शरीर में कुदरत ने लीवर नामक एक जादुई अंग दिया है । बुरी आदतों से खराब हुए लीवर में छोटा सा हिस्सा भी सुरक्षित बच गया है तो इलाज से उसे पुनः एक नए लीवर का रूप दिया जा सकता है लेकिन लीवर पूरा खराब हो गया यानी सिरोसिस हो गया तो वह कुदरती गुण खत्म । फिर महंगा लीवर ट्रांसप्लांट ही एक रास्ता बचता है ।
इस दौर में लीवर के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी आ गई है । आप दारू (अल्कोहल) नहीं लेते हैं, हेपेटाइटिस बी का संक्रमण भी नहीं है तो क्या हुआ? आपके लीवर पर खतरा कम नहीं हुआ है ! आप मोटे हैं, आपको डायबिटीज है, आप काउच पोटेटो (खा-पीकर टीवी के सामने बैठे रहने वाले) हैं तो भी आपके लीवर पर खतरा मंडरा रहा है । इस तरह के लोग भी अब भारी संख्या में लीवर सिरोसिस के शिकार हो रहे हैं । ट्रांसप्लांट कराने आने वालों में उनकी संख्या बढ़नी जारी है । दारू पीने वाले को यह डर बना रहता है कि उनका लीवर खराब हो सकता है लेकिन दिमाग में यह बात विरले आती है कि भोजन एवं मेटाबॉलिज्म की गड़बड़ी से, शरीर में जा रही चर्बी से भी लीवर सिरोसिस की स्थिति आ सकती है ।
आम लोगों में यह चेतना जगाना पहली जरूरत है। फैट से लीवर खराब हो रहा है । इसके लिए शरीर कोई चेतावनी भी नहीं देता है इसलिए बैठे-ठाले खाने-पीने वाले थुलथुल लोग ४० साल के बाद से ही हर साल "लीवर टेस्ट" करवाते रहें ताकि सिरोसिस की स्थिति रोकी जा सके । जंक फूड खाने वाले युवा भी दूसरी परीक्षाओं के साथ-साथ एक बार लीवर का टेस्ट दे ही दें । हो सकता है, उन्हें पता लग जाए कि लीवर में फैट की घुसपैठ होने लगी है(डॉ. ए.एस.सोईन,संडे नई दुनिया,22-28 जनवरी,2012) ।
फैटी लीवर की अनदेखी है घातक
फैटी लीवर की समस्या अपने आप में गंभीर तो है ही, साथ ही यह कई गंभीर रोगों की जड़ भी हो सकती है । फैटी लीवर की वजह से ब्लॉकेज, किडनी संबंधित रोग, लीवर फेल होना, मोटापा, हाइपर टेंशन, कैंसर की आशंका, जीआई ट्रैक में सूजन, हीमोग्लोबिन की कमी आदि समस्याएं हो सकती हैं । ऐसे में सही समय पर इस पर नियंत्रण व इसका उपचार बेहद आवश्यक है ।
फैटी लीवर की कई वजहें हो सकती हैं । मसलन, बहुत अधिक तली-भुनी चीजों का सेवन, दही-लस्सी जैसी ठंडी चीजों का अधिक सेवन, जंक फूड, प्रकृति विरुद्ध भोजन का सेवन जैसे नमक-दूध का एक साथ सेवन आदि । मेवे, मदिरा व अत्यधिक धूम्रपान आदि से भी फैटी लीवर की आशंका बढ़ जाती है । थायराइड के मरीजों में इसकी आशंका अधिक रहती है । प्रजनन के बाद महिलाओं में फैटी लीवर के मामले भी बढ़ जाते हैं । चयापचय क्रिया (मेटाबॉलिज्म रेट) के घटने से भी लीवर पर फैट जमा हो जाता है ।
फैटी लीवर के उपचार के लिए आयुर्वेद में कई कारगर औषधियां हैं । पुनर्नवादि गुग्गुल, यकृत प्लीहारी लौह, आरोग्यवर्धनी वटी, वृष आंवला, त्रिकूट चूर्ण, पुनर्नवादि क्वाथ, लौह भस्म, मंडूर भस्म, मवायस लौह, लीव-५२, पुनर्नवादि मंडूर, दशमूल क्वाथ आदि औषधियां फैटी लीवर के उपचार में बेहद कारगर हैं बशर्ते इन्हें किसी अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से लें(डॉ. आकाश परमार,संडे नई दुनिया,22-28 जनवरी,2012) ।
लीवर सिरोसिस का संकेत हो सकता है फैटी लीवर
जब किसी व्यक्ति के लीवर की कोशिकाएं फूल जाती हैं, उनमें चर्बी और पानी जमा होने लगता है या हो जाता है तो उसे फैटी लीवर कहते हैं । आमतौर पर ज्यादा शराब एवं मांसाहारी भोजन से फैटी लीवर या अल्कोहलिक हेपेटाइटिस के मामले देखे जाते हैं । फैटी लीवर के मामले में पेट में दाहिनी तरफ पसलियों के पीछे सूजन, दर्द तथा आंखों में पीलापन या जॉन्डिस जैसे लक्षण हो सकते हैं ।
शराब का ज्यादा सेवन करने वाले व्यक्तियों में फैटी लीवर के लक्षण पहले आते हैं फिर मामला लीवर सिरोसिस तक भी पहुंच सकता है । प्रायः मधुमेह, मोटापा, कुपोषण आदि की स्थिति में भी फैटी लीवर हो सकता है । लीवर संक्रमण के लिए हेपेटाइटिस बी एवं सी वायरस भी जिम्मेदार है, अतः फैटी लीवर के मामले में शीघ्र व समय से लीवर फंक्शन की जांच किसी विशेषज्ञ चिकित्सक की निगरानी में अवश्य करा लेनी चाहिए ।
महानगरों और कस्बों में युवाओं में शराब की लत बढ़ने से इन युवाओं में फैटी लीवर के मामले भी बढ़े हैं । आमतौर पर ४०-४५ वर्ष की उम्र में होने वाली यह स्थिति अब ३०-३५ वर्ष की उम्र के युवाओं में देखी जा रही है । फैटी लीवर के लक्षण भविष्य के लीवर सिरोसिस एवं लीवर कैंसर का आरंभ भी हो सकते हैं इसलिए संबंधित व्यक्ति अपने फैटी लीवर को नजरअंदाज न करें । लीवर में चर्बी या फैट जमा होने से लीवर के आवश्यक कार्य बाधित हो जाते हैं और व्यक्ति की भूख कम हो जाती है । अपच, पेट में सूजन, पैरों एवं हाथों में सूजन, शरीर पर खुजली, कमजोरी आदि के लक्षण सामने आने लगते हैं ।
जैसे ही आपके लीवर में चर्बी के लक्षण दिखें वैसे ही सतर्क हो जाएं । अपने विशेषज्ञ चिकित्सक से मिलें । खानपान व जीवनशैली नियंत्रित करें । नियमित व्यायाम और प्राणायाम आदि भी आपके उपचार में मददगार सिद्ध होंगे ।
खाने में चर्बी, तली हुई चीजें, घी, तेल, मिर्च-मसाले कम कर दें । शराब को तो भूल ही जाएं और अपने होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श करें । होम्योपैथी में फैटी लीवर एवं लीवर की अन्य तकलीफों के लिए अच्छी व प्रामाणिक दवाएं उपलब्ध हैं । फैटी लीवर के ९५ प्रतिशत मामले होम्योपैथिक उपचार से ठीक हो जाते हैं।
यहां मैं केवल जानकारी के लिए इस रोग में प्रयुक्त होने वाली दवाओं के नाम का जिक्र कर रहा हूं। प्रमुख होम्योपैथिक दवाओं में अरममेट, आर्सेनिक अल्ब, चेलिडोनियम, काली बाइक्रोम, कार्डुअस मेरिओनस, चिलोन, चिनिनम सल्फ, लाइकोपोडियम, लैकेसिस, फॉस्फोरस, पिकरिक एसिड, मरक्यूरियस, सल्फर आदि अनेक उपयोगी व प्रभावी दवाएं हैं । होम्योपैथिक उपचार रोगी के शरीरिक व मानसिक लक्षणों की सदृश्यता के आधार पर होता है इसलिए सलाह है कि होम्योपैथिक विशेषज्ञ से परामर्श करने के बाद ही दवाओं का सेवन करें(डॉ. ए.के.अरूण,संडे नई दुनिया,22-28 जनवरी,2012)।
@खाने में चर्बी, तली हुई चीजें, घी, तेल, मिर्च-मसाले कम कर दें । शराब को तो भूल ही जाएं
जवाब देंहटाएंकुछ भी नहीं हो सकता.
दीपक जी ने जो कहा वो सच है ।
जवाब देंहटाएंहिंदी दुनिया
Zabardast Jaankaari... Behad upyogi...
जवाब देंहटाएंBahut-bahut Dhanywaad Radharaman ji...
सचेत करती जानकारी ।
जवाब देंहटाएंसंभल कर रहना होगा। मैं बड़ा लापरवाह किस्म का आदमी हूं।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी।
जानकारी के लिए धन्यवाद यह देसी आयुर्वेदिक् ओषधियाँ चिकागो में नहीं मिलती और होमियोपैथिक भी नहीं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
bahut bahut dhanyavad sir
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