हम सभी ने कभी न कभी एस्प्रीन की टिकिया का प्रयोग ज़रूर किया है। इस निरापद और किफायती औषधि में सामान्य दर्दनिवारक होने के साथ-साथ अन्य औषधीय गुण भी हैं। एस्प्रीन की एक छोटी खुराक जहाँ आपको दिल के दौरे के जोखिम से दूर रख सकती है वहीं वह कैंसर की बढ़त को भी धीमा कर सकती है।
हाल ही में चिकित्सा विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका "लेंसेट" में तीन शोध प्रकाशित हुए हैं जो यह बताते हैं कि विभिन्न तरह के कैंसर के मरीज़ों में एस्प्रीन थैरेपी से मौत का जोखिम ३७ प्रतिशत कम हुआ है। यद्यपि एस्प्रीन थैरेपी सभी मरीज़ों के लिए कारगर हो ऐसा नहीं है लेकिन कई मरीज़ों को इससे फायदा होता है। नियमित रूप से एस्प्रीन थैरेपी लेने वाले कुछ मरीज़ों को फायदे के स्थान पर नुकसान भी झेलना पड़ा। आइए समझते हैं एस्प्रीन के फायदे और नुकसान-
कम होता है स्तन कैंसर का जोखिम
एस्प्रीन थैरेपी से महिलाओं में स्तन कैंसर का जोखिम कम होता है। स्तन कैंसर का इलाज करा चुकी महिलाओं में दूसरी बार यह बीमारी न हो इसमें एस्प्रीन थैरेपी मदद करती है। कुछ मामलों में तो इसे स्तन कैंसर की रोकथाम करते हुए देखा गया है। एक शोध के मुताबिक स्तन कैंसर का इलाज करा चुकी महिलाओं में से एक समूह ने हफ्ते में दो से तीन बार तक एस्प्रीन की हल्की खुराक खाई थी, उन्हें दुबारा कैंसर होने का जोखिम दूसरों के मुकाबले ७१ प्रतिशत तक कम हो गया था। इसी तरह सन २००८ में जर्नल ऑफ नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक जो महिलाएं नियमित रूप से एस्प्रीन का सेवन करती हैं उन्हें स्तन कैंसर का जोखिम १३ प्रतिशत तक घट गया था।
अस्थमा में रोकथाम
फेफड़ों और श्वासरोगों से संबंधित पत्रिका "थोरेक्स" में २००८ में प्रकाशित एक अध्ययन से मालूम हुआ कि ४५ साल से अधिक उम्र की जिन महिलाओँ ने १०० मिलीग्राम एस्प्रीन प्रतिदिन खाई है उन्हें अगले एक दशक तक अस्थमा होने का जोखिम १० प्रतिशत तक कम हो गया है।
क्या है नुकसान
एस्प्रीन की गोलियाँ सिर्फ फायदा ही करती हैं ऐसा नहीं है। शोधकर्ताओं का मानना है कि एस्प्रीन का नियमित सेवन करने वालों को कई तरह की परेशानियाँ भी हो सकती हैं।
दिल की बीमारी का जोखिम घटता है
जर्नल ऑफ क्लिनिकल फार्माकोलॉजी में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि जिन मरीज़ों को पहले दिल का दौरा पड़ चुका है उन्हें एस्प्रीन थेरेपी से दूसरा दौरे को आगे द्रकेलने में मदद मिलती है। दिल के मरीज़ को एस्प्रीन के साथ-साथ आईब्रूफेन नामक औषधि नहीं लेना चाहिए। अमेरिका की संस्था फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने चेतावनी दी है कि आईब्रूफेन एस्प्रीन के प्रभाव को कम करती है।
पार्किंसन्स बीमारी में देती सुरक्षा
न्यूरोलॉजी विज्ञान की पत्रिका में प्रकाशित एक शोध प्रबंध में सुझाया गया है कि जो महिलाएं नियमित रूप से एस्प्रीन का सेवन करती हैं उन्हें पार्किंसन्स नामक रोग से ४० प्रतिशत तक सुरक्षा मिलती है।
प्रोस्टेट कैंसर की जाँच पर असर
नियमित रूप से एस्प्रीन खाने वाले मरीज़ों में प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन का स्तर १० प्रतिशत तक कम हो जाता है जिससे प्रोस्टेट कैंसर की जाँच के नतीजे प्रभावित हो जाते हैं। एस्प्रीन खाने वालों की प्रोस्टेट कैंसर के लिए कराई जाँच के नतीजे ठीक नहीं आते।
सुनने की क्षमता कम होना
अमेरिकन जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि हफ्ते में दो बार नियमित रूप से एस्प्रीन खाने वाले १२ प्रतिशत पुरुषों में सुनने की क्षमता पहले से कम हो गई।
मधुमेह के रोगियों को फायदा नहीं
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक मधुमेह के रोगियों में दिल का पहला दौरा पड़ने से रोकने में एस्प्रीन का सेवन कोई मदद नहीं करता। मधुमेह रोगियों को दिल की बीमारी का जोखिम दूसरों के मुकाबले दो गुना अधिक होता है।
एल्ज़ाइमर से बचाव की उम्मीद
न्यूरोलॉजी की मैगज़ीन में सन २००८ में प्रकाशित एक शोध के अनुसार एस्प्रीन के नियमित प्रयोग के बाद वृद्धावस्था में एल्ज़ाइमर्स नामक बीमारी होने का जोखिम १३ प्रतिशत कम हो जाता है।
पेट की समस्या हो सकती है
लंबे समय तक नियमित रूप से एस्प्रीन लेने पर पेट में छाले होने की आशंका रहती है। कई मरीज़ों की आहार प्रणाली में छाले होने के साथ खून आने की भी शिकायत हो जाती है।
रक्तस्राव का जोखिम है
एप्रीन रक्त के प्लेटलेट की चिपचिपाहट कम करती है। इससे खून में थक्का बनने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। शरीर के किसी हिस्से में चोट लगने या कट जाने पर खून निरंतर बहता रहता है क्योंकि थक्का बनकर वहीं जम जाने की विशेषता खत्म हो चुकी है। ऐसे में यदि ब्रेन हैमरेज यानी मस्तिष्क में रक्तस्राव होने लगे तो मरीज़ की जान बचानी मुश्किल हो जाती है(डॉ. विक्रम राठौर,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल द्वितीयांक 2012)।