हीमोफीलिया एक आनुवांशिक रोग है जिसमें शरीर से खून निकलना शुरु हो तो फिर बहता ही चला जाता है। सामान्य स्थिति में चोंट लगने पर खून बहने लगता है लेकन थोड़ी ही देर में यह जम जाता है और घाव पर खंरेटी बनने लगती है। हीमोफीलिया के मरीज़ में रक्तवाहिनी के क्षतिग्रस्त होने पर खून बहता चला जाता है। खून जमने की प्रक्रिया के लिए फैक्टर ८ व ९ महत्वपूर्ण होते हैं। फैक्टर-८ की कमी से हीमोफीलिया-ए होता है जो इस डिसऑर्डर का आम प्रकार है। यह हर ५००० बच्चों में से एक को होता है। फैक्टर-९ की कमी से हीमोफीलिया-बी होता है। ८५ प्रतिशत यह फैक्टर ८ की कमी से व १०-१५ प्रतिशत फैक्टर ९ की कमी से होता है।
अन्य सेक्स लिंक्ड क्रोमोज़ोमल डिसऑर्डर की तरह हीमोफीलिया भी लड़कों को प्रभावित करती है जबकि लड़कियाँ इसकी कैरियर होती हैं। ऐसा नहीं है की लड़कियों में हीमोफीलिया असंभव है लेकिन लड़कियों में यह कम ही पाई जाती है। माता व पिता दोनों ही हीमोफीलिया के मरीज़ हों तो ऐसे में उनकी लड़की को इसके होने की आशंका रहती है। जन्म के तुरंत बाद नाला काटने के दौरान बीमारी से ग्रस्त बच्चे में खून का अत्यधिक रिसाव हो सकता है। इसके बाद बच्चे के शरीर पर खून के नीले चकत्ते पड़ जाते हैं। हीमोफीलिया के मरीज़ को चोट लगने पर सामान्य व्यक्ति से अधिक खून नहीं बहता, बल्कि अधिक समय तक बहता ही रहता है। लंबे समय तक खून बहते रहने से काफी नुकसान होता है, यह मरीज़ के लिए जानलेवा भी हो सकता है।
लक्षण
जोड़ों में खून भरना या इंजेक्शन लगाने पर सूजन आना प्र्रमुख लक्षण हैं। खून का रिसाव प्रमुख रुप से टखने व कलाई आदि जोड़ों में खून का रिसाव आम होता है। कभी-कभी मस्तिष्क या सांस की नली में खून बहना जानलेवा हो सकता है। इसका निदान रक्त रोग विशेषज्ञ खून की जाँच कर के करते हैं।
लक्षणों के हिसाब से हीमोफीलिया को तीन वर्गों में बांटा गया है : कम, ज़्यादा व बहुत ज़्यादा। बहुत ज़्यादा लक्षण वाले बच्चों को बगैर चोंट लगे अत्यधिक खून बहता है (अंदरुनी ब्लीडिंग), लक्षण गंभीर हो तो ऐसे बच्चों को चोंट लगने पर अत्यधिक खून का रिसाव हो जाता है। कम लक्षण वालों में कई वर्षों तक इस रोग का पता ही नहीं चलता है।
जटिलता
इस तरह की बीमारी से कई जटिलताएँ पेश आ सकती हैं। ज़्यादा या बहुत ज़्यादा लक्षण वाले बच्चों में गंभीर जटिलताओं की आशंका होती है जो बीमारी या इसके इलाज की वजह से उत्पन्न होती है।
अंदरुनी ब्लीडिंग के कारण खून मांसपेशियों या जोड़ों में जमा हो सकता है जिससे हाथों या पैरों में सूजन, सुन्नपन या दर्द हो सकता है।
हीमोआर्थ्राइटिस : अंदरुनी ब्लीडिंग के कारण जोड़ों में खून भर जाता है। समय पर सही इलाज के अभाव में प्रमुख जोड़ों में विकलांगता आ सकती है।
हीमोफीलिया के मरीज़ों को खून बहने के कारण अक्सर खून की कमी हो जाती है जिससे उन्हें कई बार खून चढ़ाना पड़ता है। ब्लड ट्रांसमिशन के दौरान संक्रमण फैलने का जोखिम होता है।
मस्तिष्क में खून जमा होने के कारण खेपड़ी के अंदर का दबाव बढ़ जाता है। यह एक आपातकालीन स्थिति होती है जिससे मितली या बेहोंशी आ सकती है। तुरंत उपचार न मिलने पर मस्तिष्क को क्षति पहुँच सकती है और मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है।
इलाज
जिस रिकॉम्बिनेंट फैक्टर (८ या ९) की कमी हो उसे देकर इलाज किया जाता है। कम लक्षण होने पर डेसमोप्रेसिन नामक दवा देकर भी इसका इलाज किया जाता है। जिन बच्चों में फैक्टर ८ की कमी के कारण बार-बार जोड़ों में खून उतरता है उन्हें बचाव के लिए फैक्टर ८ दिया जाता है। दर्द मिटाने के लिए आम दर्द निवारक दवाएं न देकर अमूमन विशेष दवाईयां दी जाती हैं जो इस बमारी के लिए मुफीद होती हैं। मरीज़ को एस्प्रिन या इसके जैसी दर्द निवारक दवाएं नहीं दी जाती हैं(डॉ. शरद थोरा,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल 2012 द्वितीयांक) ।
राजवंश का रोग समझा जाता था हिमोफिलिया कल तक .ब्रिटेन की महारानी के परिवार में चला था यह रोग .पोस्ट में अद्यतन जानकारी दी गई है इसकी दोनों किस्मों की .समाधान भी ,पूर्वापरता ,अक्रेंस रेट भी .बेहतरीन अपडेट .
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंप्रजनन क्षमता को बढाने के लिए पुरुषों के लिए आ रहा है अब एक जेल .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
बेहतरीन जानकारी देती हुई पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंआपकी द्रुत टिपण्णी हमारी धरोहर बनके आती है .इस पोस्ट के लिए आपकी सटीक टिप्पणियों के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंachhi jankari di hai ....
जवाब देंहटाएंrachna ke marm ko pahchankar tippani karte ho aap sir,
hamesha aabhari hun.....