सोमवार, 12 मार्च 2012

भारत बन रहा है दुनिया की वेलनेस राजधानी

अमेरिकी मरीज सैम बुकनन को दिल्ली के मूलचंद मेडिसिटी से जब घुटने बदलने (नी रिप्लेसमेंट) की सर्जरी के बाद छुट्टी दी गई तो उन्हें एकबारगी यकीन ही नहीं हुआ कि इतने कम पैसे में अमेरिका के स्तर का इलाज भारत में भी हो सकता है । ६१ वर्ष और १६७ किलोग्राम के इस विशुद्ध अमेरिकी की मूलचंद में पिछले १५ फरवरी को जोड़ बदलने के सीनियर कंसलटेंट डॉ. संजय गुप्ता ने यह सर्जरी की । २३ फरवरी को त्रिची के. वासन आई केयर नेत्र अस्पताल में न्यूजीलैंड की २५ वर्षीय सुजैन ने आंखों का रंग बदलने की सर्जरी कराई । एक विदेशी से शुरू भारत की यह पहली सर्जरी वासन आईकेयर के डॉ. शिबू वर्के ने की । जिस दूसरे मरीज ने इस सर्जरी के लिए उनके अस्पताल में पंजीकरण कराया है, वह ब्रिटेन का है । 

ये उदाहरण भूले-भटके भारत के पंचतारा अस्पतालों में भर्ती हुए विदेशी मरीजों के नहीं हैं । अमेरिका एवं यूरोपीय देशों के मरीज भी अब इलाज के लिए भारत के अस्पतालों का धड़ल्ले से रुख कर रहे हैं । पहले ट्रेंड था -भारत घूमना है तो चलो लगे हाथों इलाज भी करा लेते हैं। अब उलटा है । अब अंकल सैमअमेरिका एवं यूरोपीय देशों के मरीज भी अब इलाज के लिए भारत के अस्पतालों का धड़ल्ले से रुख कर रहे हैं। पहले ट्रेंड था - भारत घूमना है तो चलो लगे हाथों इलाज भी करा लेते हैं। अब उलटा है । अब अंकल सैम (अमेरिकी नागरिक) भी बीमार पड़ते हैं तो सीधे इंडिया डायल करते हैं । विदेशी मरीज यात्रा के बहाने नहीं, सीधे इलाज कराने के लिए भारत आ रहे हैं । अपने देशों की तुलना में बेहद सस्ती दर में इलाज हो जाने की वजह से खुशी के मारे भारत घूम भी लेते हैं । भारत मधुमेह सहित अन्य कई रोगों की दुनिया की "राजधानी" जरूर बनता जा रहा है लेकिन साथ ही वह दुनिया की "वेलनेस" राजधानी भी बन रहा है। विदेशी मरीजों की अकूत संभावना देखते हुए ही हर महानगर में मेडिसिटीज बन रहे हैं । विकसित देशों के मरीज बड़े चूजी होते हैं इसलिए भारत के सभी अस्पताल अपने को उन्हीं को लुभाने वाले मानकों में ढाल रहे हैं । 

जांच एवं इलाज की तमाम अत्याधुनिक मशीनों से लैस पूसा रोड स्थित बी.एल. कपूर सुपरस्पेशियैलिटी अस्पताल की चेयरमैन रीता चौधरी ने कहा, "अब उनके अस्पताल में आने वाले कुल मरीजों में १० से १५ प्रतिशत विदेशी मरीज होते हैं । अमेरिका एवं यूरोपीय देशों के मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है । पिछले करीब ६ महीने से हर महीने विदेशी मरीजों की संख्या में ३-४ प्रतिशत की वृद्धि देखी जा रही है ।" चौधरी ने "नईदुनिया" को बताया कि अस्पताल को लैबोरेटरी के लिए देश की सबसे बड़ी सरकारी एक्रेडिटेटिंग सर्टिफिकेट एनएबीएच मिल चुका है । अस्पताल की दुनिया की सबसे बड़ी रेटिंग एंजेंसी जेसीआई (ज्वाइंट काउंसिल इंटरनेशनल) के लिए भी जल्द ही आवेदन करने की योजना है । लगता है, ३ साल पहले स्थापित वैशाली स्थित पंचतारा अस्पताल पुष्पांजलि क्रॉसले के सारे ही प्रोटोकॉल विकसित देशों के अस्पतालों की कॉपी हैं । पुष्पांजलि क्रॉसले के इंटरनेशनल मार्केटिंग के प्रवक्ता गौरव पांडे ने बताया कि यह देश का एकमात्र अस्पताल है जो विश्व की सबसे बड़ी ग्लोबल हाइजीन काउंसिल का सदस्य है । इस अस्पताल ने जेसीआई सर्टिफिकेशन लेने की भी सारी तैयारी कर ली है । इस रेटिंग एजेंसी के मानक बड़े कड़े हैं । यह अस्पताल अपने को मर्करी फ्री एवं ग्रीन अस्पताल के रूप में भी प्रोजेक्ट कर रहा है । विदेशी, खासकर विकसित देशों के मरीज किसी भी अस्पताल का रुख करने के पहले इन मानकों को लेकर अपने को आश्वस्त कर लेते हैं। इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल हो या गुड़गांव स्थित मेडांटा मेडिसिटी हो,फोर्टिस हो या पुष्पांजलि क्रॉसले हो या बी.एल. कपूर सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल हो,उनके इंटरनेशनल पेशेंट लाउंज में चले जाइए तो पता चलेगा कि वे भरे हुए तो रहते ही हैं,उनकेलिए वहां मनोरंजन के भी कई साधन मिलेंगे। मेडंटा मेडिसिटी के चेयरमैन डॉ. नरेश त्रेहन ने कहा कि अब अमरीका एवं तमाम यूरोपीय देशों के मरीज़ यहां इलाज़ के लिए आने लगे हैं लेकिन यह सही है कि नम्बर के हिसाब से खाड़ी देशों,अफगानिस्तान आदि से ज्यादा मरीज़ आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब उनके कुल मरीज़ों में विदेशी मरीज़ों की संख्या 15 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। चाणक्यपुरी स्थित अस्पताल परिसर में मोटापे की बैरिएट्रिक सर्जरी के विशेषज्ञ डॉ. अतुल पीटर्स ने मीडिया को 171 मरीज़ों का जो आंकड़ा पेश किया है,उसमें ७१ विदेशी मरीजों के हैं । अपोलो अस्पताल की इंटरनेशनल मार्केटिंग प्रमुख अंजलि कपूर ने कहा, "अमेरिका और यूरोप के मरीज क्यों नहीं आएंगे यहां इलाज कराने । अपोलो तो विदेशी मरीजों से भरा रहता है । इतना सस्ता और विश्वस्तरीय इलाज कहां मिलेगा । अब विकसित देशों के मरीज भी धड़ल्ले से आ रहे हैं । अपोलो देश के चंद उन अस्पतालों में एक है जो वर्षों पहले ज्वाइंट काउंसिल इंटरनेशनल की रेटिंग पा चुका है ।" 

आंकड़े के हिसाब से देखें तो उद्योग जगत के एक अनुमान के अनुसार भारत के मेडिकल टूरिज्म सेक्टर में हर साल ३० प्रतिशत का इजाफा होने वाला है । माना जा रहा है कि २०१५ तक यह ९,५०० करोड़ का उद्योग हो जाएगा । अमेरिका एवं यूरोप में सर्जरी का जो खर्च है वही सर्जरी भारत में दसवें हिस्से के खर्च में हो जाती है । जाहिर है, हर साल भारत आने वाले विदेशी मरीजों की संख्या लाखों में पहुंच रही है । यहां इलाज कितना सस्ता है इसकी बानगी देखिए- अमेरिका में हार्ट वाल्व बदलने का खर्च ०.२ मिलियन डॉलर है, वहीं भारत में मात्र १०,००० डॉलर में यह इलाज हो जाएगा । साथ में, छुट्टी का पैकेज सो अलग। अंग्रेजी में कहें तो अमेरिका की तुलना में भारत में यह खर्च "डॉग चीप" ही हुआ । इसलिए जाहिर है कि फिजी, अफगानिस्तान, इराक, नाइजीरिया, थाईलैंड, सऊदी अरब, मलेशिया के साथ-साथ यूएसए एवं यूके के मरीज भी धड़ल्ले से आ रहे हैं । मूलचंद मेडिसिटी ने दावा किया कि वहां हर साल करीब १०,००० इंटरनेशनल मरीज आ रहे हैं । 

गुड़गांव स्थित विश्वस्तरीय वेलनेस हब मेडांटा मेडिसिटी में गत क्रिसमस में जो मेडिकल उपलब्धि हासिल हुई वह हेल्थकेयर में भारत की हैसियत के बारे में बहुत कुछ कहता है । यह दुनिया का पहला सफल चेन लीवर प्रत्यारोपण था जिसमें एक साथ लीवर फेल ३ बच्चों को जीवन का गिफ्ट दिया गया लेकिन दाम देखें तो यह डॉग चीप ही लगेगा । यहां एक लीवर ट्रांसप्लांट में ३० लाख रुपए लगते हैं तो अमेरिका-ब्रिटेन में डेढ़ करोड़ रुपए से कम खर्च नहीं होंगे । अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बाइपास हार्ट सर्जन डॉ. नरेश त्रेहन अब हेल्थ होंचो (कारोबारी) हो गए हैं और आने वाले समय में मेडांटा मेडिसिटी को दुनिया का सबसे बड़ा वेलनेस सेंटर बनाने की तरफ अग्रसर हैं । अब एयर एंबुलेंस की सेवा भी भारत में आम होती जा रही है । 

भारत के तेजी से बढ़ते हेल्थकेयर उद्योग के संदर्भ में देखें तो चीन भी पीछे दिखेगा । भारतीय हेल्थकेयर की विश्वसनीयता का सूचकांक चीन से कहीं ज्यादा है । एक उदाहरण इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि हेल्थकेयर विशेषज्ञता में भारत का कद कितना कद्दावर है । मैक्स हेल्थकेयर में मिनिमल एक्सेस सर्जरी विभाग के चेयरमैन एवं गिनीज बुक में दर्ज डॉ. प्रदीप चौबे दलाई लामा और चीन दोनों के लिए अपरिहार्य हैं। उन्होंने दलाई लामा की सर्जरी की है और साथ ही चीन भी उन्हें अपने डाक्टरों को प्रशिक्षित करने के लिए बुलाता है। युवराज सिंह भले कैंसर का इलाज़ कराने अमरीका चले गए हों,लेकिन अमरीकी कैंसर का इलाज़ कराने भारत आ रहे हैं। भारत ने दुनिया के लिए सेहत की एक खिड़की खोल दी है और वसुधैव कुटुम्बकम् कहावत को बखूबी चरितार्थ कर रहा है। हमारे विशेषज्ञों को इलाज़ के लिए विदेश भी बुलाया जा रहा है। वहीं सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस भारतीय अस्पतालों में इलाज़ करने वे खुशी-खुशी आ भी रहे हैं। भारतीय विशेषज्ञों को अंतर्राष्ट्रीय फोरम के बड़े-बड़े पदों पर आसीन भी किया जा रहा है। आयुर्वेदिक पद्धति पश्चिम एवं पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा भारतीय निर्यात है। होम्योपैथी जर्मनी मेंे जन्मी लेकिन अभी भारत होम्योपैथी में दुनिया का लीडर है। पिछले दिनों दिल्ली में हुए लीगा होम्योपैथी वर्ल्ड कांग्रेस में यह साफ जाहिर हुआ। उच्च स्तरीय मार्केट विश्लेषणों में हेल्थकेयर उद्योग में भारत को ेज़ी से बढ़ते देश का दर्जा दिया जा रहा है। विदेशी हेल्थकेअर कम्पनियां भारत में घुसने कयययह बेताब हो रही हैं। यह सब वैसे ही नहीं है(धनंजय,संडे नई दुनिया,11 मार्च,2012)

3 टिप्‍पणियां:

  1. चिकत्सा के क्षेत्र में आगे आता भारत, बहुत खुशी की बात है...

    अच्छी जानकारी राधारमण जी.
    शुक्रिया
    सादर.

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  2. लेकिन अपने देश में सबसे नीचे पायदान पर खड़ा गरीब इलाज के अभाव में तड़प तड़प कर मर जाता है. धन्य है हमारी शासन व्यवस्था.

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  3. समझ में नहीं आता की खुश हों या नहीं .
    इन फाइव स्टार अस्पतालों में इलाज या तो विदेशियों का होता है या स्वदेसी धनाढ्यों का . कमाई भी इन्ही की हो रही है . सरकार से सस्ते में ज़मीन लेकर ऐश कर रहे हैं .
    आम आदमी तो हमारे जैसे सरकारी अस्पताल में ही धक्के खाता है .

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