आश्चर्य है कि देश में अब भी टीबी को ग़रीबों की बीमारी समझा जाता है। आप चाहे कितने ही अमीर क्यों न हों, तपेदिक का बैक्टेरिया आपको कहीं भी चपेट में ले सकता है। धन संपन्न लोगों को आमजन शोफर, वावर्ची और बावर्ची के तौर पर सेवाएँ देते हैं और वे टीबी के सक्रिय संवाहक भी हो सकते हैं। इसलिए महलों को सुरक्षित मान लेना ठीक नहीं है। कभी आपने सोचा है कि जो दूध आप अपने बच्चों को पिला रहे हैं, वह सुरक्षित है? शोध बताते हैं कि अपॉश्चरिकृत दूध पशुजन्य टीबी के संक्रमण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। हमारे देश में आज भी अधिकांश घरों में दूध सीधे गाँवों से लाकर पहुँचाया जाता है। इसी तरह के दूध से बने अन्य पदार्थों के जरिए भी टीबी का बैक्टेरिया आप तक पहुँच सकता है। बच्चों में टीबी के संक्रमण का निदान और उसके इलाज की भी कई चुनौतियाँ हैं।
टीबी का उन्मूलन नहीं होने के अनेक कारण हैं। सरकारी चिकित्सा संसाधन सीमित हैं, इसलिए सरकारी अस्पतालों के प्रति अब तक आमजन का विश्वास अर्जित नहीं किया जा सका है। मरीज़ मजबूरी में निजी चिकित्सकों की सेवाएँ लेते हैं। कई निजी चिकित्सक टीबी निवारण के लिए निर्धारित औषधियों का खुले तौर पर उपयोग करते हैं। इससे मरीज़ के शरीर में कई किस्मों की औषधियों के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है। लगातार बढ़ते टीबी के मरीज़ों की संख्या टीबी नियंत्रण के सरकारी कार्यक्रम की असफलता का प्रमाण है। सारी दुनिया में एचआईवी/एड्स के संक्रमण की वजह से ३० लाख लोग हर साल अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। टीबी और मलेरिया भी इतने ही इंसानों की जान हर साल ले लेता है। टीबी निवारण के लिए हमें इतने वृहद कार्यक्रम की आवश्यकता है। इसके लिए एक स्वतंत्र महकमे की जरूरत है। जब तक यह हो तब तक हमें अपने ही संसाधनों के जरिए इससे मुक्ति पाना होगी(संपादकीय,सेहत,नई दुनिया,मार्च तृतीयांक 2012)।
टीबी का हमला बच्चों के स्वास्थ्य को झकझोरकर रख देता है। पैदा होने से दो साल की उम्र होने तक उनमें तपेदिक (टीबी) का प्रकोप होने का जोखिम बना रहता है। इस संक्रमण से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यंत क्षीण हो जाती है। टीबी का बैक्टेरिया प्राथमिक तौर पर फेफड़ों पर प्रहार करता है, लेकिन शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अवयव भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। कुछ मामलों में आँतों, गुर्दों, हड्डियों, मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी अथवा आमाशय भी संक्रमित होते देखे जाते हैं। आमजन में टीबी के संक्रमण को लेकर काफी भ्रांतियाँ हैं। जागरूकता के अभाव में अधिकांश मरीज इसका
पूरा इलाज नहीं ले पाते। आमतौर पर लोग अपने दो साल तक के बच्चों को टीबी भी हो सकती है, इसकी कल्पना नहीं कर पाते। वे अक्सर पूछते हैं कि क्या इतने छोटे बच्चे को भी टीबी हो सकती है? सच तो यह है कि इतनी उम्र के बच्चों में रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होने के कारण टीबी का संक्रमण लगने की आशंका अधिक होती है। टीबी एक संक्रामक रोग है और एक से दूसरे को तब लगता है जब टीबी के बैक्टेरिया से संक्रमित मरीज खाँसता है या छींकता है। स्वस्थ बच्चा जब इस तरह की खाँसी अथवा छींक दायरे में आ जाता है तब उसे संक्रमण लगता है। टीबी का मरीज़ दूसरों को नजले अथवा ज़ुकाम से पीड़ित नज़र आता है।
कैसे पता लगे कि मेरे बच्चे को टीबी है?
यदि चिकित्सक को लगता है कि बच्चा अस्वस्थ है और उसका सामान्य विकास नहीं हो रहा है। उसकी खांसी इलाज के बावजूद ठीक नहीं हो रही हो। बच्चे को साँस लेने में काफी तकलीफ होती है। बार-बार छाती में संक्रमण हो और बुखार रहता हो तो वह टीबी की जाँच कराने की सलाह दे सकता है।
कौन से टेस्ट होते हैं?
आमतौर पर बच्चों में टीबी की जाँच के लिए छाती का एक्स-रे और ट्यूबरकुलीन स्किन टेस्ट होता है। यदि बच्चा इतना बड़ा है कि खँखार कर श्लेष्मा निकाल सकता है तो जाँच और आसान हो जाती है। छाती के एक्स-रे से मालूम हो जाता है कि बच्चे के फेफड़ों की कितनी क्षति हो चुकी है।
क्या इलाज़ के दौरान बच्चों को दूसरों से अलग रखना पड़ेगा?
नहीं। यदि बच्चे को दो से तीन सप्ताह तक नियमित रूप से औषधि दी जा रही है,तब उससे दूसरे बच्चों को संक्रमण नहीं लगेगा और वह दूसरे बच्चों के साथ खेल भी सकता है और स्कूल भी जा सकता है। याद रखें कि टीबी स्पर्श करने से नहीं फैलती। बच्चे को स्तनपान कराने से माता को कोई जोखिम नहीं होता।
क्या टीबी की औषधि के साइड-इफेक्ट्स होते हैं?
टीबी की दवाएं सुरक्षित होती हैं। कई बार इसकी वजह से बच्चों के मल-मूत्र के साथ थूक का रंग बदलकर हल्का गुलाबी हो जाता है। इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है। कई पालक बदले हुए रंग के कारण इलाज़ अधूरा छोड़ देते हैं। इलाज़ के दौरान बच्चे की त्वचा सूर्य की रोशनी के प्रति भी संवेदनशील हो जाती है। बच्चे को दस्त लग सकते हैं अथवा पीलिया हो सकता है। इन परिस्थितियों में चिकित्सक की सलाह सर्वोपरि होती है।
क्या टीबी का टीका आता है?
हां। टीबी का टीका उपलब्ध है। जब भी किसी बच्चे को बीसीजी का टीका लगता है,तो वह भविष्य में टीबी के बैक्टीरिया के खिलाफ रोग प्रतिरोधक शक्ति विकसित कर लेता है।
बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है?
-बच्चों को टीबी का टीका लगवाएँ।
-पूरे परिवार की टीबी की जाँच कराएं।
-बच्चे को हवादार, स्वच्छ एवं धूपदार कमरों में रखें।
-टीबी के बैक्टेरिया दमघोंटू कमरों के अंधेरे कोनों में पनपते हैं। इन्हें साफ रखें।
-बच्चों को जन्म के तुरंत बाद से छह महीने तक स्तनपान कराएँ। छह महीनों से पहले स्तनपान कराना बंद नहीं करना चाहिए। स्तनपान से बच्चे की रोग प्रतिरोधक शक्ति में इजाफा होगा।
टीबी का टीका कब लगवाना चाहिए?
जन्म के बाद जल्दी ही टीबी का टीका लग जाना चाहिए। टीका लगने के बाद उस स्थान पर एक फुंसी-सी उभर आती है। यह निशान अपने आप ठीक हो जाता है। इस स्थान पर कोई क्रीम अथवा चिकनाई लगाने की जरूरत नहीं है।
क्या करें जब परिणाम का नतीजा पॉजिटिव आए?
टीबी से पूर्णतः मुक्ति संभव है। टीबी के बैक्टेरिया को पूरी तरह मरने में छह से नौ महीने लगते हैं। इस अवधि में लगकर इलाज करने से नतीजा बेहतर आता है। पालकों को यह देखना चाहिए कि बच्चे को नियमित रूप से हर दिन निश्चित समय पर औषधि मिले। यदि किसी भी कारण से औषधि की श्रृंखला में व्यवधान होगा तो नए सिरे से पुनः इलाज की शुरुआत करना होगी। इलाज का असर परखने के लिए बच्चे की नियमित रूप से जाँच कराते रहें(डॉ. शरद थोरा,सेहत,नई दुनिया,मार्च तृतीयांक 2012)।
लगकर इलाज़ कराना ज़रूरी .इलाज़ बीच में छोड़ने का नतीजा ही दवा रोधी तपेदिक की एक से एक खतरनाक किस्मों की वजह बना है यहाँ तक की एक्स्ट्रीमली ड्रग रेज़िस्तेंत ,एक्स्तेंसिव ड्रग रेज़िस्तेंत ,टोटल ड्रग रेज़िस्तेंत टीबी पर जिरह चल रही है .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन जानकारी देती उपयोगी पोस्ट ...आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी देती प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
humesha ki tarah laabhkari post.
जवाब देंहटाएंइस तरह की जानकारी बहुत उपयोगी होती हैं।
जवाब देंहटाएंबेहद उपयोगी और समसामयिक जानकारी है. एक मत्वपूर्ण तथ्य है की आम तौर से छोटे बच्चों को तब तभी होती है जब वो किसी ऐसे वयस्क के संपर्क में आ ए जिन्हें ओपन टी बी (अर्थात जिनके बलगम में TB के जीवाणु उपस्थित हों).
जवाब देंहटाएंचूँकि अभी तब के डायग्नोसिस के लिए कोई आसन टेस्ट उबलब्ध नहीं है, बच्चों में TB के निदान के लिए यह बेहद जरूरी है कि अभिवावक किसी ऐसी जानकारी को न छिपाए यथा घर या परिवेश में किसी का TB का इलाज चल रहा है, या किसी को खांसी में खून आ रहा है.