शनिवार, 7 अप्रैल 2012

अपच,वज़न घटने और रक्ताल्पता का यौगिक उपचार

इस योग कार्यक्रम का प्रारूप उन सभी व्यक्तियों की सहायता के लिए बनाया गया है, जो कमजोर पाचन शक्ति, भूख न लगने, वज़न घटने, अकारणीय रक्त अल्पता से प्रभावित हैं।

आसन 
शुरुआत पवन मुक्तासन भाग-१ समूह से करें। जब इसमें निपुणता हासिल हो जाए तो भाग-२ समूह का अभ्यास करें। इनको विशेषतः पाचन शक्ति को सुदृढ़ बनाने के लिए अभिरूपित किया गया है। इनसे शक्ति जागृत होगी और कमजोरी व मानसिक कमजोरी जाती रहेगा। 

दो हफ्तों के बाद अपने कार्यक्रम को बदल कर उसमें शक्तिबंध समूह एवं वज्रासन समूह के आसनों का समावेश करें, जैसे शशांकासन, शशांकभुजंगासन, मार्जारी आसन तथा पर्वतासन आदि। इनके अभ्यास से निम्न चक्रों एवं ऊर्जा बिन्दुओं के अवरोध दूर होंगे तथा ऊर्जा यहाँ से उर्ध्वगामी हो मध्य पाचक अंगों तक पहुँचेगी, जहाँ पर अवशोषण तथा पोषण की गड़बड़ी हो रही है, तथा रोग निवारक शक्ति प्रदान करेगी। सूर्य नमस्कार प्रारंभ कर संख्या बढ़ाते हुए १० चक्र तक ले जाएँ। फिर शवासन में पूर्ण विश्राम करें तथा उदर श्वसन के प्रति सजगता विकसित करें। 

अंततः पाँच प्रमुख आसनों का अभ्यास करें, जो पाचन प्रक्रिया को उत्तेजित करते हैं तथा "समान वायु" को निपेक्षित करते हैं। ये आसन हैं- पश्चिमोत्तासन, हलासन, चक्रासन, अर्धमत्स्येंद्रसान तथा मयूरासन। आसन की अंतिम अवस्था में अपनी चेतना को शक्तिशाली रूप से पाचन अग्नि के मूल स्थान, अर्थात मणिपुर पर केंद्रित करें। प्रत्येक भोजन के पश्चात वज्रसान में १० मिनट तक बैठें व अपनी चेतना को पाचन प्रक्रिया पर केंद्रित करें और उसे बढ़ाने की कोशिश करें। 

प्राणायाम
नाड़ी शोधन प्राणायाम (प्रथम अवस्था) का अभ्यास ५ चक्रों से प्रारंभ करें। दोनों नासिकाओं में श्वास के प्रवाह को बराबर रूप से संतुलित करें। दो हफ्ते के बाद द्वितीय अवस्था (एकांतर नासिका श्वसन) का अभ्यास १५ चक्रों से प्रारंभ करें। श्वसन पर पूर्ण नियंत्रण विकसित करने की कोशिश करें, जिसमें श्वास को शांत एवं सूक्ष्म रहना चाहिए। पूरक एवं रेचक में १:२ का अनुपात बनाए रखने का प्रयास करते रहें। यह अभ्यास एक महीने तक करें। उसके बाद तृतीय अवस्था का अभ्यास अंतर्कुंक एवं जालंधर बंध के साथ प्रारंभ करें। अभ्यास का लक्ष्य 1:4:2 का अनुपात होना चाहिए,मगर अनावश्यक ज़ोर न लगाएं। किसी जानकार के निर्देशन में सीखें। 

अंत में नाड़ीशोधन प्राणायाम के चतुर्थ चरण में आएं जिसमें अंतर्कुंभक,जालंधर बंध,उड्डियान बंध,मूलबंध तथा बाह्य कुंभक(महाबंध) को भी जोड़ें। आपका लक्ष्य 1:4:2:2 अनुपात तक पहुंचना चाहिए। यह अभ्यास पाचन क्रिया को तीव्र बनाने में प्रभावकारी होगा। इससे प्राण शक्ति और जठराग्नि का उद्दीपन होगा। अंतर्बाह्य कुंभक के साथ भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास भी जोड़ें तथा इसमें दक्षता प्राप्त करने का प्रयास करें। अभ्यास के दौरान उठते-गिरते श्वास पटल(डायाफ्राम) पर अवधान रखिए। कल्पना कीजिए कि वह धौंकनी की तरह गतिशील हो क्षुधाग्नि को प्रज्ज्वलित कर रहा है। 50-50 श्वास-प्रश्वास के तीन चक्रों तक अभ्यास कीजिए।

उपवास 
यदा कदा जब आपको बहुत भूख लग रही हो तो उसे नकारते हुए अगले भोजन तक कुछ नहीं खाएँ। यह उन मनोवैज्ञानिक अवरोधों को दूर करने का सबसे प्रभावशाली उपाय है, जो आपकी भूख का दमन किए हुए थे।

भोजन सादा शाकाहारी हो..
भोजन के प्रति अपने नखरों को त्याग दें। भोजन ग्रहण करते समय जो भी आप कर रहे हैं, उसकी सतत चेतना को अक्षुण्ण रखें। चेतन रूप से भूख की संवेदना को महसूस कर उसे बनाए रखें, अपने मन को इस बात की सजगता से इधर-उधर फिसलने न दें। जो भी भोजन आप कर रहे हैं, अपना ध्यान उसी पर केंद्रित रखें एवं सजग रहें कि यह धरती माता की देन है। भोजन को दैवीय प्रसाद जान आनंदपूर्वक ग्रहण करें। सादा शाकाहारी भोजन ग्रहण करें। बाजार में मिलने वाले रंग-बिरंगे एवं चटपटे भोजन के प्रति अभिरुचि अर्थहीन है। भोजन की पोषकता पर ध्यान दें, न कि उसके बाह्य स्वरूप और क्षणिक स्वादानुभूति पर(स्वामी सत्यानंद सरस्वती का यह आलेख बिहार योग विद्यालय,मुंगेर के सौजन्य से सेहत,नई दुनिया,मार्च चतुर्थांक 2012 में प्रकाशित है)।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति ||

    सादर ||

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  2. आपने अच्छे गुर बताए हैं। देखता हूं अमल में लाकर। शायद कुछ फ़ायदा हो।

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  3. योगासनों की अच्छी जानकारी देती स्वास्थ्य वर्धक प्रस्तुति....
    सादर आभार।

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  4. vastav me agar kar saken to ye sare aasan bade achche hain ....inme se kuch aasan mai krti hoon.

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