क्या आपकी मां को जॉइंट्स में पेन रहता है? अगर इसका जवाब हां है, तो वे ऑर्थराइटिस से पीड़ित हैं। अगर केयरफुल होकर न चला जाए, तो प्रॉब्लम दिन- प्रतिदिन बढ़ती जाती है। सेंट्रल हेल्थ मिनिस्ट्री के अनुसार, 2016 तक इस प्रॉब्लम्स की चपेट में आने वाले वीमेंस की संख्या में दोगुना तेजी से इजाफा होने की उम्मीद है। वहीं, योजना आयोग की एक रिपोर्ट पर गौर करें, तो 2015 तक आर्थराइटिस से पीड़ित लोगों की संख्या डायबिटीज के पेशेंट्स से भी ज्यादा हो जाएगी।
क्या है आर्थराइटिस
डॉक्टर्स के मुताबिक, आर्थराइटिस 200 तरह की होती है। कोई भी रूप हो, सबसे पहले जॉइंट्स में स्वैलिंग आ जाती है। दरअसल, थाई के नीचे और लेग के ऊपरी तरफ बोन के सिरों पर चिकनी व मोटी लेयर कार्टिलेज की होती है। अधिक वेट उठाने, एक्सरसाइज न करने, न्यूट्रिशस फूड न लेने से कार्टिलेज समय से पहले ही घिस जाती है। इससे नर्व ऐंडिंगस खुल जाती हैं। नतीजतन, ये एक दूसरे को छूने लगती हैं। यह सिचुएशन ही जॉइट्स में पेन और जकड़न की वजह बनती है। प्रॉब्लम बढ़ जाने पर चलने- फिरने और हिलने- डुलने में भी परेशानी होने लगती है।
कैसे करें पहचान
शुरू में फिजिकल वर्क या एक्सरसाइज करने के बाद ऐसा पेन होता है। लेकिन आर्थराइटिस होने के बाद किसी वजह से भी पेन होना शुरू हो जाता है। फिर आगे चलकर थोड़े- थोड़े दिनों में हमेशा दर्द होता रहता है और जॉइट्स पर स्वैलिंग आने लगती है। ऐसे जॉइट्स से आवाजें भी आने लगती हैं।
तीन में से एक को
अगर हाल की रिपोर्ट की मानें, तो हर तीन में एक महिला आर्थराइट्सि से पीड़ित है। हाल ही में की गई एक रिसर्च के अनुसार, देश में 55 वर्ष से अधिक एज के 20 प्रतिशत, 65 वर्ष से अधिक एज के 40 प्रतिशत व 80 वर्ष से अधिक एज के 60 प्रतिशत लोगों को जोड़ों या घुटनों में दर्द की प्रॉब्लम आम हो गई है। इस बारे में सीनियर ऑथोर्पेडिक व जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉक्टर बीरेन नादकर्णी बताते हैं कि आर्थराइटिस एक पेनफुल प्रोसेस है। वैसे तो यह किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन 45 साल के बाद यह ज्यादा जल्दी चपेट में लेती है।
इसमें तीन आर्थराइटिस खास हैं:
- रिह्यूमेटाइड आर्थराइटिस: इसमें पूरी बॉडी के जॉइट्स में पेन फील होता है।
- ऑस्टिओ आर्थराइटिस: इसमें उंगलियों और अंगुठों के जॉइंट्स में पेन होता है।
- गाउट आर्थराइटिस: इसमें हाथ व पैरों में स्वैलिंग आ जाती हैं, जिससे उठने-बैठने में बेहद दर्द होने लगता है।
युवा भी हैं चपेट में
आंकड़ों के मुताबिक, 15 फीसदी यूथ में भी इन दिनों इस बीमारी की चपेट में हैं। हालांकि यूथ में यह ज्यादातर किसी एक्सीडेंट या जॉइंट्स पेन से उभरती है। अगर सही इलाज न हो, तो ट्रॉमा निर्माण होता है। उसे ट्रॉमा ऑर्थराइटिस कहते हैं। डॉक्टर बीरेन ने अनुसार, इसकी वजह से चलने में, सीढ़ियां चढ़ने व उतरने में भी काफी दिक्कत होती है। इसका सॉल्युशन केवल एक्सरसाइज ही होता है।
क्यों होती है आर्थराइटिस
ऑर्थोपेडिक सर्जन अजय अग्रवाल कहते हैं, बढ़ती उम्र, मोटापा, खाने पीने का ध्यान न रखने, रेग्युलर रुटीन सही न होने और एक्सरसाइज न करना इसकी खास वजह होता है। बैलेंस फूड न खाने से बॉडी की मैटाबोलिज्म प्रोसेस पर असर पड़ता है, जिससे बॉडी में सेल्स नहीं बन पाते। शरीर की तमाम जॉइंट्स में साइनोवियल फ्ल्यूड की कमी आ जाती है। इसलिए कुछ चीजों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है।
अधिक वेट
आमतौर पर ऑस्टियो आर्थराइटिस फैट की वजह से होता है। दरअसल, बॉडी का एक्स्ट्रा फैट हिप में जमा होता जाता है, जिससे हिप और घुटनों के बीच एंगल डिवेलप हो जाता है। इससे घुटनों पर बहुत अधिक वेट पड़ने लगता है।
एक्सरसाइज न करना
एक्सरसाइज करने से थाई के आगे और पीछे की मसल्स को स्ट्रेच करने की और स्ट्रॉग बनाए रखने की जरूरत होती है। अगर एक्सरसाइज नहीं करते हैं, तो मसल्स वीक हो जाती है और सारा प्रेशर कार्टिलेज पर पड़ने लगता है।
न्यूट्रिंशस फूड न लेना
कैल्शियम, आयरन, विटामिन, प्रोटीन की कमी से हड्डियां वीक होती जाती हैं। इसलिए महिलाओं के लिए कैल्शियम लेना बेहद जरूरी माना जाता है।
स्मोकिंग करना
स्मोकिंग करने से हड्डियां वीक होती जाती हैं। स्मोकिंग करने वालों की हड्डियां नॉर्मल व्यक्ति से हर साल एक महीने एज कम हो जाती है।
क्या करें:
- न होने दें एस्ट्रोजन की कमी।
- थायराइड में रखें बैलेंस।
- स्किन प्रॉब्लम ल्यूकेमिया होने पर।
- बॉडी के दूसरे पार्ट्स के इन्फेक्शन से बचें।
इलाज है पॉसबिल
लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव लाकर खुद ही इस प्रॉब्लम को मैनेज किया जा सकता है। लेकिन जब दिक्कत बढ़ जाती है, तो दवाओं के ऑप्शन पर जाना पड़ता है। लेकिन जब दवाओं से भी बात न बने, तो सर्जरी की नौबत आ जाती है। बीमारी जब ज्यादा अडवांस स्टेज में पहुंच जाए, जो जॉइंट रिप्लेसमेंट का ही ऑप्शन बचता है(सरोज धूलिया,नभाटा,दिल्ली,24.5.12)।
badhiya jankari hai.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya baat batayi aapne....sukriya
जवाब देंहटाएंअपनी माँ की तकलीफ देख कर कह सकती हूँ...
जवाब देंहटाएंprevention is better than cure.
अपना और अपनी हड्डियों का ख्याल रखें...
आभार इस पोस्ट के लिए.
अनु
बढती इन्सिडेन्स के लिए बदलती जीवन शैली जिम्मेदार है .
जवाब देंहटाएंयही कारणों से बचा जाए तो प्रिवेंशन पोसिबल है .
अच्छी सूचना -
जवाब देंहटाएंत्वरित कार्यवाही जरुरी ।
आभार ।।
बहुत ही अच्छी एवं उपयोगी जानकारी ... आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी आभार !
जवाब देंहटाएंअपने इर्द गिर्द कई लोगों को इस बीमारी से पीड़ित पाया है,कुछ सुझाव पहले भी दिए थे ,इसी प्रकार के लेख पढ़कर,इस लेख में और जानकारियां मिली उन्हें अवगत कराऊंगा ताकि कुछ आराम मिल सके. जानकारी भरे लेख के लिए बहुत आभार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसावधानी अति आवश्यक है... सचेत एवं ज्ञानवर्धन करता पोस्ट...
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
अच्छी जानकारी देता ,उपयोगी पोस्ट,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
बहुत बढ़िया जानकारी
जवाब देंहटाएंआभार ....
:-)
पीड़ित लोगों का कष्ट देख कर बहुत बुरा लगता है ,कितना अच्छा हो शुरू से ध्यान दिया जाय.
जवाब देंहटाएंसावधानी रखे जाने के लिये उपयोगी इस पोस्ट हेतु आभार -बहुतों का भलान होगा !
बढ़िया जानकारी, सच है पहले ही संभलना होगा
जवाब देंहटाएंआपका आभार !
जवाब देंहटाएंआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है प्लस ३७५ कहीं माइनस न कर दे ... सावधान - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत उपयोगी जानकारी !
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी दी है |
जवाब देंहटाएंजो पीड़ित है वही इस बिमारी की भयावहता समझ सकता है|
जवाब देंहटाएंपिछले डेढ़ वर्ष से मैं भी इस बिमारी से पीड़ित हूँ,कभी आर.ऐ बढ़ा तो कभी यूरिक एसिड| सही डाक्टर की तलाश में ही आठ महीने लग गए और रोग बढ़ता गया लेकिन अब सही हाथों से इलाज हो रहा है, एक वैध जी के आयुर्वेद इलाज से आर.ऐ जिसे एलोपेथ लाइलाज कहते है नेगिटिव हो गया है कभी कभार यूरिक एसिड बढ़ जाता है पर वो थोड़ी दवा लेने व खान-पान पर ध्यान रखने से काबू हो जाता है|
कुल मिलाकर अभी तो इस खतरनाक बिमारी पर काबू पा रखा है|