सोमवार, 5 दिसंबर 2011

ब्रेन डेथ की जानकारी देना बनेगा अनिवार्य

अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में बरसों से पीड़ादायक जीवन जी रहे मरीजों के लिए राहत की खबर है। अगले वर्ष से अंगदान के लिए केंद्र सरकार व्यापक अभियान चलाने की तैयारी में है। अभियान के तहत हर राज्य में एक नोडल सेंटर बनाया गया है। उत्तर प्रदेश में अभियान की शुरूआत लखनऊ से होगी। इसके लिए संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) का चयन नोडल सेंटर के तौर पर किया गया है। इस सेंटर के अंतर्गत राजधानी के विभिन्न इलाकों में सब-सेंटर होंगे। निजी व सरकारी अस्पतालों को अपने यहां आने वाले ब्रेन डेथ मामलों की जानकारी इन सब-सेंटरों पर देना जरूरी होगा। एसजीपीजीआइ में करीब दो दशक पहले किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू हुई थी, लेकिन अब तक केवल चार कैडेवर डोनर्स ही सामने आए। ब्रेन डेड की स्थिति में अंगदान की यह निराशाजनक तस्वीर अमूमन पूरे देश में है। अंगदान को लेकर समाज में जागरूकता की कमी, अस्पतालों के बीच सामंजस्य का अभाव और किसी नियंत्रक संस्था का न होना इसकी बड़ी वजह है। इसे दूर कर कैडेवर डोनर की संख्या बढ़ाने का रोड मैप तैयार है। नेशनल ट्रांसप्लांटेशन एक्ट के तहत उप्र केएसजीपीजीआइ को नोडल सेंटर बनाया गया है। इस सेंटर से कई अन्य सब-सेंटरों को जोड़ा जाएगा। यह अस्पतालोंमें होने वाले ब्रेन डेथ के मामलों की जानकारी मिलने पर वहां पहुंचकर परिवार वालों की काउंसिलिंग कर उन्हें अंगदान के लिए प्रेरित करेंगे। सहमति के बाद अंग निकाल कर एसजीपीजीआइ लाया जाएगा, जहां उसे प्रत्यारोपित किया जाएगा। 

क्या है ब्रेन डेथ : 
गंभीर दुर्घटनाओं या लम्बी असाध्य बीमारियों के इलाज के दौरान कई मरीज ऐसी स्थिति में आ जाते हैं जिन्हें बचाना नामुमकिन होता है। वेंटीलेटर पर सांस और हृदय की धड़कन तो चलती रहती है लेकिन मेरूदंड को दिमाग से जोड़ने वाली नसें पूरी तरह से मृत हो जाती हैं, जिन्हें किसी किसी भी सूरत में सक्रिय नहीं किया जा सकता। विभिन्न जांचों से इस बात की पुष्टि हो जाती है, जिसके बाद मरीज को ब्रेन डेड घोषित कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में उसके परिजन मृतक का अंगदान कर सकते हैं। ऐसे दानदाता को कैडेबर डोनर कहा जाता है। 

देना होगा प्रमाणपत्र : 
एक्ट के तहत सरकारी और निजी अस्पतालों को ब्रेन डेथ होने की स्थिति में मरीज के परिजनों को इस आशय का प्रमाणपत्र जारी करना होगा। इसके साथ ही यह जानकारी संबंधित सब-सेंटरों पर भेजनी होगी। फिलहाल अस्पतालों में ऐसे मरीजों को हृदय की धड़कन रुकने का इंतजार किया जाता है, और ऐसा होते ही उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। 

होगी निगरानी : 
कैडेवर डोनर से मिले अंगों के प्रत्यारोपण के लिए निगरानी संस्था भी बनेगी। दान में मिले अंगों के प्रत्यारोपण में पारदर्शिता बनाए रखने की जिम्मेदारी इस संस्था की होगी(रणविजय सिंह,दैनिक जागरण,लखनऊ,5.12.11)।

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