ओटाइटिस एक्सटर्ना नामक कानों की बीमारी को आमतौर पर स्विमर्स इयर नाम से जाना जाता है। इससे कान के अंदर की त्वचा लाल होकर सूज जाती है। शुरुआत में कान में खुजली भी हो सकती है और खुजालने से समस्या और बढ़ जाती है। कान में घाव बन सकते हैं और दर्द भी होने लगता है। कान में से द्रव पदार्थ निकल सकता है और मैल भी अधिक बनता है। सूजन और मैल के कारण कान के बंद होने से सुनने की क्षमता प्रभावित होने लगती है।
कारण
ओटाइटिस एक्सटर्ना मुख्य रुप से संक्रमण के कारण होता है, यह संक्रमण फंगल या बैक्टीरियल हो सकता है। यह बीमारी एग्ज़िमा या डर्मेटाइटिस का रुप भी ले सकती है जिसमें संक्रमण न होने के बावजूद भी त्वचा पर सूजन बनी रहती है।
जोखिम
ओटाइटिस एक्सटर्ना किसी को भी हो सकता है। कान साफ करने के लिए इयर बड को बार-बार कान में डालने और त्वचा के अधिक खुरचने से संक्रमण हो सकता हे। कान में हमेशा ही गीलापन बने रहने से इसकी प्रतिरक्षण प्रणाली प्रभावित होती है जिससे संक्रमण पनपने लगते हैं। दिन में कई घंटे तैरने पर कान में गीलापन बने रहने का खतरा रहता है। इसीलिए इस बीमारी को स्विमर्स ईयर कहते हैं।
उपचार
कान का परीक्षण कर अंदर जमे मैल का जांच से पता लगाया जा सकता है कि संक्रमण फंगल है या बैक्टीरियल। शुरूआती अवस्था में ही यदि मरीज़ चिकित्सक के पास पहुंच जाए तो चिकित्सक द्वारा कान की सावधानीपूर्वक सफाई करने से कान अपने आप ठीक होने लगता है। दरअसल,गीलापन और मैल निकाल देने पर कान की प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय होकर संक्रमण से लड़ पाती है। ध्यान देने लायक बात यह है कि संक्रमणग्रस्त होने पर कान की सफाई चिकित्सक द्वारा कराना ही उचित होता है।
घर पर कान साफ करने की स्थिति और बिगाड़ भी सकती है। अधिकतर मरीज़ों को एंटीबायोटिक दवाएं भी दी जाती हैं। आमतौर पर एंटीबायोटिक ईयरड्रॉप दिए जाते हैं लेकिन समस्या गंभीर होने या बार-बार होने पर इसकी गोलियां भी दी जा सकती हैं। कभी-कभी स्टेरॉइड क्रीम या ड्रॉप भी दिए जाते हैं। अधिकतर मीरज़ों में उपचार शुरू होने के 2-3 दिनों के अंदर आराम मिल जाता है। मधुमेह रोगियों को संक्रमण होने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए क्योंकि इनमें संक्रमण के पनपने और फैलने की आशंका कहीं अधिक होती है(सेहत,नई दुनिया,अप्रैल 2012 द्वितीयांक)
bahut kaam ki hai jankari ......aabhar.
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