तम्बाकू से होने वाले प्रमुख कैंसर में मुख और गर्दन का कैंसर है। तम्बाकू चबाने या बीड़ी-सिगरेट पीने, दोनों स्थितियों में मुख एवं गर्दन के कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। मुख एवं गर्दन कैंसर का इलाज मुख्यतः सर्जरी और रेडियोथेरेपी द्वारा होता है। कीमोथेरेपी भी इन दोनों पद्वतियों के साथ सहायक रूप में दी जाती है।
आज भी विकिरण के बारे में कई अवधारणाएँ व शंकाए हैं जिसके कारण कई ज़रूरतमंद मरीज़ सही इलाज से वंचित रह जाते हैं। रेडियोथेरेपी (विकिरण चिकित्सा) को अभी भी लोग सिकाई या बिजली बोलते है जिसमें किसी मशीन द्वारा सिकाई की जाती है परंतु केवल भ्राँति है। रेडियोथेरेपी में उच्च ऊर्जा की एक्स-रे से कैंसर वाले हिस्से का इलाज किया जाता है जिसमें लिनियर एक्सेलरेटर जैसी अत्याधुनिक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। यह सुविधा विकसित संस्थानों उपलब्ध होती है। विकिरण चिकित्सा का सही प्रयोग प्रशिक्षित चिकित्सकों द्वारा किया जाता है अतः लोगों को इससे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।
रेडियोथेरेपी दो प्रकार की होती है, बाहरी और आंतरिक विकिरण चिकित्सा। बाहरी विकिरण चिकित्सा लगभग ६ से ७ हफ्ते तक चलती है। इसके लिए मरीज़ को सप्ताह में पाँच दिनों तक रोज़ एक निश्चित समय पर इलाज के लिए आना होता है। बाहरी विकिरण चिकित्सा में भी कई प्रकार उपलब्ध हैं जैसे साधारण, तीन आयामी रेडियोथेरेपी और इंटेंसिटी मोड्यूलेटेड रेडियोथेरेपी (आईएमटीआर)। यह सब लिनियर एक्सेलरेटर मशीन पर संभव है जो रेडियोथेरेपी की सबसे आधुनिक मशीन है। इसमें प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा इलाज से पहले प्लानिंग की जाती है। इस पद्यति में कैंसर वाले भाग को अधिकतम विकिरण मिलता है और सामान्य अंगों को संपूर्ण रूप से बचाया जाता है। इसके दुष्प्रभाव कम से कम होते हैं।
ब्रेकीथेरेपी के दौरान ट्यूमर कोशिकाओं में पतली प्लास्टिक की नलियाँ डालते हैं जिनसे रेडियोथेरेपी स्रोत ट्यूमर के हिस्से में जाकर रेडियेशन देता है। कैंसर की विकिरण चिकित्सा शुरु होने से पहले मरीज़ व परिजनों को कुछ महत्वपूर्ण बातों की जानकारी दी जानी चाहिए -
-मरीज़ व परिजन को पूरी प्रक्रिया के बारे में अवगत कराना बहुत ज़रूरी है।
-सब से पहले हर मरीज़ के लिए मास्क बनाते हैं ताकि मरीज़ इलाज की प्रक्रिया के दौरान बिलकुल भी हिल न सके।
-इस मास्क के साथ सीटी स्कैन होता है और इस स्कैन की तस्वीरों पर ही पूरी प्लानिंग की प्रक्रिया निर्भर करती है। इसे प्लानिंग सीटी स्कैन भी कहते हैं।
-रेडियोथेरेपी प्रारंभ होने से पहले दंत चिकित्सक द्वारा दाँतों, मसूड़ों का परीक्षण और सफाई होना आवश्यक है।
-नई तकनीक से इलाज के दौरान रेडियोथैरेपी मशीन पर भी सप्ताह में दो से तीन बार इमेजिंग द्वारा इलाज़ की गुणवत्ता को परखा जाता है।
-इलाज़ के दौरान रेडिएशन से होने वाले दुष्प्रभाव जैसे-मुंह में छाले होना,मुख लाल होना,स्वाद में परिवर्तन,दर्द,थकान,चमड़ी काली पड़ना,वज़न कम होना,लार न बनना,स्वाद में परिवर्तन-ये सभी दुष्परिणाम अस्थायी होते हैं। उचित देखभाल और डाक्टरी सलाह से मरीज़ बिल्कुल ठीक हो जाते हैं।
-मरीज़ का भोजन और वज़न चार्ट बनाना ज़रूरी है। अगर किसी कारणवश,जैसे-ज्यादा छाले होने के कारण मरीज़ यदि मुंह से नहीं खा पाए तो नाक के ज़रिए नली डाली जाती है या एंडोस्कोपी द्वारा पेट में छेद करके नली डाल सकते हैं। इन दोनों तरीक़ों से घर में बना स्वच्छ प्रोटीनयुक्त आहार दे सकते हैं।
-मुख एवं गर्दन की रेडियोथैरेपी के दौरान 8 से 10 ग्लास पानी पीना चाहिए। मुख की सफाई रखना ज़रूरी है। दिन में 8-10 बार कुल्ला करना चाहिए।
-जिस भाग में रेडियोथैरेपी हो रही हो,उस भाग की चमड़ी पर कोई पदार्थ न लगाएं(डॉ. आरती कौल पटेल,सेहत,नई दुनिया,फरवरी द्वितीयांक 2012)
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