आईवीएफ तकनीक से हमारे देश के न जाने कितने संतानहीन दंपतियों को संतान का सुख मिला है। यह तकनीक अब मध्य वर्ग की पहुंच में है। महिलाओं की दिक्कतों व बांझपन की समस्या से निबटने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं, बता रही हैं शमीम खान:
मातृत्व किसी महिला के जीवन का सबसे सुखद क्षण माना जाता है। शादी के बाद भी जब कोई औरत मां नहीं बन पाती तो उसके घर में ही नहीं, जीवन में भी सूनापन भर जाता है। बांझपन के लिए कई प्राकृतिक व मानवनिर्मित कारण जिम्मेदार हैं। डॉक्टरों के अनुसार बच्चा न होने की वजह सिर्फ स्त्रियों का बांझपन नहीं होता, बल्कि एक तिहाई मामलों में पुरुष बांझपन भी वजह होती है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में लगभग 3 करोड़ शादीशुदा जोड़े संतानहीन हैं।
बांझपन के कारण
गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. नूपुर गुप्ता के अनुसार, आधुनिक हॉर्मोनल असंतुलन महिलाओं में बांझपन की सबसे बड़ी वजह है। फैलोपिन टयूब में खराबी, यौन रोग, जेनेटाइल टय़ूबरक्लोसिस आदि बांझपन की अन्य महत्वपूर्ण वजहें हैं। धूम्रपान से भी गर्भधारण की क्षमता प्रभावित होती है।
अपोलो क्लीनिक की कंसल्टेंट गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. गुंजन कहती हैं, ‘एक महिला की उम्र गर्भधारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 30 साल से अधिक आयु की महिलाओं में अंडे कम बनते हैं, उनकी क्वॉलिटी भी अच्छी नहीं होती है, जिसमें गर्भपात और बच्चों में जन्मजात खराबी का खतरा बना रहता है। अधिकतर महिलाओं में यह बांझपन की सबसे प्रमुख वजह बनता है। इसके अलावा बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में कई स्वास्थ समस्याएं भी हो जाती हैं, जिससे भी फर्टिलिटी प्रभावित होती है।’
बांझपन से बचाव के उपाय
जो महिलाएं अच्छी डाइट लेती हैं, शारीरिक रूप से सक्रिय रहती हैं, अपने वजन को नियंत्रित रखती है, उनमें बांझपन का खतरा 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है।
- संतुलित भोजन करें, जिसमें विटामिन, प्रोटीन और आयरन भरपूर मात्र में हो।
- शुद्ध शाकाहारी महिलाओं में अक्सर विटामिन बी-12, जिंक, आयरन और फॉलिक एसिड की कमी हो जाती है। इन पोषक तत्वों की अतिरिक्त खुराक लें।
- तीन-चार महीने नियमित एक गिलास दूध के साथ चार-पांच लहसुन की कलियां खाने पर भी लाभ होता है।
- व्यायाम और योगासन को अपने जीवन में शामिल करें। इससे गर्भाशय की विकृतियां सही होंगी और शरीर में लचकता बनी रहेगी।
बांझपन से निपटने के लिए आधुनिक तकनीक
बांझपन से निपटने के लिए आजकल असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी काफी प्रचलन में है। विज्ञान और तकनीक की नई खोजों और विकास के कारण कृत्रिम प्रजनन तकनीक की सफलता का प्रतिशत भी बढ़ रहा है। वर्तमान में इनकी सफलता का प्रतिशत 35-40 है। लेकिन इनमें से कोई भी तकनीक 100 प्रतिशत सफल नहीं है। इसलिए कई ऐसे बदकिस्मत जोड़े हैं, जो इन फर्टिलिटी क्लीनिक के कई चक्कर लगाने और लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद बेऔलाद ही रहते हैं।
पर इसमें कोई दो राय नहीं कि इन तकनीकों ने कई सूने आंगनों को किलकारियों से भर दिया है। डॉ. गुंजन कहती हैं, ‘असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी में आईवीएफ इन विट्रोफर्टिलाइजेशन सबसे प्रचलित पद्धति है। इसमें प्रतिवर्ष 20-30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जा रही है। इसमें महिला की ओवरी से एग निकालकर उसे प्रयोगशाला में स्पर्म से निशेचित किया जाता है फिर उसे महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
इस तकनीक में पति-पत्नी के खुद के एग और स्पर्म या डोनर के एग और स्पर्म का उपयोग किया जाता है। पहले इस तकनीक का इस्तेमाल महिलाओं की फेलोपिन टयूब में खराबी होने पर ही किया जाता था, अब इसे बांझपन के दूसरे कारणों के लिए भी किया जा रहा है।’ आजकल कई महिलाएं युवावस्था में अपने अंडों को आधुनिक तकनीक की मदद से फ्रीज करवा लेती हैं, ताकि जब वह मां बनना चाहें तो अच्छी क्वॉलिटी वाले अंडों का गर्भधारण में उपयोग किया जा सके(हिंदुस्तान.दिल्ली,२३.२.१२)।
नई तकनीक के फायदे..
जवाब देंहटाएंअलावा इसके आवाहन करना पड़ता है उस सूक्ष्म जीव का आगमन का .हर महिलामें एक प्रजनन चक्र भी होता है आवधिक पुनरावर्तन होता है पुनर -आवृत्ति होती है इस चक्र की ,थोड़े थोड़े अंतराल से .
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