कभी घर से शरीर की तुलना करके देखिए, आप पाएंगे कि इसमें काफी समानता है। हाथ-पैरों की हड्डियाँ घर के चार आधार स्तंभ हैं। फेफड़े खिड़कियाँ हैं, मस्तिष्क बिजलीघर है, आंतें पाइप लाइन हैं तथा मुँह एक फूड प्रोसेसर है। सिर के बाल घर के किसी लॉन के समान हैं, तथा चर्बी उस अनावश्यक अटाले जैसी है जिसे पत्नी कई बार बाहर फेंक आने के लिए आपसे झगड़ा तक कर चुकी है।
आमतौर पर घर में किसी ट्यूबलाइट के फ्यूज़ होने पर आप स्वयं ही उसे बदल देते हैं। पाइप चोक हो जाते हैं तो प्लंबर को बुलाने से पहले उसे खुद ठीक करने की कोशिश करते हैं। अगर वाकई कोई गंभीर समस्या आती है तो आप घबरा जाते हैं और किसी विशेषज्ञ की मदद लेते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि आप अब तक जिसे सच मान रहे थे वह वाकई एक झूठ था? आइए आपको बताते हैं कि क्या सच है और क्या झूठ-
मज़बूत शरीर में ही निवास करता है स्वस्थ मस्तिष्क
यही सच भी है। यह मान्यता झूठी है कि वेट ट्रेनिंग से मस्तिष्क की मजबूती का कोई लेना-देना नहीं है। शरीर का संतुलन बनाए रखना भी मस्तिष्क की ताकत को ही प्रमाणित करता है। आप मस्तिष्क की ताकत को एक पैर पर आँख बंद कर खड़े रहते हुए भी बढ़ा सकते हैं। अगर आपकी उम्र ४५ साल से अधिक है और आप २० सेकंड की इस कसरत को सफलतापूर्वक कर पाते हैं तो समझिए कि आपका मस्तिष्क वाकई तंदरुस्त है। वज़न के साथ जिम्नेशियम में की जा रही कसरतों को लेकर लोगों में यह मिथ्या धारणा घर कर गई है कि इससे केवल माँसपेशियाँ ही मज़बूत होती हैं। वेट लिफ्टिंग करने से शारीरिक और मानसिक संतुलन का सामजंस्य पनपता है, जबकि वेट मशीन से नहीं क्योंकि इसमें वज़न फिक्स होता है।
पाखाने के साथ खून निकले तो यह कैंसर की शुरुआत है
नहीं, क्योंकि यह ख़याल ग़लत भी हो सकता है। पाखाने के साथ खून आने के कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं। ध्यान रहे कि एक बूंद खून से पूरा मल लाल दिखने लगता है। अतः केवल इसी आधार पर कैंसर जैसी घातक बीमारी की आशंका करना ग़लत है। मल में खून की मात्रा परखने के लिए मल परीक्षण ज़रूर करना चाहिए।
दस्त अपने आप ठीक होते हैं
हर समय ऐसा नहीं होता। टॉयलेट में बैठे रहकर दस्त बंद होने का इंतजार न करें। इसका इलाज भी करें और पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ लेते रहें। इससे शरीर में पानी की कमी नहीं होगी। दस्त की शुरुआत के साथ ही ओआरएस या जीवन रक्षक घोल भी देते रहें। आंँतों के संक्रमण को दूर करने के लिए चिकित्सक की सलाह से दवाईयाँ लें। उबालकर ठंडा किया हुआ पेयजल वापरें। व्यक्तिगत स्वच्छता पर अधिक ध्यान दें।
भावनाएं हारमोन्स से नियंत्रित होती हैं
यह सही नहीं है। प्रायः इसका उलट होता है। भावनाओं के उतार-चढ़ाव की लय पर हारमोन्स का स्राव कम या अधिक होने लगता है। गर्भवती महिलाएँ शायद इससे सहमत न हों लेकिन समान्य लोगों के लिए सही है। भावनाओं से ही मस्तिष्क में जैवरासायनिक परिवर्तन होते हैं। उदाहरण के तौर पर भय को ही लें। भयभीत होने के साथ ही हमारा मस्तिष्क भय से निपटने के उपाय करने लगता है। इसी तरह खुश होते ही मस्तिष्क शरीर की ग्रंथियों से शांत रखने वाले रसायन निकालने के निर्देश देने लगता है। तनाव एक किस्म के स्ट्रेस हारमोन्स का उत्पादन बढ़ा देता है। अधिक समय तक तनावग्रस्त रहने से मस्तिष्क में याददाश्त से संबंधित हिस्से मरने लगते हैं।
भोजन के स्थान पर विटामिन्स ही क्यों न खा लें?
यह ग़लत धारणा है कि भोजन के स्थान पर विटामिन्स लें तो फिर फलों और सब्जियों की क्या ज़रूरत? यह सोच ही ग़लत है क्योंकि संतरे में सिर्फ विटामिन सी ही नहीं बल्कि कई अन्य फायदेमंद घटक भी होते हैं। यह जानकारी भी सही नहीं कि किसी एक पौष्टिक पदार्थ से कैंसर या दिल की बीमारी का जोखिम नहीं रहेगा। जीवन में संतुलित आहार का कोई विकल्प नहीं है(डॉ. संजीव नाईक,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल तृतीयांक 2012)।
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