गर्दन का दर्द एक आम समस्या है जो अमूमन अपने आप ठीक हो जाती है। लेकिन कई बार दर्द ठीक होने के बजाय बढ़ता ही जाता है। मरीज़ को ऐसा लगता है जैसे कि उसकी गर्दन अकड़ ही गई हो। कभी-कभी दर्द के साथ कंधे या बाजू में जड़ता, जलन भी होती है, इसे सरवाइकल स्पोण्डिलाइटिस कहते हैं। यह गर्दन के स्पाइनल कॉलम अर्थात् मेरुदंड की बीमारी है। मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी कशेरूक नामक अस्थियों से मिलकर बनी होती है। सरवाइकल या गर्दन वाले भाग में कशेरूक के दो भाग होते हैं, एक मुख्य खंड और इसके पीछे तंत्रिका चाप। मुख्य खंड हड्डी का बना सिलेंडर होता है जो पास वाली हड्डियों के सिलिंडर से स्डिक द्वारा अलग होता है। ये डिस्क कार्टिलेज की बनी परतें होती हैं जो कुशन की तरह काम करती हैं और गति में सहायक होती हैं। इस डिस्क का अपक्षय होता है। यह डिस्क टूटकर बाहर निकल जाती है और बराबर वाली कशेरुक पर एक अतिरिक्त बोझ बन जाती है। इस अतिवृद्धि अथवा उभार के कारण तंत्रिकाओं पर पड़ने वाले दबाव से ही गर्दन में दर्द के साथ-साथ दोनों बाहों में झुनझुनी होती है और बाहें सुन्न हो जाती हैं। इसके अलावा,कभी-कभी ठीक से दिखाई नहीं देता है,झनझनाहट होती है औरआँखों के पीछे दर्द होता है। कुछ लोगों के कंधे में दर्द होता है,कुछ पीठ पर
असफलकीय भाग में दर्द की शिकायत करते हैं। गर्दन को घुमाने में तक़लीफ बहुत होती है। मरीज़ अपनी बाईं या दायीं ओर आसानी से नहीं देख सकते। इलाज़ में सामान्य दर्दनिवारक,जैसे-पैरासिटामोल एनालजिन,एस्प्रिन ब्रुफेन असर करती हैं। इसके लिए फिजियोथैरेपी भी महत्वपूर्ण है। इससे काफी राहत मिलती है। इसके साथ ही सरवाइकल कॉलर का भी इस्तेमाल किया जाता है। यह गर्दन के झटकों से बचाती है जिससे रीढ़ की हड्डी को आवश्यक आराम मलता है। यदि रोगी को मधुमेह है तो उसे मधुमेह नियंत्रित रखना बहुत ज़रूरी है(डॉ. इक़बाल मोदी,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल द्वितीयांक 2012)
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