शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

ऑटिज़्म के लक्षण 3 साल के पहले ही दिखने लगते हैं

ऑटिज़्म एक अवस्था है, जिसमें मस्तिष्क का विकास प्रभावित होता है। इस समस्या से ग्रसित बच्चा अपने वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता। यह मूल रूप से संवाद स्थापित नहीं करने की वजह से होता है। इससे बच्चा अपने आसपास मौजूद वस्तुओं और लोगों के साथ अर्थपूर्ण संवाद स्थापित करने में असमर्थ रहता है। वह अभिव्यक्ति के लिए एक ही तरह के शब्दों को दोहराता है और एक जैसा व्यवहार ही करता है। 

कई लोग ऐसे बच्चों को मंदबुद्धि समझ लेते हैं। मंदबुद्धि एवं ऑटिस्टिक बच्चों के बीच का अंतर लक्षणों को समझने से स्पष्ट हो सकता है। ऑटिज़्म ग्रस्त बच्चों में तीन साल की उम्र के पहले ही लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इन बच्चों का विकास शुरुआत में सामान्य बच्चों की तरह ही होता है, लेकिन धीरे-धीरे ऑटिज़्म के लक्षण विकसित होने लगते हैं।

लक्षण

-इससे ग्रस्त बच्चे संप्रेषण या संवाद स्थापित नहीं कर पाते।

-वह एक ही प्रकार की अर्थहीन शारीरिक क्रिया बार-बार दोहराते हैं, जैसे डिब्बों को एक के ऊपर एक रखकर जमाते रहना।  

 -परिणामस्वरूप बच्चा सामान्य जीवन जीने के लिए आवश्यक सामाजिक व्यवहार एवं वार्तालाप के कौशल को विकसित नहीं कर पाता। इस प्रकार आत्मनिर्भर न बन पाने की वजह से वह अपने दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर आश्रित रहता है। 

ऑटिज्म ग्रसित बच्चे 


ऐसे बच्चे आई कॉन्टेक्ट नहीं कर पाते। वे न तो लोगों की ओर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं,न ही मुस्कुराते हैं और न ही आवाज़ के प्रति कोई प्रतिक्रिया देते हैं। उम्र के साथ बढ़ने पर भी ये बच्चे सामाजिक समझ को प्रदर्शित नहीं करते,जैसे-हंसने,डांटने,डराने एवं नाम पुकारे जाने पर कोई अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। परिणामस्वरूप,एक ही प्रकार के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। ये बच्चे एकाग्रचित्त भी नहीं हो पाते,अतः,शैक्षणिक विकास अवरूद्ध होता है। 


कारण
दिमाग़ द्वारा सूचनाओं को प्रोसेस करने की प्रक्रिया ऑटिज़्म के कारण प्रभावित होती है। तंत्रिकाएँ आपस में जुड़कर मस्तिष्क तक जानकारी को पहुँचाते हैं। ऑटिज़्म में इस प्रक्रिया में परिवर्तन आ जाता है। इसका सटीक कारण फिलहाल अज्ञात है। जीन्स में होने वाले परिवर्तन संभावित कारणों में शामिल हैं। ऑटिज़्म का एक मज़बूत आनुवांशिक आधार होता है। ऐसा नहीं है कि इन बच्चों का दिमाग़ काम ही नहीं करता। ऑटिज़्म ग्रसित बच्चों का दिमाग़ अलग तरह से काम करता है। इनके दिमाग़ का कुछ हिस्सा सामान्य से भी अधिक कार्य करता है। इसीलिए ये असाधारण रूप से चीज़ों को ध्यान में रख सकते हैं और पूरी बारीकी के साथ ड्रॉइंग भी बना लेते हैं।

इलाज
चूँकि ऑटिज़्म का कारण अस्पष्ट है, इसलिए इसका इलाज या बचाव भी नहीं है। ऑटिज़्म से पीड़ित बच्चे का जीवन सरल बनाने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। यदि बच्चे में इसका शुरुआत में ही पता चल जाए और तभी से विशेष ध्यान दिया जाए तो उसकी हालत में कुछ सुधार हो सकता है। हालाँकि यह सब एक हद तक ही मददगार होते हैं, स्थिति के प्रबंधन के लिए प्रोफेशनल्स की मदद ली जा सकती है। शिक्षण की विशेष पद्घति, संवाद, भाषा और व्यवहार से जुड़ी समस्याओं के लिए विशेष देखभाल ज़रूरी है। ऑटिज़्म के लक्षणों में अवसाद या दौरे भी शामिल हो सकते हैं, इन लक्षणों के लिए दवाएँ दी जा सकती हैं। हालाँकि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन कुछ बच्चे बड़े होने पर ठीक भी हुए हैं। इससे प्रभावित अधिकतर बच्चे वयस्क होने के बाद भी दूसरों पर निर्भर रहते हैं। कम ही आत्मनिर्भर होने में सफल हो पाते हैं(डॉ. वीएस पाल,सेहत,नई दुनिया,फरवरी प्रथमांक 2012)।

1 टिप्पणी:

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।