शनिवार, 24 दिसंबर 2011

खुश रहकर ही बचा जा सकता है मनोरोग से

तथाकथित आधुनिक जीवनशैली ने हमें जो यादगार ‘उपहार’ दिए हैं उनमें मानसिक रोग प्रमुख है। बड़े शहरों में तो स्थिति और भी भयावह है। दिल्ली के एम्स, विमहंस, आरएमएल, जीबी पंत और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अप्लायड साइंसेज अस्पतालों की ओपीडी में रोज पांच से छह हजार मनोरोगियों का उपचार होता है। शमीन खान बता रही हैं कि जीवन को कैसे रखें संतुलित और दुरुस्तः

दिल्ली में रिश्तों के बीच दूरिया इतनी बढ़ गई हैं कि आज पड़ोसी भी एक दूसरे को नहीं पहचानते। इस एकाकीपन से पैदा हुआ तनाव लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनता जा रहा है। हमारे मस्तिष्क और शरीर को इसकी कीमत कई बीमारियों के रूप में चुकानी पड़ रही है। खासकर जीवनशैली और आदतों से जुड़ी डिप्रेशन, एनजाइटी, मेनिया आदि तेजी से पैर पसार रहे हैं। आइए जानें, इन बीमारियों से बचाव के उपाय। 

सिजोफ्रेनिया 
यह एक जटिल मानसिक रोग है। पुष्पांजलि अस्पताल के कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ. अजय निहलानी कहते हैं, ‘इसमें रोगी के लिए वास्तविक और अवास्तविक चीजों में भेद करना मुश्किल हो जाता है। तर्क करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। कई मरीजों को अजीब तरह की आवाजें सुनाई देने लगती हैं। वह कई तरह के भ्रम में जीने लगता है। इसके मरीज अक्सर अल्जाइमर्स और डिमेंशिया से भी पीड़ित होते हैं।’ इसका प्रमुख कारण एकाकीपन, बेरोजगारी, गरीबी और नशीली दवाओं का सेवन होता है। बच्चे की अधिक पिटाई भी आगे चलकर इस बीमारी का का कारण बन सकती है। 

अल्जाइमर 
पारस अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट, डॉ. रजनीश कुमार के अनुसार, ‘यह घातक मानसिक रोग है। इसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं का आपस में संपर्क खत्म हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप मस्तिष्क की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। यह 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में पाया जाने वाला सबसे सामान्य मस्तिष्क रोग है।’ 

पार्किंसन 
यह एक न्यूरोडिजनरेटिव बीमारी है। हमारे शरीर की गति डोपामिन रसायन द्वारा नियंत्रित होती है। वह रसायन मस्तिष्क की विभिन्न तंत्रिकाओं के बीच संदेशवाहक का काम करता है। जब डोपामिन बनाने वाली कोशिकाएं मृत हो जाती हैं तो पर्किसन के लक्षण प्रकट होते हैं। इसमें हाथ पैरों में कंपकपी, शरीर का संतुलन बिगड़ना, मांसपेशियों का कड़क होना तथा अत्यधिक थकान होना आम बात हो जाती है। बाद में मरीज गहरे डिप्रेशन में चला जाता है। 

मेनिया 
मेनिया अर्थात उन्माद रोग एक गंभीर मनोरोग है। इसमें रोगी अत्यंत उत्तेजित या हिंसक हो जाता है। तनाव इस रोग में ट्रिगर का काम करता है। यह एक खतरनाक मानसिक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति इतना सक्रिय और उत्तेजित हो जाता है कि उसका वास्तविकता से संपर्क टूट जाता है। 

कारण 
मशहूर मनोवैज्ञानिक अरुणा ब्रूटा कहती हैं, ‘अनुवांशिकी कारणों के अलावा सामाजिक और पर्यावरणीय कारक भी मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जो माता-पिता अपने करियर और महत्वाकांक्षाओं के कारण बच्चों को वक्त नहीं दे पाते, जो बच्चे गरीबी में पले-बढ़े होते हैं, जिनकी मां बचपन में मर जाती हैं या पिता शराब पीकर बच्चों की पिटाई करते हैं उनमें मानसिक रोग होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।’ डॉ. रजनीश कुमार के अनुसार, ‘सिर में लगी घातक चोट, संक्रमण, तनाव, अनिद्रा और डिप्रेशन भी व्यक्ति को मानसिक रोगी बना सकता है। लंबे समय तक चलने वाले तनाव से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन स्नवित होते हैं जिनमें से कार्टीसोल भी एक है। वह मस्तिष्क को नई सूचनाएं ग्रहण करने और पहले से मस्तिष्क में इकट्ठी सूचना को याद करने में रुकावट डालता है।’ 

क्या है उपचार 
डॉ. ब्रूटा कहती हैं, ‘हमारे देश में मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता का अभाव है। 90 प्रतिशत रोगी तो उपचार के लिए कभी अस्पताल ही नहीं जाते। कई मामलों में यदि रोग का पता चल भी जाता है तो मरीज और उसके परिवार वाले खामोशी से सहते रहते हैं। कहां से सहायता प्राप्त की जाए, यह भी नहीं जानते। अगर मरीज को सही समय पर उचित इलाज उपलब्ध कराया जाए तो कई मानसिक रोगों का पूरी तरह इलाज संभव है।’ 

फार्मेकोथेरेपी 
दवाओं से किसी मानसिक रोग के उपचार को फार्मेकोथेरेपी कहते हैं। कई आधुनिक दवाएं बहुत अच्छी हैं जिनसे मस्तिष्क को स्थिर कर रोगी का इलाज किया जाता है। साइकोथेरेपी सामान्यत: साइकोथेरेपी का उपयोग मानसिक रोगों या भावनात्मक आघातों केलिए किया जाता है। इसमें मरीज से विस्तार से बातचीत कर उसकी मानसिक अवस्था का अध्ययन किया जाता है और रोग के कारणों का पता लगाया जाता है। इस थेरेपी के द्वारा रोगी को परिस्थितियों से तालमेल बिठाने और खुद को स्वीकार करने में मदद की जाती है। बिहेवियर थेरेपी यह थेरेपी इस अवधारणा पर आधारित है कि सामान्य और असामान्य दोनों बर्ताव ही सीखे जा सकते हैं। यह बिहेवियर डिसॉर्डर को ठीक करने की पद्धति है। इसमें रोगी के बर्ताव का निरीक्षण किया जाता है और उसके लक्षणों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। यह पद्धति डिप्रेशन, उत्तेजना, भय, उन्माद रोग में मददगार साबित होती है। 

हमारे विशेषज्ञः डॉ. अजय निहलानी कंसल्टेंट, मनोचिकित्सा विभाग, पुष्पांजलि अस्पताल डॉ. रजनीश कुमार वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट, पारस अस्पताल डॉ. विशाल छाबड़ा वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, विमहंस अस्पताल डॉ. अरुणा ब्रूटा जानीमानी मनोवैज्ञानिक 

दिमाग को ऐसे रखें दुरस्त 
नए शोधों ने यह साबित किया है कि मस्तिष्क भी मांसपेशियों के समान ही कार्य करता है। जितना ज्यादा आप इसका इस्तेमाल करेंगे उतना ही यह शक्तिशाली होगा। वर्ग पहेलियां हल करना मस्तिष्क को चुस्त-दुरस्त रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

व्यायाम से दिमाग में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ जाता है जिससे तनाव घटाने में मदद मिलती है। मानसिक शक्ति बढ़ती है और याददाश्त मजबूत होती है। योग मानसिक रोगों, उत्तेजना और भूलने की बीमारी में मददगार साबित होते हैं। योगासन शरीर के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करने और ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं। शरीर में 200 से अधिक न्यूरोट्रांसमीटर (नर्व सिग्नल) होते हैं। इनकी उपयुक्त कार्यप्रणाली के लिए मस्तिष्क को कुछ जरूरी तत्वों की जरूरत पड़ती है। इनमें अच्छी क्वालिटी की वसा और प्रोटीन वाले डाइट प्रमुख होते हैं। 

बातें अपनाएं 
1. निश्चित दिनचर्या: अपनी दिनचर्या को निश्चित बनाएं। अगर आपका काम अनियमित दिनचर्या वाला है तो दिनचर्या पर ध्यान देना और जरूरी है। अनियमित दिनचर्या से तनाव बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है।

2.अच्छा समय बिताएं: अपनों के साथ अच्छा समय बिताएं। आउटिंग पर जा सकते हैं, साथ खाना खाएं, बच्चों के साथ खेलें। 

3.थोड़ा समय अपने लिए भी जरूरी है: कम-से-कम 15-20 मिनट समय अपने लिए निकालें। इस समय का उपयोग व्यायाम, योग, प्राणायाम और अपनी किसी हॉबी के लिए करना चाहिए। 

4. ईष्या, द्वेष और क्रोध से दूर रहें: ये तीनों दोष शरीर के कई विकार पैदा करते हैं। ये आपके अंदर बुरी भावनाओं को बढ़ावा देते हैं जिससे अंतत: तनाव और आपके दिमाग पर दबाव बढ़ता है। 

5.आदर व स्नेह: दूसरों के प्रति आदर व स्नेह का भाव रखें। इससे आपको आदर व स्नेह मिलेगा और खुशी का अहसास होगा। डॉ. विशाल छाबड़ा, वरिष्ठ मनोचिकित्सक, विमहंस(शमीन खान,हिंदुस्तान,दिल्ली,21.12.11)।  


डाक्टर अनवर जमाल जी ने अपने ब्लॉग पर इस विषय की अच्छी व्याख्या की है।

6 टिप्‍पणियां:

  1. Ye sabhi baten Dharm batata hai .
    इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है बल्कि सनातन है अर्थात सदा से चला आ रहा है।
    ईश्वर सौ-पचास नहीं हैं और न ही उसके धर्म सौ-पचास हैं।
    ईश्वर सदा से एक है और उसका धर्म भी सदा से एक ही है।
    हिंदू भाई उसे सनातन धर्म कहते हैं और मुसलमान उसे इस्लाम कहते हैं।
    दोनों नाम एक ही धर्म के हैं।
    समय समय पर अपनी ओर से बढ़ा ली गई बातों को हटाकर जब धर्म मौलिक सिद्धांतों को देखा जाता है तो वे एक ही मिलते हैं और यही बात है कि न सिर्फ धर्म को जानने वाले शिया-सुन्नी आपस में नहीं लड़ते बल्कि धर्म को तत्वतः जानने वाले हिंदू भी किसी से नहीं लड़ते ।
    हिंदुओं में भी वही लड़ते हैं जो कि धर्म को नहीं जानते।

    भला काम करना धर्म है और बुरा काम करना अधर्म है।
    इस बात को हरेक धार्मिक आदमी जानता है और अपनी ताकत के मुताबिक वह भले काम करता भी है। आज जमीन पर जितनी भी शांति है वह धर्म का पालन करने वाले इन लोगों की वजह से ही तो है और इस्लाम का तो धात्वर्थ ही शांति है।
    ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal

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  2. bahut achchi laabhkari post hai.apni khushi ke raaste khud hi tay karne se mansik dabaav se mukti milegi.bahut sarthak post.

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  3. बहुत अच्छी जानकारी दी है !
    आभार ....

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  4. बेनामीदिसंबर 24, 2011

    very nice article.....keep it up.

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  5. मानसिक बिमारियों के प्रति जागरूक करता हुआ आलेख ....

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