कुकिंग ऑयल हमारे खाने का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। सही कुकिंग ऑयल और कुकिंग ऑयल का सही इस्तेमाल हमारे जीवन में बहुत अहमियत रखता है। आमतौर पर लोग खाने के तेल को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं होते, यह ठीक नहीं है। आपकी थोड़ी-सी लापरवाही आपके परिवार की सेहत पर भारी पड़ सकती है।
कुकिंग ऑयल के चयन और इस्तेमाल को लेकर ज्यादातर लोग अक्सर दुविधा में रहते हैं। तरह-तरह के विज्ञापनों ने हमारी इस उलझन को और भी बढ़ा दिया है, क्योंकि हर तेल सेहतमंद होने का दावा करता है। लेकिन किसका दावा सच्चा है और किसका झूठा, यह तय कर पाना सबसे मुश्किल होता है। हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो तेल चुनते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आप जहां रहते हैं, वहां की जलवायु कैसी है और वहां कौन-कौन से परंपरागत तेलों का उपयोग किया जाता है। भारत के हर इलाके की भौगोलिक परिस्थितियां भी अलग-अलग हैं। यही वजह है कि हर स्थान का अलग खानपान होता है, जो वहां के मौसम के अनुकूल होता है। खाने के तेल पर भी ये बातें लागू होती हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं, अगर कुछ बातों को छोड़ दें तो हर तेल में कुछ औषधीय गुण होते हैं, इसलिए तेल का चुनाव करते वक्त शरीर की जरूरतों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है-श्रीबालाजी एक्शन इंस्टीटय़ूट की सीनियर डाइटीशियन
डॉ़ शिवानी पासी के अनुसार, ‘कुकिंग ऑयल में चार तरह की वसा होती है- सैचुरेटेड (संतृप्त), मोनो अनसैचुरेटेड (एकल असंतृप्त), पॉली अनसैचुरेटेड(बहुसंतृप्त) और ट्रांस फैट एसिड। सैचुरेटेड व ट्रांस फैट एसिड हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह हैं। यह शरीर में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल बढ़ाती है। इसलिए इसका उपयोग सीमित मात्र में होना चाहिए। दिन में कुल तीन से चार छोटे चम्मच (15-20 मि.ली.) खाना पकाने का तेल ही प्रयोग करना चाहिए। बाकी वसा की जरूरतें अनाज, दूध, दाल व सब्जियों से पूरी हो जाती हैं।
बदलते रहें तेल
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने एक शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि लगातार एक ही तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर तेल बदलते रहना चाहिए। इससे दिल की बीमारियां, मोटापा, शुगर व तेल के कारण होने वाली अन्य बीमारियों की आशंका कम हो जाती है। वैज्ञानिकों ने खाने वाले तेल को दो भागों में बांटा है। समूह ए में सरसों और सोयाबीन के तेल हैं, जिनमें ओमेगा 3 पाया जाता है और समूह बी में सूरजमुखी, मूंगफली जैसे तेल रखे गए हैं, जिनमें ओमेगा 6 होता है। यदि आप बदल-बदल कर तेल इस्तेमाल करेंगी तो ओमेगा 3 और ओमेगा 6 दोनों की जरूरतें पूरी हो जाएंगी।
तेल कैसे-कैसे
लगातार हो रहे शोधों से यह बात सामने आई है कि वनस्पति घी सेहत के लिए बहुत खतरनाक है। इसे खाने से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक तेल के मामले में रिफाइंड ऑयल ही सबसे अच्छा विकल्प है। देसी घी का सेवन भी सीमित मात्र में ही किया जाना चाहिए, क्योंकि यह भी धमनियों में जम जाता है।
माइक्रोवेव, स्टीमिंग, स्टिर फ्राइंग, ग्रिलिंग और रोस्टिंग, खाना पकाने की कुछ ऐसी विधियां हैं, जिनमें कम से कम या जीरो ऑयल कुकिंग की जाती है। ये स्वास्थ्य के लिहाज से खाना पकाने की बहुत ही सुरक्षित विधियां हैं। डाइटीशियन डॉं नंदिनी भाटिया का कहना है कि इन तरीकों से बनाए गए खाने में पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं और घी या तेल की जरूरत भी कम या ना के बराबर ही होती है। चटपटा, तीखा और स्वादिष्ट खाने के लालच में खाने के पोषक तत्वों को हम लगभग खत्म कर देते हैं। यह हमारे भोजन और हमारे स्वास्थ्य दोनों के लिए अच्छा नहीं है।
-सूरजमुखी का तेल दिल की बीमारियों में फायदेमंद
-सोयाबीन का तेल तलने के लिए उपयुक्त नहीं
-सरसों के तेल से दिल की बीमारियों की आशंका होती है 70 प्रतिशत कम
-नारियल के तेल से करें दिल के मरीज परहेज
-मूंगफली का तेल रखता है कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सामान्य
-राइस ब्रॉन तेल एलडीएल का स्तर रखता है कम
-ऑलिव ऑयल से शरीर में फैट डिस्ट्रीब्यूशन रहता है नियंत्रित
किस तेल के क्या हैं गुण और अवगुण
सोयाबीन का तेल: मध्य भारत में इस तेल का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। यह शरीर में एलडीएल और एचडीएल में संतुलन बनाकर रखता है, पर तलने के लिए यह उपयुक्त तेल नहीं है।
सरसों का तेल: सरसों के तेल का प्रयोग पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार आदि में काफी होता है। सरसों के तेल में मोनो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड व पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड अधिक मात्र में होते हैं। कोलेस्ट्रॉल व एलडीएल कम होता है। इस तेल में तले खाद्य पदार्थ सेहत के लिए अच्छे हैं। पर हमेशा इसका उपयोग न करें। इसमें मौजूद यूरोसिक एसिड नुकसान पहुंचाता है। इसके साथ-साथ अन्य तेल भी कुकिंग के दौरान इस्तेमाल करें। यह दिल की बीमारियां होने की आशंका 70 प्रतिशत कम कर देता है। इसमें विटामिन ई अच्छी मात्र है।
नारियल तेल: इसमें सैचुरेटेड फैट होते हैं, लेकिन कोलेस्ट्रॉल नहीं होता। यह तेल सेहत के लिहाज से ठीक है, लेकिन इसके साथ अन्य तेलों का प्रयोग करना चाहिए। डीप फ्राई के लिए यह उपयुक्त नहीं है। यह वायरस, फंगस और बैक्टीरिया से हमारे शरीर की रक्षा करता है। कॉर्डियोलॉजिस्ट की राय में दिल के मरीजों को नारियल के तेल से परहेज करना चाहिए।
मूंगफली का तेल: मूंगफली के तेल में मोनो अनसैचुरेटेड फैट होते हैं। यह हमारे एलडीएल को कम करता है और गुड कोलेस्ट्रॉल के स्तर भी सामान्य रखता है। इसका प्रयोग तलने या कुकिंग में किसी भी तरह से किया जा सकता है।
राइस ब्रॉन तेल: इसे धान के छिलकों से तैयार करते है। कुछ समय पहले तक इसका इस्तेमाल विदेशों में ही किया जाता था, लेकिन अब भारत में भी यह प्रयोग किया जा रहा है। इसमें मोनो अनसैचुरेटेड फैट्स होते हैं, जो सेहत की दृष्टि से ठीक हैं। यह एलडीएल का स्तर कम रखता है और त्वचा के लिए भी फायदेमंद है। इसका इस्तेमाल तलने के लिए भी किया जा सकता है।
ऑलिव ऑयल: इस तेल का सबसे ज्यादा उपयोग विदेशों में होता है, पर अब भारत में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। इसमें मोनोसैचुरेटेड फैट्स होते हैं। इस तेल के सेवन से शरीर में फैट डिस्ट्रीब्यूशन नियंत्रित रहता है, अतिरिक्त चर्बी इकट्ठा नहीं होती है। पर इस तेल का उपयोग तलने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
कॉर्न ऑयल: इसमें सैचुरेटेड फैट्स कम होते हैं। यह भी कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण रखता है और एचडीएल, एलडीएल नहीं बढ़ता है। लेकिन इसका सेवन कम करना चाहिए। इस तेल का लगातार सेवन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है(मृदुला भारद्वाज,हिंदुस्तान,दिल्ली,12.7.12)।
खाद्य तेलों के बारे में सार्थक जानकारी .... आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर सलाह |
जवाब देंहटाएंखाद्य तेल का बदलाव
आवश्यक ||
बहुत उपयोगी जानकारी।
जवाब देंहटाएंमहत्त्वपूर्ण जानकारी .
जवाब देंहटाएंसरसों का तेल खुला नहीं लेना चाहिए . इसमें मिलावट की सम्भावना रहती है जिससे एपिडेमिक ड्रोप्सी नाम की भयंकर बीमारी हो सकती है .
अच्छी उपयोगी जानकारी !
जवाब देंहटाएंयह रहस्य भी आज मालूम चला
जवाब देंहटाएंयूनिक तकनीकी ब्लाग
बहुत बढ़िया जानकारी.
जवाब देंहटाएं:-)