाकों में घूमने जाते हैं। लोग घर का खाना खाकर ऊब जाते हैं फिर रेस्टोरेंट में खाकर कुछ नयापन अनुभव करते हैं। यदि आप जिंदगी को खूबसूरत बनाना चाहते हैं तो छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूंढें। आप प्रतिदिन, प्रति सप्ताह अपनी हाबीज डवल्प या रिवाइज करने का प्रयास करें। प्रतिदिन थोड़ा समय गार्डनिंग या चित्रकारी, सृजनात्मक लेखन, कविता लिखने में समय लगाएं। यदि आप दफ्तर का काम करते हैं तो कभी-कभी किचन का काम करके चाय, टोस्ट, अंडे बनाकर परिवार वालों के लिए नई डिश बनाएं। जो काम भी आप करते हैं वह शौक एवं आनंद के साथ करें। उसमें नवीनता लाएं। 

एक ही डिश अलग-अलग ढंगों से बनाएं। रविवार को सारा दिन हल्का भोजन करें। काम से ज्यादा आराम करें। संगीत सुनें। पसंद का टीवी प्रोग्राम देखें। हर समय कुछ नया करने के लिए तैयार रहें। अपने को बदलने की कोशिश में रहें। नया हेयर स्टाइल बनाएं। यह जिंदगी अपनी है। अपना सफर कैसे काटना है, यह अपने आप निर्धारित करें। उम्र का ध्यान छोड़ दें। जिम जाएं। गिटार या सितार सीखें। अपने आप को समय दें। अपने शरीर, मन, आत्मा को समय दें। पसंद का संगीत सुनें। अपने आपको खुश रखें। यह न सोचें कि आप न होंगे तो दुनिया न चलेगी। हर पल को भरपूर जीने की आदत डालें। निराश, मूर्ख, लड़ाई पसंद, झूठे, फरेबी, मतलबी, लोगों से किनारा करें। तटस्थ रहें। टेंशन वाली बातें रिपीट न करें। टापिक ही न छेड़ें। जिंदगी को जीने का अंदाज बदलते रहें। जो लोग अपने लिए मनोरंजन, कसरत, हंसने के लिए समय नहीं निकालते वे अपने बीमार होने के लिए वक्त निकालने के लिए तैयार हो जाएं। आएं जीवन का रहस्य जानें, गम के पक्षियों को अपने सिर पर मत बैठने दें। (विजेंद्र कोहली गुरदासपुरी,दैनिक ट्रिब्यून,16.7.12)। 

दरअसल,इन दिनों मनुष्य की महत्वाकांक्षा इस कदर बढ़ी-चढ़ी है कि वह अधिकाधिक धन-दौलत जुटा लेने, प्रसिद्धि कमा लेने और वाहवाही लूट लेने की ही उधेड़बुन में हर घड़ी उलझा दिखाई पड़ता है। यह सच है कि व्यक्ति का रहन-सहन जितना निर्द्वन्द्व व निश्छल होगा, उतनी ही अनुकूल उसकी आंतरिक स्थिति होगी। इसके विपरीत, जहां बनावटीपन, दिखावा, झूठी शान, प्रतिस्पर्धा होगी वहां लोगों की मनोदशा उतनी ही असामान्य होती है। एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि भोले-भाले ग्रामीणों की तुलना में स्वभाव से अधिक चतुर, चालाक और कृत्रिमता अपनाने वाले शहरी लोगों का ‘मूड’ अपेक्षाकृत ज्यादा बुरी दशा में होता है। यदि कभी ‘मूड’ खराब हो जाए तो अकेले पड़े रहने की अपेक्षा मित्रों के साथ हंसी मजाक में स्वयं को व्यस्त रखें, पर हां यह सावधानी रखें कि ‘मूड’ को चर्चा का विषय न बनाएं। 

एक कारगर तरीका भ्रमण भी है। प्रकृति के संपर्क से मन जितनी तीव्रता से प्रकृतस्थ होता है, उतना तेजी से अन्य माध्यमों के सहारे नहीं हो सकता। इसलिए ऐसी स्थिति में पार्क, उपवन, बाग, उद्यान जैसा आसपास कोई सुलभ स्थल हो तो वहां जाकर मानसिक दशा को सुधारा जा सकता है। नियमित व्यायाम, खेल एवं किसी भी रचनात्मक कार्यों का सहारा लेकर भी मन की बुरी दशा को घटाया-मिटाया जा सकता है। आवश्यकता से अधिक की आकांक्षा और स्तर से ज्यादा की चाह में प्रवृत्त न रहें तो मूड को खराब होने से बचाया जा सकता है। आध्यात्मिक जीवनयापन करते हुए अपने सुनिश्चित लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने से भी मन को असीम शांति व संतुष्टि मिलती है(उमेश कुमार साहू,दैनिक ट्रिब्यून,16.7.12)।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  2. इतना सब सीख जाएँ , तो जीना ही सीख जाएँ .
    बहुत अच्छी बातें बताई हैं . पालन करना अपने हाथ में है .

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  3. यह सब कुछ कर ले तो हर कोई कहेगा वाह, जीना इसी का नाम है,
    अच्छा लेख अछि प्रेरणा

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  4. अपने दैनिक जीवन में हर कार्य नियमित सही ढंग से करे तो लक्ष्य और सकूंन मिलता है,,,,

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  5. राधारमण जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'स्वास्थ्य सबके लिए' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 27 जुलाई को 'थोड़े-से बदलाव से बदल सकती है जिंदगी' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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