पिछली बार कब हमने टीबी को भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या माना था ? याद को ताजा करने के लिए यहां भारत में टीबी के बारे में कुछ तथ्य दिए गए हैं। यह भारत में मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है। टीबी से यहां हर दो मिनट में एक व्यक्ति की मौत होती है और प्रतिदिन 750 लोग इसके कारण मर जाते हैं। इसके उपचार में आने वाली प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लागत 23.7 अरब डॉलर है। यह रोग लोगों के जीवन के सबसे उत्पादक वर्षों को प्रभावित करता है - इसके लगभग 70 प्रतिशत रोगी 15 से 54 वर्ष के बीच की आयु के होते हैं। यह सांस के माध्यम से फैलने वाला रोग है। एक टीबी का रोगी हर साल 10 से 15 लोगों को संक्रमित करता है। यदि ये तथ्य आपको हैरान नहीं करते तो मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में टीबी के 12 व्यापक दवा प्रतिरोधी मामलों की हाल की रिपोर्ट जरूर आपको हैरान करेगी। एक ऐसी स्थिति है , जिसमें टीबी के उपचार में काम आने वाली सभी 12 दवाएं रोगी के लिए नाकाम साबित होती हैं।
पुरुषों से ज्यादा जोखिम
महिलाओं को इसके अधिक परिणामों का सामना करना पड़ता है। यह रोग युवा महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करता है। महिलाओं में टीबी के 50 प्रतिशत से अधिक मामले 34 वर्ष की आयु से पहले होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में 15-44 वर्ष की महिलाओं में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण टीबी है। कम आय वाले देशों में यह 10-19 वर्ष की महिलाओं में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है , जबकि दुनिया भर में 20 से 59 वर्ष की महिलाओं में मृत्यु का पांचवां प्रमुख कारण है। सक्रिय टीबी के विकास में गरीबी सबसे मुख्य कारक है।
दुनिया के गरीबों का 70 प्रतिशत हिस्सा महिलाओं का ही है , लिहाजा टीबी के कारण उनमें रुग्णता और मृत्यु की दर और अधिक हो जाती है। इसके अलावा टीबी गर्भवती महिलाओं एवं उनके बच्चों के जीवन के लिए भी बड़ा खतरा है। टीबी से ग्रस्त महिलाओं में समय से पूर्व या कम वजन के बच्चे पैदा होने की संभावना सामान्य महिलाओं की तुलना में ज्यादा होती है और जन्म के समय बच्चे के मर जाने की संभावना चार गुना होती है।
इलाज में सबसे पीछे
महिलाओं में फेफड़ों के बाहर टीबी होने की संभावना और ज्यादा होती है। कम ही लोग जानते हैं कि मध्यम एवं निम्न आय वाले देशों की महिलाओं में यह रोग उनके निस्संतान रह जाने का प्रमुख कारण है। यह एक ऐसी स्थिति है , जिसके कारण महिलाओं को अक्सर अपमान , भेदभाव और यहां तक कि शारीरिक शोषण का भी शिकार होना पड़ता है। जैविक संरचना की दृष्टि से महिलाएं पुरुषों से काफी अलग होती हैं और कुछ विशिष्ट जैविक कारक उन्हें टीबी के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं।
टीबी के जीवाणु से संक्रमित महिलाओं में संक्रामक टीबी के विकसित होने की संभावना पुरुषों से अधिक होती है। फिर भी अक्सर महिलाएं प्रशिक्षित स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के पास कम ही जा पाती हैं क्योंकि वे अक्सर अपने खुद के स्वास्थ्य की अनदेखी करती हैं। अपने बजाय वे अपने परिवार के स्वास्थ्य को अधिक महत्व देती हैं और इस प्रक्रिया में अपने आप को हमेशा जोखिम पर रखती हैं।
सामाजिक कलंक , निम्न सामाजिक - आर्थिक स्थिति और शिक्षा का अभाव कुछ ऐसे कारक हैं , जिनके कारण महिलाओं में टीबी के निदान एवं उपचार में बहुत देर हो जाती है। अन्य निम्न या मध्यम आय वाले देशों की तरह भारत में भी महिलाएं अक्सर घर के अंदर उपले या लकड़ी जैसे जैविक ईंधन का उपयोग करके खाना पकाती हैं। इससे उनमें जोखिम और अधिक बढ़ जाता है। ऐसी महिलाओं में सक्रिय टीबी के विकास की संभावना ज्यादा होती है। इसके अलावा गरीबी में रहने वाली महिलाओं को देह व्यापार में झोंके जाने का खतरा भी होता है।
देह व्यापार में लिप्त महिलाएं टीबी के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील होती हैं। उनकी सीमित जीवन स्थितियों के चलते उनमें एचआईवी से संक्रमित होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
जब किसी महिला में टीबी का निदान किया जाता है , तो उसे विभिन्न सामाजिक - आर्थिक परिणामों का सामना करना पड़ता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए टीबी का कलंक झेलना ज्यादा भयावह होता है। कुछ समुदायों में किसी महिला को टीबी से संक्रमित पाए जाने की स्थिति में उस पर तलाक तक का दबाव डाला जाता है।
यदि महिला शादीशुदा न हुई तो उसे अपना जीवन साथी ढूंढने में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पूरे घर की देखभाल करने वाली और अक्सर अपने परिवार के लिए रोजी - रोटी कमाने वाली महिला , जब टीबी से पीड़ित हो जाती है , तब वह अपने बच्चों की देखभाल करने में अक्षम हो जाती है। साथ ही उसे घर के कामों की परेशानी को तो झेलना ही पड़ता है। अक्सर वे इतनी बीमार पड़ जाती हैं कि वे घर से बाहर निकलकर काम भी नहीं कर पातीं। इससे उनकी कमाई के साधनों का भी नुकसान होता है।
अजेंडे पर लाना होगा
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं , जहां बहुत सी महिलाएं अपने खुद के स्वास्थ्य के बारे में बहुत कम समझती हैं। समाज में भी उनके स्वास्थ्य की उपेक्षा की जाती है। इस प्रकार महिलाओं के मुद्दे अनदेखे रह जाते हैं। यदि टीबी और महिलाओं पर इसके प्रभाव की और ज्यादा उपेक्षा की जाती है तो एक स्वस्थ भारत के लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सकता। जब तक भारत की महिलाएं अस्वस्थ हैं , तब तक इसको एक स्वस्थ राष्ट्र नहीं कहा जा सकता। हमारी माताओं , पत्नियों , बहनों और बेटियों के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए हमें आज ही उनके स्वास्थ्य को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में से एक बनाना होगा , क्योंकि कल बहुत देर हो सकती है(सत्यव्रत चतुर्वेदी,राज्यसभा सांसद,नभाटा,दिल्ली,23.3.12)।
सुबह सुबह आपकी पोस्ट चिंता में डाल देती है....
जवाब देंहटाएंमगर सच्चाई से मुँह भी तो नहीं फेरा जा सकता.
जानकारी के लिए शुक्रिया.
कभी यही मारक रोग की श्रेणी में आता था
जवाब देंहटाएंआज तो नियंत्रित कर लिया गया है,
बशर्ते औषधि नियमित ली जाये ।।
अच्छा लेख. अति व्यापक प्रतिरोधी टी बी. का खतरा टाइम बम की तरह हम पर मंडरा रहा है.
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर खतरा है टीबी का.
जवाब देंहटाएंबढ़िया अपडेट .कृपया इन्हें भी पढ़ें -
जवाब देंहटाएंNew form of TB gives docs sleepless nights.'/TIMES OF INDIA,MUMBAI,MARCH 24,2012 ,FRONT PAGE ./TIMES CITY '/P6/TB patients 'woes worsen due to expensive drugs /victim can Infect io Others In A year :Docs/TOI/P6
bahut hi jankari vala lekh
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