गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

स्लिपडिस्क का इलाज एक्यूप्रेशर से

आज दौड़ती ज़िन्दगी में पीछे छूट जाने का डर हमारी रफ्तार को बढ़ा देता है। कभी-कभी यह रफ्तार इतनी तेज हो जाती है कि हमें अपने या अपनों के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिलता। दौड़ते वक्त के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए हमने जिस जीवन शैली के रंग में खुद को ढाल लिया है, उसने हमें कई तरह के रोग दिए हैं। जो हमारी गति को धीमा कर देते हैं। कुछ रोग जिनसे जीवन को ज्यादा खतरा होता है, उनकी चिंता तो हम करते हैं, पर कम तकलीफदेह छोटी-मोटी बीमारियों को लेकर लापरवाही कर जाते हैं। कमर, सिर, पीठ का दर्द ऐसी ही बीमारियां हैं। जब तक ये बीमारियां बहुत बढ़ नहीं जाती,कम ही लोग इनकी ओर ध्यान देते हैं। कुछ समय पहले तक कमर में दर्द होना बुढ़ापे की निशानी माना जाता था। आज लगभग हर उम्र का व्यक्ति इससे पीड़ित है। युवाओं से लेकर वृद्धों तक में यह बीमारी देखी जा सकती है। लगातार तेज गति का वाहन चलाने, बोझ लेकर आगे झुकने या अचानक बोझ उठाने से, गलत ढंग से बैठने, अधिक मोटापे जैसी कई वजहों से कमर में दर्द होता है। कमर के छल्लों के बीच में एक स्पंजनुमा गद्दी होती है। उसका किसी वजह से अपने स्थान से हटने से, छल्लों में कमजोरी या संक्रमण होने से कमर में दर्द का एहसास होता है। डॉक्टर इस बीमारी को स्लिपडिस्क कहते हैं। एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति में स्लिपडिस्क रोग का स्थायी समाधान खोजा गया है। यह चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की मर्म दौड़ते वक्त के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए हमने जिस जीवन शैली के रंग में खुद को ढाल लिया है, उसने कई तरह के रोग हमें दिए हैं। 

एक्यूप्रेशर एक ऐसा उपचार है, जिसे सीखकर व्यक्ति अपना उपचार खुद कर सकता है। एक्यूप्रेशर सेवा समिति जैसी कई संस्थाएं नि:शुल्क शिविरों के माध्यम से स्लिपडिस्क का इलाज भी करती हैं। शुरुआत में ही रोग का पता लगने परनाभि, पैरों के तलवों और कमर से संबंधित एक्यूप्रेशर बिंदुओं को दबाकर उसका समाधान कर दिया जाता है, पर रोग के बढ़ जाने पर कूपिंग मेथड, नर्वस स्टीमुलेटर, लेजर या एन.सी.वी. आदि से इसका परीक्षण किया जाता है। ठीक-ठीक पता लगने के बाद जहां पर डिस्क बलजिंग या डिस्क पर प्रेशर बढ़ रहा होता है वहां की नसों को माइक्रो एक्यूप्रेशर उपकरणों द्वारा उत्तेजित कर इलाज किया जाता है। मेडीनोवा पॉलीक्लीनिक के निदेशक डॉक्टर पीयूष त्रिवेदी माइक्रोएक्यूप्रेशर तकनीक को स्लिपडिस्क के उपचार के लिए कारगर मानते हैं। वे बतलाते हैं कि इस उपचार पद्धति में माइक्रो उपकरणों द्वारा विभिन्न तरंगें डिस्क तक पहुंचाई जाती हैं, जिससे वहां हलचल होकर एक्टिव ऑक्सीजन पैदा होती है एवं ऊर्जा का संचरण सुचारु रूप से होने लगता है। ऊर्जा के संचरण से डिस्क में न्यूक्लियस के प्रोटीग्लीकेस बॉड्स जुड़ना शुरू हो जाते हैं। इस उपचार विधि को 4 से लेकर 21 दिन तक नियमित रूप से करने से बिना किसी ऑपरेशन के स्लिपडिस्क रोग से मुक्ति पाई जा सकती है। बिना ऑपरेशन के, कम खर्चे में एक्यूप्रेशर द्वारा स्लिपडिस्क का स्थायी निदान हो सकता है(अहा ज़िंदगी,11.3.12)।

4 टिप्‍पणियां:

  1. ऑप्रेशन में ख़तरा बहुत है।
    एक्यूप्रेशर के अलग अलग जानकार भी इसे अलग अलग तरीक़े से ठीक करते हैं।
    देवबंद के यूनानी मेडिकल कॉलेज में डा. यूनुस अंगूठों से रीढ़ की हड्डी के मोहरों को उनके सही मक़ाम पर लाने के बाद उस पर कपड़े का प्लास्टर चिपका देते हैं और उसे 10 दिन आराम करवाते हैं। 10 दिन में वह ठीक हो जाता है।
    ख़ैर...
    आधुनिक लगने वाली महिलाओं के जीवन की त्रासदी दर्शाती यह कहानी पढ़ें-
    http://mankiduniya.blogspot.com/

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  2. स्लिप डिस्क एक अक्युट इमरजेंसी होती है जिसमे कम्प्लीट बेड रेस्ट ज़रूरी होता है . धीरे धीरे आराम आने के बाद अक्यूप्रेशर और फिजियोथेरापी आदि से ठीक हो सकता है .

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