सरोगेट मदर्स यानी वे माएं, जो किराए की कोख उपलब्ध कराती हैं। इन मांओं के बारे में सबसे ज्यादा वे दंपत्ति खोजबीन करते हैं, जिनके संतान नहीं। सरोगेट मदर्स तय रकम पर ऐसे दंपत्तियों के लिए बच्चे जनती हैं। पहली निगाह में औरों की तरह मुझे भी यह जनकल्याण ही लगा। भले इसमें किराए पर कोख ही क्यों न दी जाती हो, जोकि अपने को परम नैतिक मानने-बताने वाले भारतीय समाज में एक अपवाद सरीखा है। हालांकि इसी परंपरागत भारतीय पारिवारिक ढांचे में यह भी मुमकिन होता रहा है कि जिन दंपत्तियों के बच्चे नहीं होते थे, उनके लिए उनके भाई आदि अपने बच्चे छोड़ देते थे। उसमें एक भावनात्मक तार बंधा रहता था। लेकिन जैसे-जैसे भारतीय परिवार का ताना-बाना टूटा है, यह आपसदारी भी खत्म हुई है।
सरोगेसी ने इस आपसदारी को एक प्रफेशनल स्वरूप दिया। दूसरों के लिए बच्चे जनने के लिए बाकायदा डील होने लगी। लेकिन इसके साथ कुछ दिक्कतें भी सामने आ रही हैं। सबसे पहली और बड़ी दिक्कत यह है कि प्रफेशनल सरोगेसी के अब धंधे चल पड़े हैं। गुजरात के आणंद में एक हवेलीनुमा घर में महिलाओं को जुटा उन्हें औने-पौने दाम देकर सरोगेसी के लिए राजी करा लिया जाता था। ऐसा करके सरोगेसी के ठेकेदार हर जगह खूब पैसे बना रहे हैं। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे गरीब मुल्कों में यह बतौर धंधा बहुत तेजी से फल-फूल रहा है। ठेकेदारों को विदेशों से क्लाइंट मिल रहे हैं। उन्हें बड़ी रकम दी जा रही है। रिपोर्ट कहती हैं कि डॉक्टर और सरोगेसी के ठेकेदारों की मिलीभगत से इस धंधे ने इतना जोर पकड़ा हुआ है कि अकेले भारत से हर साल करीब 25 हजार बच्चे सरोगेसी के जरिए पैदा हो रहे हैं। इनमें से ज्यादातर को विदेश भेजा जाता है। यानी मामला सिर्फ पस-पड़ोस में नि:संतान दंपत्तियों की दिक्कतें कम करने की जनकल्याण वाली भावना से कहीं आगे का हो चला है।
इसी से जुड़ा एक दूसरा पहलू यह है कि आणंद में ही जब एक सरोगेट मदर को प्रेग्नेंसी के दौरान दिल का दौरा पड़ा तो डॉक्टरों ने मां को बचाने की बजाय सबसे पहले उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को बचाने की कोशिश की और इस तरह मां की जान चली गई। जाहिर है, यह उस डील के तहत ही हुआ, जिसमें हर हाल में सरागेट मदर से एक स्वस्थ बच्चा पा लेने के लिए डॉक्टर को एक मोटी रकम अदा की गई थी।
इन सबसे जुदा बात यह है कि एक बच्चा जनने में औरत को जिन तकलीफों से दो-चार होना पड़ता है, उसके शरीर के भीतर जितने हॉर्मोनल बदलाव होते हैं, उसके मन में बच्चे के प्रति जो एक भावनात्मक लगाव पैदा होता है, उसे सरोगेसी के नजरिए से कितना समझा गया है? क्या मां और बच्चे के कुदरती रिश्ते को साइंस के जरिए या चंद रुपयों के बूते बदला जा सकता है?
मुझे लगता है कि सरोगेसी पर दबे-छुपे जो धंधे चल रहे हैं, उस पर स्थानीय प्रशासन को सख्त होना चाहिए। इस पर सरकार ने एक बिल लाने का प्रस्ताव किया है, जिसमें किसी भी महिला को सरोगेट मदर बनने का हक सिर्फ 3 दफा ही होगा। मेरा खयाल है कि एक ऐसे समय में, जब हमारे पास बहस के कई फोरम हैं, हमें सरोगेसी पर भी एक सामूहिक राय जरूर बनानी चाहिए। एक ऐसी राय , जो जनकल्याण को जनकल्याण ही रहने दे, उसे किसी धंधे या ठेकेदारी में तब्दील होने से रोके।
(प्रसून जोशी,नभाटा,दिल्ली,3.6.12)।
इंडिया को नया नाम मिला है- सरोगेसी के लिए सबसे पसंदीदा मुल्क। यहां के आसान कानून, बल्कि कहें कि कानून की गैरमौजूदगी, बढ़िया हेल्थ सर्विस और किफायत के चलते दुनिया भर से बेऔलाद माता-पिता भारत आ रहे हैं और अपना सपना पूरा कर रहे हैं। गुजरात का आणंद तो सरोगेसी की वर्ल्ड कैपिटल बन गया है।
क्या है सरोगेसी
गर्भधारण में दिक्कत होने की वजह से जो लोग मां-बाप नहीं बन पाते, वे किराए की कोख से बच्चा पैदा करते हैं। यही सरोगेसी है। पैरेंट्स के स्पर्म और एग को बाहर फर्टिलाइज करके सरोगेट मदर के गर्भ में पहुंचा दिया जाता है।
पैदा हो गईं दिक्कतें
केस एक: जापानी पैरंट्स के लिए एक सरोगेट मदर ने गुजरात में मांजी यामादा को जन्म दिया। प्रेग्नेंसी के दौरान पैरेंट्स का तलाक हो गया। मांजी की नानी ने उस पर अपना दावा जताया और भारत आई। एक एनजीओ ने जयपुर हाई कोर्ट से गुजारिश की कि मांजी पर किसी का हक नहीं होना चाहिए, क्योंकि भारत में सरोगेसी का कोई कानून है ही नहीं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, जिसने मांजी को जापान जाने के लिए कागजात जारी करने का आदेश दिया।
केस दो: जर्मनी के जान बलाज और सूसन ने गुजराती सरोगेट मदर के जरिए जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। अचानक अड़चन खड़ी हो गई, क्योंकि जर्मनी में सरोगेसी को मान्यता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी कि दंपती बच्चों को अडॉप्ट कर लें।
मिल्क कैपिटल से सरोगेसी कैपिटल
-गुजरात का आणंद शहर अब दुनिया की सरोगेसी कैपिटल के तौर पर फेमस हो चुका है। अब तक इसे अमूल के हेडक्वॉर्टर के तौर पर जाना जाता था।
-यहां करीब 160 फर्टिलिटी सेंटर सरोगेसी सर्विस देते हैं। हर साल करीब 300 सरोगेसी के मामले होते हैं। मुंबई इस होड़ में दूसरे नंबर पर है।
-नैशनल जियोग्राफिक चैनल ने आणंद पर डॉक्युमेंटरी बनाई है। इसमें आणंद को वूंब ऑफ द वर्ल्ड (दुनिया का गर्भ) कहा गया है।
सरोगेसी के लिए भारत क्यों हिट है
-अमेरिका में सरोगेसी की लागत 1.20 लाख डॉलर (54.67 लाख रु.) तक हो सकती है, जबकि भारत में इसका खर्च 10 से 25 लाख रुपये के बीच ही है। इसमें पैरंट्स की भारत यात्रा, रिहाइश, खातिरदारी, सैर, सरोगेट मदर का मेहनताना, हॉस्पिटल कॉस्ट और मां की देखरेख सभी खर्चे शामिल हैं। सिंपल सरोगेसी की लागत आणंद में 7 लाख रुपये है।
-भारत में सरोगेसी पर किसी तरह की पाबंदी लगाने वाला कोई कानून नहीं है। ब्रिटेन और कुछ दूसरे देशों में सरोगेट मदर को मां का दर्जा मिलता है, जबकि भारत में इच्छुक पैरंट्स का नाम बर्थ सटिर्फिकेट पर होता है। फिर समझौते से मुकरने का खतरा भी यहां नहीं है। अमेरिका में सरोगेसी का समझौता बाध्यकारी नहीं होता।
-फ्रांस, नीदरलैंड्स और नॉर्वे यूरोपीय देशों में कमर्शल सरोगेसी की इजाजत नहीं है।
-2008 का ड्राफ्ट एआरटी बिल एक गाइडलाइन पेश करता है। इसके मुताबिक, बर्थ सर्टिफिकेट में इच्छुक पैरंट्स का नाम होना चाहिए, जिससे उनका हक मान्य हो जाएगा। सिंगल पैरंट्स को भी सरोगेसी के जरिए बच्चा पाने का हक होगा।
सरोगेट मदर की जिंदगी
-सरोगेट मदर को 2 से 3 लाख रुपये मिलते हैं।
-ये महिलाएं लोअर इनकम ग्रुप से होती हैं। यह इनके लिए आमदनी का अच्छा जरिया बन रहा है।
-प्रेग्नेंसी के दौरान उनका पूरा खयाल रखा जाता है। बेहतरीन डाइट दी जाती है। आणंद में इनकी तादाद 300 है।
सरोगेसी टूरिज़म
-सरोगेसी ने टूरिजम की शक्ल अख्तियार कर ली है। इच्छुक पैरेंट्स को टूर ऑपरेटर पूरा पैकेज ऑफर करते हैं। भारत के नर्सिंग होम्स से उनका संपर्क रहता है।
-पैरेंट्स इस दौरान सरोगेट मदर से मिलते रह सकते हैं, अपने बच्चे को बढ़ता देख सकते हैं, धार्मिक कर्मकांड भी पूरे कर सकते हैं(नभाटा,दिल्ली,18.5.12)।
डॉ. साहब,
जवाब देंहटाएंजानकारी की दृष्टि से ये आलेख काफी महत्वपूर्ण है.... आभार.
महत्त्व पुर्ण विचारणीय प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी एक विस्तृत रिपोर्ट है !
जवाब देंहटाएंअद्भुत जानकारी दी है आपने।
जवाब देंहटाएंसृजन का यह श्रेयस्कर कार्य भी अब व्यापार का माध्यम बनता जा रहा है - अधिकतर शिकार ,निम्न आयवर्ग की महिलायें .लोक चेतना के अभाव में ऐसा बहुत कुछ होता है जो प्रतिबंधित होना चाहिये .
जवाब देंहटाएंgaribi kae kaarna yae vyapaar ban gayaa haen
जवाब देंहटाएंkuchh din pehlae padhaa thaa ki 4 laakh tak ek surrogate mother ko miltaa haen aur us ne kehaa thaa wo 3 baar aesaa karaegi kyuki uskae pati ki aamdani kam haen aur wo apnae bachcho ko uchit aur uchhi shiksha dilwaana chahtee haen
dusri baat
surogacy ki jagah adoption behtar haen lekin jab amir khaan jaese log surogacy ko badhaavaa daetae haen aur apnae liye ladka paedaa kartae haen to sochiyae baaki kaa kyaa
teesri baat
kyaa aapnae kahin kuch padhaa haen ki kitnae bhartiyae dampatti is taknik kaa saharaa lae kar "baetae " paedaa kar rahey haen agar koi suchna ho to share karae