कई बार आपने आईने के सामने खड़े होकर अपनी सुंदरता बढ़ाने वाले तिल (या मस्से) को निहारा होगा और मन ही मन उसकी प्रशंसा भी की होगी, लेकिन आपने यह कभी भी नहीं सोचा होगा कि जिस छोटे से तिल ने आपकी खूबसूरती में चार चाँद लगाते हुए आपको ढेरों तारीफें दिलवाई हैं, वो कैंसरयुक्त भी हो सकता है। लोगों के शरीर पर आमतौर पर १४-४० तिल होते हैं। तिल को मेलेनोसिटिक नेवी के नाम से भी जाना जाता है। ये छोटे विकार (स्किन लीज़न) होते हैं, जो आमतौर पर भूरे रंग के होते हैं, लेकिन कभी-कभी इनका रंग काला या त्वचा के रंग से मेल खाता हुआ भी हो सकता है। ये समतल या उभरे हुए, चिकने या खुरदरे हो सकते हैं या फिर इन पर बाल भी उगे हो सकते हैं। आमतौर पर इस तरह के तिल नुकसानदेह नहीं होते हैं और इनसे किसी भी तरह की समस्या नहीं होती है। हालाँकि, जिन लोगों के शरीर पर ५० से ज़्यादा तिल या मस्से होते हैं, उनमें मेलेनोमा यानी त्वचा के कैंसर के सबसे आक्रामक रूप का खतरा सबसे ज़्यादा होता है।
बचपन से युवावस्था तक शरीर के विभिन्ना अंगों पर नए तिल बनना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन आमतौर पर वयस्क होने के बाद शरीर पर कोई नया तिल कम ही बनता है। कैंसरयुक्त तिल त्वचा के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं, भले ही त्वचा सूरज की किरणों के सीधे संपर्क में न भी हो।
३४ वर्षीय इस महिला को हाल ही में कैंसर हॉस्पिटल भेजा गया। उसकी दाहिनी बाँह पर स्थित एक तिल से अचानक ही खून बहने लगा और उसमें काफी खुजली होने लगी। यह तिल उन्हें बचपन से ही था। समय बीतने के साथसाथ तिल के रंग और आकार में बदलाव होने लगा। इस परिवर्तन को महसूस करने के बावजूद उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया-यह सोचकर कि शायद यह सामान्य हो। फिर जब तिल से खून बहने लगा,तब वे डाक्टर के पास पहुंचीं,जहां उन्हें मैलिगनेंट मेलेनोमा(त्वचा का कैंसर)होने का पता चला।
चिकित्सकों का कहना था कि मरीज़ द्वारा लापरवाही बरतने के कारण इलाज़ में देरी हुई और मामला गंभीर हो गया। यदि वो हमारे पास पहले आतीं तो उन्हें सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती और उनके ठीक होने की संभावना अधिक हो जाती।
आधुनिक चिकित्सा और कैंसर की नई दवाओं के कारण,उन्नत अवस्था में पहुंच चुके कैंसर का इलाज़ संभव हो गया है। टारगेटेड थैरेपी और इम्युनोथैरेपी जैसी नई चिकित्सा पद्धतियां बहुत प्रभावी होती हैं। टारगेटेड थैरेपी द्वारा सिर्फ कैंसर प्रभावित कोशिकाओं को लक्ष्य किया जाता है। इम्यूनोथैरेपी द्वारा शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली कोशिकाओं को उत्तेजित किया जाता है। चूंकि मैलेनोमा का कोई निश्चित रंग नहीं होता,इसलिए शरीर मे होने वाले किसी भी तरह के बदलाव के प्रति सचेत रहना आवश्यक है।
ये तिल हो सकते हैं खतरे के निशान
जो सामान्य से बड़े आकार के होते हैं।
जिनका रंग अलग तरह का होता है।
आकृति सामान्य तिल से अलग हो तो।
यदि किसी इंसान के शरीर पर असामान्य तिल हो तो इससे मेलेनोमा का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए हर शख्स को अपने तिल का परीक्षण करते रहना चाहिए और यह देखना चाहिए कि पिछले कुछ महीनों में उसमें किसी तरह का बदलाव तो नहीं हुआ है। तिल में एक सप्ताह के अंदर भी कोई बदलाव देखा जा सकता है, पर कुछ तिल में महीनों बाद परिवर्तन दिखाई देते हैं। यदि तिल में किसी तरह का प्रत्यक्ष परिवर्तन नज़र नहीं आ रहा हो तो यह मेलेनोमा नहीं हो सकता, क्योंकि मेलेनोमा समय के साथ बदलते रहते हैं। हालाँकि, हर किसी को सतर्क रहना चाहिए और थोड़ा-बहुत बदलाव भी नज़र आने पर तत्काल उपाय करना चाहिए(डॉ. जेबी शर्मा,सेहत,नई दुनिया,जनवरी 2012 प्रथमांक)
rochak jankari ke liye thanks
जवाब देंहटाएंvery very useful post thanks.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी उपयोगी जानकारी है !
जवाब देंहटाएंलगा नहीं तिल भी इतने खतरनाक हो सकते है !
ये सुन रखा था आज आपने पूरी जानकारी दे दी………आभार्।
जवाब देंहटाएंबड़े काम की पोस्ट..आशा है अब लोग अपने तिल या मस्से को अनदेखा ना करेंगे..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.
बहुत अच्छी जानकारी है
जवाब देंहटाएंयह तिल तो बहुत खतरनाक है ..
जवाब देंहटाएंbahut hi achi jankari .....
जवाब देंहटाएंयानि ब्यूटी स्पॉट भी बन सकता है जान का दुश्मन .
जवाब देंहटाएंतिल इतना खतरनाक हो सकता है ये तो सोचा ही नहीं था ,अच्छा चेताया आपने ....आभार
जवाब देंहटाएंये काला रंग तुम्हारा फरिश्तों की खता है !
जवाब देंहटाएंवो तिल बना रहे थे कि स्याही फिसल गयी !!
http://aatm-manthan.com
तिल के बारे में पहले कभी ऐसी कोई जानकारी नहीं थी जो आज आपकी पोस्ट पढ़कर मिली आभार
जवाब देंहटाएं