बुधवार, 18 जनवरी 2012

गर्भावस्था में देखभाल

गर्भावस्था जीवन की एक महत्वपूर्ण अवस्था है, जिसमें महिला को न सिर्फ अपना, बल्कि अपने होने वाले शिशु के स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना होता है। गर्भावस्था का परिणाम एक स्वस्थ माँ और स्वस्थ शिशु होना चाहिए। गर्भावस्था में उचित खुराक, आराम, व्यायाम, चिकित्सकीय देखभाल, जाँचों और जरूरत प़ड़ने पर कुछ दवाओं की जरूरत होती है। इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। 

गर्भावस्था के प्रारंभिक तीन महीनों में कई महिलाओं को मॉर्निंग सिकनेस या जी मचलाने या मितली आने की शिकायत होती है। इस अवधि में सुबह बिस्तर से निकलने से पहले ही सूखा बिस्किट खा लें। थो़ड़ी बहुत चाय-कॉफी और हल्का खाना, फल, सलाद खाते रहें। बच्चे के समुचित विकास के लिए माँ की खुराक में ज़्यादा कैलोरी, प्रोटीन, आयरन और कैल्शियम आवश्यक है। आमतौर पर भारतीय शाकाहारी होते हैं। इसलिए खुराक में प्रोटीन की आपूर्ति के लिए दालों और अंकुरित अनाज भी खाना आवश्यक है। यदि चार-पाँच प्रकार की दालें मिलाकर बनाएँ तो और अच्छा है। इनके अलावा मूँगफली, छोले, राजमा, भुने चने और हो सके तो सूखे मेवे का नियमित सेवन करना चाहिए। सोयाबीन भी प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत है। 

महिलाओं में लौह तत्व की कमी से एनीमिया होना भी बहुत अधिक पाया जाता है। इससे बचने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियाँ, फल, सलाद खाना आवश्यक है। आयरन की गोली अवश्य लें। विटामिन-सी के सेवन से आयरन का अच्छी तरह से अवशोषण होता है। कैल्शियम के लिए आहार में रोज प्रचुर मात्रा में दूध, दही या मट्ठा होना चाहिए। कमी अधिक हो तो कैल्शियम की गोली भी लेना चाहिए। हर गर्भवती महिला को रात में कम से कम आठ घंटे की नींद जरूर लेना चाहिए। साथ ही दिन में भी एक-दो घंटा आराम की जरूरत है। गर्भावस्था में रोजमर्रा का हल्का-फुल्का काम किया जा सकता है, लेकिनभारी काम से पूरी तरह परहेज करें। साथ ही उचित व्यायाम करना आवश्यक है। गर्भावस्था के व्यायाम की जानकारी स्त्री रोग विशेषज्ञ से ले सकते हैं। विशेषज्ञ से सलाह लिए बगैर मन से व्यायाम न करें। बेहतर होगा कि व्यायाम योग्य प्रशिक्षक की मौजूदगी में करें। 

भ्रांतियों से दूरी बनाएँ 
कई घरों में यह मान्यता होती है कि गर्भावस्था के सातवें-आठवें महीने तक डॉक्टरी जाँच की कोई आवश्यकता नहीं होती है, जो सरासर गलत है। मासिक धर्म रुकने के तुरंत बाद ही डॉक्टरी जाँच करवाकर निश्चित करवाएँ की आप गर्भवती हैं। पहले छह महीने तक एक-एक महीने के अंतराल से जाँच करवाना चाहिए। सातवें महीने से हर पंद्रह दिन में जाँच करवाएँ। नवाँ महीने लगने पर हर हफ्ते जाँच की आवश्यकता होती है। कुल मिलाकर कम से कम दस बार जाँच होना चाहिए। 

चिकित्सक की सलाह मानें 
डॉक्टर की सलाह के अनुसार परीक्षण और आवश्यकतानुसार सोनोग्राफी होना चाहिए। पहली सोनोग्राफी जाँच डे़ढ़-दो महीने की गर्भावस्था में ही की जाती है। इससे भ्रूण की स्थिति के सही निदान के साथ ही प्रसव की सही तारीख भी तय की जा सकती है। इसके बाद चौथे महीने में यानी कि सोलह से अठारह हफ्ते में सोनोग्राफी करवाकर गर्भस्थ भ्रूण के अंदर कोई जन्मजात ग़ड़ब़ड़ी जैसे कि हृदय, सिर में, री़ढ़ में या पेट में ग़ड़ब़ड़ी हो तो उन्हें देख लिया जाता है।

अंतिम तिमाही में रहें सावधान 
सातवें-आठवें महीने में सोनोग्राफी से गर्भनाल की स्थिति, शिशु का वजन, बच्चेदानी के अंदर का पानी सभी की जाँच होती है। आपके डॉक्टर को जरूरत प़ड़ने पर सातवें महीने के बाद एक से अधिक सोनोग्राफी की जरूरत हो सकती है।

भ्रूण का विकास कम हो तो क्या करें 
यदि बच्चे में विकास की दर कम हो तो पहले यह सुनिश्चित करें कि माँ गर्भावस्था के दौरान कोई बीमारी जैसे ब्लड प्रेशर (रक्त चाप), डायबिटीज (मधुमेह) से तो पी़िड़त नहीं थी। यदि वह बीमार है तो कलर डॉप्लर सोनोग्राफी की जरूरत प़ड़ सकती है। इसमें शिशु के धमनियों में रक्त का प्रवाह कैसा है, इसे जाँचा जाता है और आने वाले खतरों की चेतावनी मिलती है।

न कराएँ लिंग परीक्षण 
ध्यान रहे कभी भी शिशु का लिंग परीक्षण करवाने के लिए सोनोग्राफी न करवाएँ। यह न केवल आपके और समाज के लिए हानिकारक है वरन्‌ कानूनन अपराध भी है। प्रसूति विशेषज्ञ द्वारा नियमित रूप से आपकी खून की एवं पेशाब की जाँचें करवाई जाएँगी। हिमोग्लोबिन की जाँच गर्भावस्था में तीन-चार बार करवाना आवश्यक है। आपका रक्त समूह (ब्लड ग्रुप) जानना जरूरी है। यह भी तय करें कि आप आर.एच. निगेटिव तो नहीं हैं। सातवें महीने में ग्लूकोज देकर शुगर की जाँच होती है। पेशाब की जाँच से यूरिनरी इंफेक्शन का पता चलता है। इन सबके अलावा एचआईव्ही और हिपेटाइटिस "बी" की जाँच करवा लेना चाहिए।

टिटेनस के टीके 
गर्भावस्था में महिला को टिटेनस टॉक्साइड के दो इंजेक्शन चार से छह हफ्ते के अंतराल से लगते हैं, जिनसे माँ और नवजात शिशु दोनों में टिटेनस की रोकथाम होती है। 

जिन महिलाओं की गर्भावस्था सामान्य रहती है, उनको ज्यादा चिंता की जरूरत नहीं, लेकिन कई बार गर्भावस्था "हाई-रिस्क" या असामान्य श्रेणी में आती है(डॉ. प्रियदर्शिनी तिवारी,सेहत,नई दुनिया,जनवरी 2012 प्रथमांक)।

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