गर्भवती महिला के किडनी रोग से पीड़ित होने पर शिशु इससे प्रभावित हो सकता है। पहले से किडनी रोग से पीड़ित महिला में गर्भावस्था के कारण बीमारी की गंभीरता पर असर पड़ता है। स्वस्थ महिला में गर्भावस्था के कारण किडनी से जुड़ी परेशानी शुरु हो सकती है।
-गर्भावस्था के दौरान रीनल प्लाज़्मा फ्लो ५०-७० प्रतिशत तक बड़ जाता है। (पहले ६ महीनों में यह बदलाव साफ महसूस किया जा सकता है।)
-इस दौरान ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट बढ़ जाता है। गर्भावस्था के १३वें सप्ताह में यह सबसे अधिक हो जाता है और सामान्य के मुकाबले १५० प्रतिशत तक भी बढ़ सकता है।
-बदलावों के कारण युरिया और क्रिएटिनिन का स्तर भी गिर जाता है।
-गर्भावस्था के शुरुआत में प्रोजेस्टेरोन हारमोन का स्तर बढ़ जाता है जिससे शुरुआती २४ हफ्तों में रक्तचाप घट जाता है।
-शरीर में होने वाले बदलावों के कारण मूत्र मार्ग संक्रमण (यूटीआई) का जोखिम बढ़ जाता है। किडनी का आकार १-१.५ से.मि. तक बढ़ जाता है।
किडनी फंक्शन
-गर्भावस्था में एस्टिमेटेड ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट (ई.जी.एफ.आर) जाँच कराने की सलाह नहीं दी जाती है।
-पेशाब में ग्लूकोज़ की मौजूदगी वैसे तो मधुमेह के कारण होती है ,लेकिन गर्भावस्था में यह आम है। गर्भवती महिला में यह मधुमेह की सूचक नहीं है।
-गर्भावस्था के दौरान पेशाब के ज़रिए अधिक मात्रा में प्रोटीन निकलने लगता है लेकिन यह एक दिन में ३०० मिलिग्राम से अधिक कभी नहीं निकलता है।
-गर्भवती महिला के पेशाब में प्रोटीन की मात्रा लगातार ५०० मिलिग्राम/दिन से अधिक होने पर तुरंत किडनी रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए।
गर्भावस्था में किडनी रोग
गर्भावस्था में किडनी रोग की शुरुआत या किडनी फेल भी हो सकती है। इससे गर्भस्थ शिशु का विकास अवरुद्ध हो सकता व अचानक गर्भपात होने का खतरा भी रहता है। इसके अलावा उच्चरक्तचाप और समय पूर्व प्रसव की आशंका भी होती है।
किडनी रोग से पीड़ित महिला में प्रेग्नेंसी
किडनी रोग से पीड़ित महिला को गर्भधारण करने से पहले स्त्री रोग विशेषज्ञ और किडनी रोग विशेषज्ञ काउंसिलिंग लेनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि महिला सुरक्षित गर्भधारण कर सकती है या नहीं। यदि किडनी फंक्शन अधिक प्रभावित न हो तो महिला सुरक्षित गर्भधारण कर सकती है। हालाँकि मरीज़ को प्रसवपूर्ण कुछ जटिलताएँ हो सकती हैं जैसे हायपरटेंशन और प्रि-एक्लेम्पशिया।
किडनी रोग की अवस्था थोड़ी गंभीर होने पर गर्भावस्था के दौरान महिला को उच्चरक्तचाप, प्रि-एक्लेम्पशिया, समयपूर्व प्रसव पीड़ा, जन्म के समय शिशु का वज़न कम होना या गर्भपात जैसी समस्या हो सकती है। ऐसी स्थिति में किडनी को स्थाई क्षति भी हो सकती है।
Bahut Achchi Jankari...
जवाब देंहटाएंजरुरी जानकारी से परिपूर्ण |
जवाब देंहटाएंआभार ||
काफी अच्छी उपयोगी जानकारी है
जवाब देंहटाएंआभार !
upyogi jankari ke liye aabhar.
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