दिल्ली के यूथ पर हुई एक स्टडी बताती है कि नाइट शिफ्ट करने वाले ज्यादातर लोगों की लाइफ काफी प्रभावित हुई है। उन्हें डिप्रेशन जैसी हेल्थ प्रॉब्लम्स का सामना करना पड़ रहा है :
पिछले दिनों इंडियन स्लीप डिसऑर्डर एसोसिएशन ने दिल्ली के 19 से 37 साल के ऐज ग्रुप के लोगों पर एक स्टडी की। इसमें पाया गया कि नाइट शिफ्ट में काम करने वाले 81.1 पर्सेंट प्रफेशनल्स को डिप्रेशन की शिकायत है। दूसरी ओर , डे शिफ्ट में काम करने वालों में महज 14.8 पर्सेंट लोग ही इसके शिकार हैं।
यही नहीं , नाइट शिफ्ट वालों में स्मोकिंग और अल्कोहल लेने की हैबिट भी देखी गई है। यह दिल्लीवालों के लिए प्रॉब्लम और बड़ी कर रहा है। दरअसल , ये रात में काम करने के लिए कॉफी और एनर्जी ड्रिंक्स पर डिपेंड हैं , वहीं दिन में सोने के लिए अल्कोहल की हेल्प लेते हैं।
दिक्कत ही दिक्कत
बीपीओ सेक्टर के अलावा भी कई फील्ड्स हैं , जहां लेट नाइट ऑफिस टाइमिंग्स हैं। मेट्रो हॉस्पिटल एंड हार्ट इंस्टीट्यूट , नोएडा में स्लीप मेडिसिन के डिपार्टमेंटल हेड डॉ . अपार जिंदल का कहना है कि सबसे ज्यादा प्रॉब्लम वहां होती है , जहां रोटेटिंग शिफ्ट होती है। ऐसे में बॉडी को शिफ्ट के अनुसार खुद को एडजस्ट करने में प्रॉब्लम होती है।
शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर के चलते क्रॉनिक इंसोमेनिया या एक्सेसिव स्लीपीनेस की प्रॉब्लम भी हो जाती है। यही नहीं , लगातार कंप्यूटर और हेडफोन के एक्सपोजर से बैक और शोल्डर पेन जैसी फिजिकल प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। सीनियर फिजिशियन डॉ . एस . सी . मोदी के मुताबिक , शिफ्ट्स के चलते गैस्ट्रिक या कॉन्स्टिपेशन की प्रॉब्लम भी बहुत देखने में आती है।
वैसे तो , स्लीप हाईजीन सबके लिए बेहद काम की चीज है , लेकिन शिफ्ट जॉब वालों को तो इसकी जरूरत कुछ ज्यादा ही होती है।
खो गई सपनों वाली नींद
करियर की ऊंची उड़ान और ढेर सारा पैसा कमाने की जिद ने यूथ की नींद छीन ली है। ऐसे में दिल्ली के युवा ज्यादा से ज्यादा काम और कम से कम आराम कर रहे हैं। नाइट शिफ्ट की वजह से उन्हें अच्छी नींद भी नहीं आती।
दरअसल , दिन में सोने से रैपिड स्लीप और नॉन रैपिड स्लीप की रेश्यो खराब हो जाती है। यह रेश्यो 25 : 75 का होता है। डॉ . जिंदल के मुताबिक , ' टोटल स्लीप का 25 पर्सेंट हिस्सा रैपिड स्लीप होती है और इसी की वजह से लोगों को मीठे - मीठे सपने आते हैं। होता यह है कि जब हम अपनी नींद का नेचरल टाइम खो देते हैं , तब दोनों पर ही इफेक्ट पड़ता है। दिन में सोने के बाद भी रैपिड स्लीप पूरी नहीं हो पाती। इसकी वजह से आपकी इंटेलेक्चुअल कपैसिटी और मेमरी पर भी असर पड़ने लगता है। मूड चेंजिंग की दिक्कत भी आ सकती है। आपको बिना किसी वजह के ही गुस्सा आने लगता है और फ्रस्टेशन भी होती है। '
जाहिर है , ऐसे में दिल्ली के युवाओं को साइलेंट स्लीप की जरूरत है।
प्लान करें गेट - टुगेदर
दरअसल , हम डे - ओरिएंटेड सोसाइटी में रहते हैं। ऐसे में शिफ्ट में काम करने वालों को अपने करीबी रिश्तेदारों या दोस्तों से मिलने - जुलने के शेड्यूल को मैच कराने के लिए एक्स्ट्रा एफर्ट करने पड़ते हैं। एक्सपर्ट की मानें , तो इसका सॉल्यूशन यह है कि आप गेट - टुगेदर के लिए थोड़ी सी प्लानिंग करें। इससे आप खुद को अपनी फैमिली से अलग - थलग महसूस नहीं करेंगे। लोगों से मिलने - जुलने से डिप्रेशन जैसी चीजों को रोका जा सकता है।
एक्सपर्ट की सलाह
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साइलेंट स्लीप के लिए बाहर के शोर को आप अवॉइड नहीं कर सकते , ऐसे में इयर बड या कॉटन डालकर सो सकते हैं। आंखों पर भी बैंड लगाकर सो सकते हैं। सोने के रिलैक्सिंग तकनीक अपनाएं। मोबाइल को साइलेंट कर दें। शॉवर ले लें या फिर वॉर्म वॉटर में पैर डाल लें। अगर इससे भी काम नहीं चलता तब किसी स्लीप एक्सपर्ट से मिलें। किसी एक्सपर्ट की सजेशन लेकर आप ' मेलाटोनिन ' जैसी मेडिसिन ले सकते हैं , जिसके असर से आप दिन में अच्छी नींद ले सकते हैं और रात में काम करते हुए अलर्ट रह सकते हैं।
- काम के बीच में 15 मिनट का ब्रेक लें। इस ब्रेक से थकान घटेगी और प्रॉडक्टिविटी लेवल भी बढ़ेगा। अगर आपकी शिफ्ट 8 घंटे की है , तो इसमें लंच के अलावा 15 मिनट के दो या तीन ब्रेक लें। बेहतर होगा अगर आपकी शिफ्ट कम से कम दो हफ्ते के इंटरवल पर रोटेट हो।
- ऐसे में डाइट को हर हाल में बैंलेंस रखें। डॉ . मोदी के मुताबिक , खाने के तुरंत बाद न सोएं। एक्स्ट्रा स्पाइसी फूड न लें और पानी खूब पीएं। एनर्जी के लिए हाई प्रोटीन और हाई कार्बोहाईड्रेट वाली डाइट लें। लो फैट डाइट लें। थोड़ी सी एक्सरसाइज जरूर करें।
- ज्यादा चाय या कॉफी न लें। आपको बता दें कि कैफीन की क्वांटिटी ज्यादा होने से आयरन और कैल्शियम को एब्जॉर्ब करने में दिक्कत आती है , जो महिलाओं के लिए खासी हार्मफुल होती है। इससे ब्लड प्रेशर पर भी इफेक्ट पड़ता है। इसकी जगह हर्बल टी , जूस या मिल्क ले सकते हैं(प्रीतंभरा प्रकाश,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,2.12.11)।
आज की जीवनशैली ही ऐसी बन गयी है..... सचेत रहना आवश्यक है.....
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी दी है आपने आभार
जवाब देंहटाएंअच्छे सुझाव और परामर्श ! दरअसल मनुष्य के रिदम आदिम हैं ०उन्हे बदलने में रिस्क तो है ही !
जवाब देंहटाएंनाईट शिफ्ट में काम करने से हॉर्मोनल बदलाव होते हैं जो कई विकार पैदा कर सकते हैं ।
जवाब देंहटाएंलेकिन अब तो लगता है , यह मजबूरी हमेशा रहेगी । आखिर विकास की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी ।
एक रोज मर्रा से जुडी अच्छी जानकारी दी है आपने ... शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी है !
जवाब देंहटाएंaabhar ....
उपयोगी और महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ देती पोस्ट...
जवाब देंहटाएंसादर आभार....