मंगलवार, 5 जून 2012

काम के दौरान कैसा रहता है आपका पॉस्चर?

ऑफिस में काम करने वाले ज्यादातर लोग सात से नौ घंटे तक का डेस्क जॉब करते हैं , यानी घंटों तक एक ही जगह पर बैठकर काम करते हैं। लगातार एक ही पोजिशन में बैठकर काम करना सेहत के लिहाज से काफी नुकसानदेह है। इससे बचने और नुकसान होने पर सुधार के लिए हमें क्या करना चाहिए , एक्सपर्ट्स से बात करके बता रही हैं प्रियंका सिंह : 

ऑफिस में काम करने के दौरान कौन - सा पॉस्चर होना चाहिए , यह मेडिकल साइंस का एक बड़ा अहम सब्जेक्ट है , जिसे अर्गोनॉमिक कहा जाता है। कई देशों में इसकी अलग - से पढ़ाई भी होती है , मसलन ब्रिटेन में पांच साल का अर्गोनॉमिक कोर्स होता है। कंप्यूटर ऑपरेटर , डेस्क जर्नलिस्ट , बैंक प्रफेशनल्स , डॉक्टर , रिसेप्शनिस्ट आदि तमाम ऐसे प्रफेशन हैं , जिनमें एक ही जगह पर बैठकर कंप्यूटर पर लंबे समय तक काम करना होता है। अगर बैठने और काम करने के दौरान सावधानियां नहीं बरती जाएं तो सेहत से जुड़ी कई तकलीफें हो सकती हैं। 

हो सकती हैं ये तकलीफें 
शरीर के किसी भी हिस्से को अगर एक ही रेंज में बहुत ज्यादा इस्तेमाल करेंगे तो आरएसआई ( रिपिटेटिव स्ट्रेस इंजरी ) हो सकती है , यानी जिस हिस्से का लगातार इस्तेमाल एक ही रेंज में हो रहा है , उसे नुकसान हो सकता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि कंप्यूटर पर लगातार लंबे समय तक काम करने से उंगलियों , कुहनी आदि का मूवमेंट लगातार एक ही जैसा होता है। इससे इन हिस्सों पर प्रेशर ज्यादा होता है , जिससे दर्द की आशंका बढ़ जाती है। एक ही पोजिशन में लगातार काम करने से कई समस्याएं हो सकती हैं , जैसे कि : 

 1. सिर दर्द 
 2. मांसपेशियों में दर्द 
 3. कमर दर्द
 4. गर्दन और कंधों में दर्द 
 5. स्पॉन्डिलोसिस ( जोड़ों में टूट - फूट ) 
 6. एनक्लोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस ( स्पाइन में सूजन और जकड़न ) 
 7. घुटने में दर्द 
 8. हाथों में सुन्नी 
 9. आंखों में ड्राइनेस या स्ट्रेन 

लेवल और दूरी बनाए रखें 
1. अगर डेस्कटॉप और लैपटॉप , दोनों का ऑप्शन हो तो डेस्कटॉप पर काम करना बेहतर है। डेस्कटॉप की जगह एक तरह से फिक्स्ड रहती है , जिससे आमतौर पर पॉस्चर बेहतर पोजिशन में रहता है। लैपटॉप पर काम करते हुए अक्सर लोग पॉस्चर का ध्यान नहीं रखते। 
2. कंप्यूटर और कुर्सी की पोजिशन ऐसी हो कि स्क्रीन पर देखने के लिए झुकना न पड़े और न ही गर्दन को जबरन ऊपर उठाना पड़े। मॉनिटर की टॉप लाइन आई लेवल के बराबर या हल्का - सा नीचे हो। अगर बाई - फोकल लेंस पहनते हैं तो स्क्रीन थोड़ा और नीचे रखें। 
3. कीबोर्ड टेबल के ऊपर रखने की बजाय कीबोर्ड ट्रे में रखें। ध्यान रखें कि कीबोर्ड कुहनी के लेवल या उससे हल्का - सा नीचे हो। माउस को की - बोर्ड के पास ही रखें। अगर माउस दूर रखा है तो शॉर्ट कट की का ज्यादा इस्तेमाल करें। दूर होने से बार - बार हाथ को उठाकर वहां तक ले जाना सही नहीं हैं। 
4. काम करते हुए कुहनी और हाथ आर्म रेस्ट पर रखें। इससे कंधे रिलैक्स रहते हैं और उन पर प्रेशर नहीं पड़ता। 
5. जब भी टाइप करें , ध्यान रखें कि कुहनी को पूरा सपोर्ट मिले। हाथ हवा में रखकर टाइपिंग करना बिल्कुल गलत है। कुर्सी जितनी टेबल के पास हो , उतना अच्छा है। ऐसे में मॉनिटर को पीछे रखें ताकि आंखों और मॉनिटर के बीच अच्छा फासला बना रहे। 
6. टाइपिंग खूब करनी है तो लाइट टच वाला कीबोर्ड बेहतर है। टाइप हमेशा उंगलियों की टिप से करें। हो सकें तो महिलाएं नाखून काटकर रखें , वरना उंगलियों के पोरों में दर्द हो सकता है। 
7. काम के दौरान फोन पर लंबी बात करनी है तो स्पीकर फोन रखें या हेड फोन लगाकर बात करें। कान पर फोन लगाकर कंप्यूटर पर काम न करें। 
8. कागज पर पढ़ने - लिखने का काम करते हैं , तो स्लोपिंग डेस्क का इस्तेमाल करें। इससे न तो बहुत झुकना पड़ता है , न ही शरीर तनकर बहुत पीछे रहता है। 

ब्रेक तो बनता है 
लगातार काम करने से शारीरिक बीमारियां होने के चांस तो होते ही हैं , काम करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। 30 मिनट में एक बार 2-3 मिनट का ब्रेक लें। अगर आधे घंटे में ब्रेक नहीं लेते तो घंटे भर में 5 मिनट का ब्रेक ले सकते हैं। जब भी मुमकिन हो , ऑफिस में छोटे - मोटे कामों के बहाने चलें। मसलन फोन पर ऑर्डर देने की बजाय चाय लेने खुद कैंटीन चले जाएं , पानी की बोतल खुद भर लाएं आदि। 

रखें ध्यान 
1. जिन्हें दर्द नहीं है लेकिन डेस्क जॉब में हैं और चाहते हैं कि उन्हें कमर दर्द न हो , उन्हें रस्सी कूदना , सीढि़यां चढ़ना - उतरना , वॉकिंग , जॉगिंग , रनिंग , स्विमिंग , साइक्लिंग , आदि करना चाहिए। इससे दर्द होने की आशंका कम हो जाएगी। 
2. रोजाना स्ट्रेचिंग एक्सर्साइज करें। सुबह पूरी बॉडी को स्ट्रेच करें। ध्यान रहे कि मसल्स बहुत ज्यादा न खींचें। इससे मसल्स में लचीलापन बना रहता है। फिटनेस के लिए अरोबिक्स ( रनिंग , जॉगिंग , साइक्लिंग , स्विमिंग आदि ) और मजबूती के लिए स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज ( वेट लिफ्टिंग आदि ) जरूर करें। स्ट्रेचिंग रोजाना करें। हफ्ते में चार दिन अरोबिक्स और बाकी तीन दिन स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज करें। 

दर्द हो जाए तो ... 
अगर दर्द हो जाए तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। फौरन ऐसा मुमकिन नहीं है तो क्रढ्ढष्टश्व का फॉर्म्युला अपनाएं। Rest: आराम करें। ज्यादा घूमें - फिरें नहीं , न ही देर तक खड़े रहें। 

Ice: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।

Compression: घुटने पर क्रेप बैंडेज या नी कैप लगाएं। बैंडेज ज्यादा टाइट या लूज न हो। 

Elevation: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे। एक - दो दिन बतौर पेनकिलर क्रोसिन ले सकते हैं। साथ में वॉलिनी , मूव , वॉवेरन जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से मालिश कर सकते हैं। 

आंखें हैं अनमोल , आंखों को आराम जरूरी 

 1. कंप्यूटर और आंखों के बीच में एक मीटर का फासला होना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता तो भी मॉनिटर और आंखों के बीच डेढ़ - दो फुट का फासला जरूर होना चाहिए। 

 2. कंप्यूटर की स्क्रीन का टॉप वाला हिस्सा आई लेवल की ऊंचाई पर होना चाहिए। इससे गर्दन और कमर पर दबाव नहीं पड़ता। 

 3. फॉन्ट साइज ठीक ( थोड़ा बड़ा ) होना चाहिए। स्क्रीन की चमक भी ठीक होनी चाहिए। स्क्रीन पर ऐंटी ग्लेअर ( चौंधरहित ) शीट या ऐंटी ग्लेयर ग्लास भी लगा सकते हैं , हालांकि पुराने स्क्रीनों में ही इनकी जरूरत होती है , फ्लैट स्क्रीन या एलईडी वगैरह में नहीं। 

 4. मॉनिटर को लगातार देखते नहीं रहें। आंखों का झपकना जरूरी है , वरना आंखों में ड्राइनेस या आई स्ट्रेन हो जाता है। आंखें लाल हो जाती हैं और उनमें खुजली होती है। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं। 

 5. चश्मे का कम - से - कम नंबर भी है तो उसे जरूर लगाएं , 0.25 नंबर भी। पहले से चश्मे का इस्तेमाल करते हैं तो भी चेक कराते रहें कि चश्मे का नंबर बढ़ तो नहीं गया है। साल में एक बार आंखों का चेकअप जरूर कराएं। 

 6. आंखों में लुब्रिकेशन या थकान दूर करने के लिए इजी टियर्स , रिफ्रेश टियर्स (Refresh Tears), सस्टेन (Systane), टियर्स प्लस (Tears Plus), जेंटील (Genteal) आदि आई ड्रॉप्स डाल सकते हैं। इनमें से किसी एक दवा की एक - एक बूंद रात के वक्त आंखों में डाल सकते हैं या जब भी आंखों में थकान महसूस तो भी इसे यूज कर सकते हैं। दवा की शीशी एक बार खोल लेने के बाद उसे एक महीने तक ही इस्तेमाल करें। इसके बाद दवा बची होने के बावजूद यूज न करें। यह नियम किसी भी आईड्रॉप पर लागू होता है। 

 7. चाहें तो आंखों में दिन में एक - दो बार गुलाब जल भी डाल सकते हैं। रुई के फाहे बनाकर गुलाब जल में भिगोकर आंखों पर रखने से भी आराम मिलता है। गुलाबजल अच्छी क्वॉलिटी का ही खरीदें। 

 8. आंखों को आराम देने के लिए 20-20 गेम खेल सकते हैं। 20 मिनट तक स्क्रीन पर फोकस करने के बाद 20 सेकंड के लिए नजर वहां से हटाएं और खुद से 20 फुट दूर पर स्थित किसी चीज पर फोकस करें या फिर हर 20 मिनट के बाद 20 बाद पलकों को झपकें। 

 9. टी -20 की तरह स्ट्रैटजिक टाइम आउट भी लेते रहें यानी काम के दौरान हर घंटे आंखों को 3-5 मिनट के लिए आराम दें। 

 10. आंखें पास की चीजों पर फोकस करती हैं तो उन्हें ज्यादा काम करना पड़ता है। ऐसे में बीच - बीच में दूर की चीजों पर नजर फोकस करना जरूरी है। 

 11. दोनों हथेलियों को आपस में 30 सेकंड तक रगड़ें। हथेलियां हल्की गर्म हो जाएंगी। इनसे दोनों आंखों को बंद कर लें। आंखें इस तरह बंद करनी है , जिससे रोशनी आंखों तक न पहुंचे। इस स्थिति में दो मिनट रहें। इससे थकी आंखों को काफी आराम मिलता है। ऐसा दिन में दो - तीन बार कर सकते हैं। 

 12. काम के बीच - बीच में आंखें बंद कर बैठें। 10 सेकंड के लिए ऐसा करें और फिर काम करें। दरअसल , खुली आंखें ऊर्जा को बाहर फेंकती हैं , जबकि बंद आंखें ऊर्जा को हासिल करती हैं। आंखें बंद करने से न सिर्फ आंखों को , बल्कि मन को भी सुकून मिलता है। 

 13. आंखों की भवों को पकड़कर दबाते हुए आंख के चारों तरफ हल्की मालिश करें। इससे आंख के अंदर खून काबहाव बढ़ेगा व आंखों का तनाव चला जाएगा। 

 14. आंखों को जल्दी - जल्दी खोलें और बंद करें। ऐसा 15 से 20 बार कर सकते हैं। 

 15. आंखों को क्लॉकवाइज और ऐंटि - क्लॉजवाइज दिशा में घुमाएं। क्लॉकवाइज एक बड़ा जीरो बनाएं। ऐसा ही जीरो ऐंटी - क्लॉकवाइज बनाएं। 10-10 बार दोनों तरफ से कर लें। दिन में दो से तीन बार तक कर सकते हैं। 

 16. पेन या पेंसिल को हाथ में पकड़कर खुद से दूर ले जाएं। फिर उसे सीधे पकड़कर उसकी टिप को धीरे - धीरे अपने करीब लाएं। जहां इमेज डबल हो या धुंधली हो , वहां एक इमेज में तब्दील करने की कोशिश करें। हल्के - हल्के नाक के पास तक लाने की कोशिश करें। इससे आंखों की मसल्स की एक्सर्साइज होगी। 

 17. हाथ के अंगूठे को आंखों से करीब 15 सेमी दूर रखें और अंगूठे के टिप पर फोकस करें। गहरी लंबी सांस लें और जाने दें। इसके बाद करीब चार मीटर की दूरी पर रखी किसी चीज पर आंखों को फोकस करें। फिर लंबी - गहरी सांस लें और छोड़ दें। इस प्रॉसेस को तीन - चार बार दोहरा सकते हैं। 

नोट : आंखों को दिन में जितनी बार हो सकें , साफ और नॉर्मल या ठंडे पानी से धोएं। आंखों पर पानी के छींटे मार सकते हैं , लेकिन जोर से न मारें। जोर से मारने से कॉनिर्या को नुकसान हो सकता है। 

कंप्यूटर के सामने ऐसे बैठें 
1. सिर और शरीर सीधा रहे। 

2. कुर्सी की बैक ऐसी हो कि वह कमर के कर्व्स को सपोर्ट करे।

3. कुहनी आर्म रेस्ट पर रखकर ही काम करें। 

4. कुर्सी अजस्टबेल और घूमने वाली हो। 

5. कंप्यूटर स्क्रीन आंखों की सीध में या हल्का सा नीचे हो , स्क्रीन पर चमक और फॉन्ट साइज का ध्यान रखें। 

6. की-बोर्ड ट्रे पर रखा हो। कीबोर्ड सॉफ्ट हो और उंगलियां रिलैक्स हों। 

7. पैरों की ऊंचाई 90 डिग्री या उससे ज्यादा हो। 

8. पैरों के नीचे फुट रेस्ट रखना बेहतर है।

कैसी हो कुर्सी 
1 . मुमकिन है तो अर्गोनॉमिक तरीके से डिजाइन किया गया फर्नीचर चुनें। बड़े ब्रैंड्स इस तरह के टेबल - चेयर आदि तैयार करते हैं। ऐसा नहीं है तो मौजूदा कुर्सी को अपने मुताबिक अजस्ट कर लें। 

2. ध्यान रखें कि कुर्सी की सीट इतनी बड़ी हो कि बैठने के बाद घुटने और सीट के बीच बस तीन - चार इंच की दूरी हो , यानी सीट चौड़ी हो। बैठते हुए पूरी थाइज को सपोर्ट मिलना चाहिए , लेकिन कुर्सी इतनी ज्यादा गहरी भी न हो कि घुटने का पीछे वाला हिस्सा कुर्सी के नीचे वाले हिस्से को छूता रहे। 

3. कुर्सी की बैक बिल्कुल सीधी होने की बजाय 10 डिग्री पीछे की ओर झुकी हो। आर्म रेस्ट जरूर हो और उसकी हाइट कुहनी से थोड़ी नीची होनी चाहिए। अगर आर्म रेस्ट ज्यादा ऊंचा है तो कुहनी को परेशानी होगी। रोटेटिंग ( घूमनेवाली ) चेयर बेहतर है। 

4. कुर्सी पर बैक रेस्ट लगाना चाहिए। जिन्हें दर्द है , उन्हें भी और जिन्हें दर्द नहीं है , उन्हें भी बैक रेस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर बैक रेस्ट का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो बहुत छोटा - सा कुशन कमर के पीछे लगाना चाहिए ताकि कमर के नीचे वाले हिस्से को सपोर्ट मिल सके। 

5. कमर को सीधा रखकर और कंधों को पीछे की ओर खींचकर बैठें , लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अकड़कर बैठें। कुर्सी के पीछे तक बैठें और हिप्स कुर्सी की पीठ से सटे रहें। खुद को ऊपर की तरफ तानें और अपनी कमर के कर्व को जितना मुमकिन हो , उभारें। कुछ सेकंड के लिए रोकें। अब पोजिशन को थोड़ा रिलैक्स करें। यह एक अच्छा सिटिंग पॉस्चर होगा। अपने शरीर का भार दोनों हिप्स पर बराबर बनाए रखें। 

6. कुर्सी पर बैठे हैं तो ध्यान रखें कि घुटनों का लेवल करीब 90 डिग्री या उससे ऊंचा हो यानी घुटने जंघा की ऊंचाई से थोड़ा ऊपर ही हों , नीचे नहीं। अगर पैरों का लेवल नीचे हो तो पैरों के नीचे फुट - रेस्ट लगाना चाहिए।  

कौन - सी एक्सर्साइज करें 

1 . काम करते वक्त बीच - बीच में करीब दो घंटे में बैठे - बैठे या खड़े होकर एक्सर्साइज करें। अगर उठकर जाना मुमकिन नहीं है तो भी बैठे - बैठे एक्सर्साइज जरूर करें। इससे खून का दौरा चलता रहेगा। 

2. पंजों और एड़ियों को चलाएं। आगे - पीछे झुकाएं। फिर क्लॉक वाइज और ऐंटी क्लॉक - वाइज गोल - गोल घुमाएं। 

3. कुर्सी पीछे कर पैरों को स्ट्रेच करें। काफ मसल्स को खासकर स्ट्रेच करें। इन्हें सेकंड हार्ट भी कहते हैं। जब हम चलते हैं तो ये ब्लड को ऊपर की ओर पंप करती हैं। लंबे समय तक इस्तेमाल न किया जाए तो काफ मसल्स सूज जाती हैं। 

4. गर्दन की एक्सर्साइज भी करें। छत की ओर देखें। फिर दोनों दिशाओं में गोल - गोल घुमाएं। 

5. दोनों हाथों को वेस्ट लाइन पर रखकर पीछे की तरफ झुकें। 

6. दोनों कंधों को बांधकर पीछे की ओर खींचें। दोनों साइड में एक - एक कर झुकें। 

7. दोनों हाथों को उठाकर कंधे पर रखें और कुहनियों को घुमाकर जीरो बनाएं। इससे मसल्स लचीली बनी रहती हैं।

8. हाथों की मुट्ठी बांधें और खोलें। गोल - गोल घुमाएं। उंगलियों को स्ट्रेच करें। 

9. कमरे या वॉशरूम के कोने में चले जाएं। कोने की ओर मुंह कर लें। दोनों हाथों को अलग - अलग दीवारों पर रख लें। आगे की ओर ताकत के साथ झुकें। 

नोट : ऊपर दी गई एक्सर्साइज कंप्यूटर पर लंबे समय तक काम करने वाले लोगों के लिए हैं , जिन्हें वे ऑफिस में ही कर सकते हैं। हालांकि यह पूरा एक्सर्साइज प्रोग्राम नहीं है। हर किसी को रोजाना एक्सर्साइज करनी चाहिए। 

रोजाना करें वर्कआउट 
1. सीधे खड़े हो जाएं। सांस भरते हुए गर्दन को धीरे - धीरे जितना मुमकिन हो , पीछे ले जाएं। 5 सेंकड रुकें फिर सांस छोड़ते हुए गर्दन को धीरे - धीरे जितना मुमकिन हो , आगे की तरफ झुकाएं। कोशिश करें कि ठोड़ी छाती से लग जाए। दर्द है तो गर्दन आगे नहीं झुकानी है। 

 2. सीधे खड़े हो जाएं। अब गर्दन को क्लॉक - वाइज और ऐंटी - क्लॉकवाइज घुमाएं। धीरे - धीरे करें और जब पीछे की ओर जाएं तो सिर अधिकतम पीछे की तरफ ले जाएं। ऐसा ही आगे की तरफ भी करें। ऐसा 10-10 बार करें। 

 3. सीधे खड़े हो जाएं और अब गर्दन को लेफ्ट कंधे की तरफ अधिकतम जितना हो सके , धीरे - धीरे झुकाएं। फिर गर्दन को वापस बीच में ले आएं और फिर राइट की ओर ले जाएं। ऐसा 10 बार करें। 

 4. थोड़ी ऊंची कुर्सी पर बैठ जाएं। कमर सीधी हो। लेफ्ट पैर को उठाकर सीधा करें और जितना हो सके , खीचें। 10 सेकंड रोकें। फिर पैर को नीचे ले आएं। ऐसा ही राइट पैर से भी करें। 10-10 बार करें। 

एक्सपर्ट्स पैनल 
डॉ . पी . के . दवे , चेयरमैन , रॉकलैंड हॉस्पिटल 
डॉ . महिपाल सचदेव , चेयरमैन , सेंटर ऑफ साइट 
डॉ . राजीव अग्रवाल , इंचार्ज , न्यूरो फिजियोथेरपी यूनिट , एम्स (नवभारत टाइम्स,दिल्ली,27.5.12)।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया जानकारी.......................
    शुक्रिया.

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  2. सभी आफिसियल्स के साथ साथ ब्लागर मित्रों के लिए भी अत्यंत लाभदायक पोस्ट....
    सादर आभार।

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  3. अच्छी उपयोगी पोस्ट ....सभी निर्देश बारिकिसे ध्यान देने योग्य है !

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  4. बताये बिन्दुओ को अमल में लाया जाय तभी तो इसका फायदा है,,,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  5. बहुत ही उपयोगी एवं सार्थक प्रस्‍तुति।

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  6. यह आलेख मेरे बड़े काम का है।
    पीठ में दर्द शुरू हुआ तो डॉक्टर ने कहा पोस्चर पेन है।
    आपने तो सुझावों के लंबी फ़ेहरिश्त दे दी है। अमल करते हैं।

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  7. अच्छी बात तब होगी मित्र जब कि आप ईमेल से सदस्यता लेने वाला विकल्प बनायेंगे। क्योंकि आजकल किसी के पास इतना टाइम नहीं होता है कि वह एक दिन में सैकड़ों वेबसाइटों को याद करके खोले।

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  8. उत्तर
    1. आपकी प्रोफाइल में आपके ब्लॉग का लिंक नहीं है। कृपया देखें।

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  9. बहुत बधिय जांकारी दी आप ने

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