अंतरराष्ट्रीय आहार शास्त्री विग्मोर ने कई प्रकार की घासों पर परीक्षण किया और उन्होंने गेहूँ के जवारों को सर्वश्रेष्ठ पाया। उनके मतानुसार गेहूँ के जवारों में १३ प्रकार के विटामिंस (जिसमें से बहुत से विटामिन एंटीऑक्सीडेंट होते हैं), जिसमें विटामिन बी-१२, कई खनिज लवण, सेलिनियम व सभी २० अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। गेहूँ के जजवारे में पाया जाने वाला एंजाइम्स शरीर को विषाक्त द्रव्यों से मुक्त करता है।
प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल नियामतें दी हैं। गेहूँ के जवारे उनमें से ही प्रकृति की एक अनमोल देन है। अनेक आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी भी कहा है, क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं, जिसमें इसका सेवन लाभ नहीं देता हो। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है। गेहूँ के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन् अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है। प्रसिद्ध आहार शास्त्री डॉ. बशर के अनुसार क्लोरोफिल (गेहूँ के जवारों में पाया जाने वाला प्रमुख तत्व) को केंद्रित सूर्य शक्ति कहा है।
गेहूँ के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आँतों की सूजन, दाँत संबंधी समस्याओं, दाँत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूँ के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूँ के बजवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
गेहूँ के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूँ के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूँ के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है। यहाँ एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूँ के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है।
यदि किसी असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को गेहूँ के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूँ के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूँ के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती हैैैै, क्योंकि गेहूँ के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है। इसे प्रातःकाल स्वल्पाहार के रूप में भी ग्रहण कर सकते हैं। प्रायः यह देखा गया है कि कुछ मांसाहारी प्राणी जैसे कुत्ते व शेर मौसम बदलने पर पाचक अंगों की आंतरिक सफाई करने के लिए घास का सेवन करते हैं और उल्टी व दस्त के माध्यम से शरीर की आंतरिक सफाई प्राकृतिक रूप से कर लेते हैं। आंतों में पड़ा हुआ खाना सड़ता है,इस वजह से टॉक्सीन पैदा होते हैं और ये टॉक्सीन रक्त को दूषित करते हैं और इस वजह से मनुष्य कैंसर का शिकार हो जाता है। इसलिए,गेहूं के जवारों के सेवन से पोषण ही प्राप्त नहीं होता,समस्त पाचन अंगों की प्राकृतिक सफाई भी हो जाती है।
प्रयोग विधि
जवारों को उनके आधार से काट लें। काटने के पश्चात अच्छी तरह से धो लें। धोने के पश्चात पुनः कैंची से बारीक-बारीक काट लें। काटने के पश्चात उसे मिक्सर में थोड़ा पानी मिलाकर पीसकर छान लें। अब इसका सेवन कर लें। इसे सुबह-सुबह खाली पेट लें। इसके सेवन के पश्चात १ घंटे तक कोई भी आहार व पेय पदार्थ न लें। प्रारंभ में २५-३० मिली गेहूँ के जवारों का प्रयोग करना चाहिए। बाद में इसकी मात्रा सेवन करने वाले की पाचन क्षमता के अनुसार २००-३०० मिली तक बढ़ाई जा सकती है। जिन्हें पाचन संबंधी तकलीफ है, उन्हें जवारों का रस पीने के स्थान पर उसे चबा-चबाकर खाना चाहिए, ताकि उनके पाचन संबंधी रोग ही दूर नहीं होते हैं वरन् गेहूँ के जवारे आसानी से पच भी जाते हैं। आँतों व आमाशय के अल्सर में पत्तागोभी का रस व गेहूँ के जवारे का रस चमत्कारिक परिणाम देता है।
सावधानी
गेहूँ के जवारों का रस निकालने के पश्चात अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए अन्यथा उसके पोषक तत्व समय बीतने के साथ-साथ नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि गेहूँ के जवारों में पोषक तत्व सुरक्षित रहने का समय मात्र ३ घंटे है। गेहूँ के जवारों को जितना ताजा प्रयोग किया जाता है , उतना ही अधिक उसका स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इसका सेवन प्रारंभ करते समय कुछ लोगों को दस्त, उल्टी, जी घबराना व अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, किंतु उन लक्षणों से घबराने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है केवल इसकी मात्रा को कम या कुछ समय के लिए इसका सेवन बंद कर सकते हैं।
Bahut hi Badhiya aur Vistrit Jankari mili....
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी दी है
जवाब देंहटाएंआभार ......
हमेशा की तरह बेहद उपयोगी जानकारी !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत स्वास्थ्य जागरूक आलेख है।
जवाब देंहटाएंपोषक तत्वों की जानकारी से मात्र मिथक होने के भ्रम का निवारण होता है। यह प्रस्तुति निश्चित ही प्रशंसनीय है।
गेहूं ज्वारे से बी-12 की प्राप्ति क्रिया पर थोडा विस्तार से प्रकाश की आवशयकता महसुस हुई। जानकारी के लिए
बहुत अच्छी जानकारी ...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी ...
जवाब देंहटाएंSahi hai .
उपयोगी जानकारी.
जवाब देंहटाएंलगता है हमें छोड़कर सभी को पता --क्या होता है गेहूं का जवारा ! :)
जवाब देंहटाएंaaj tak iske baare me suna tha...aaj padh bhi liya bahut upyogi jaankari. aabhar.
जवाब देंहटाएंअच्छी जान कारी है
जवाब देंहटाएंक्षमा विदेश में हूँ यह गेहूं के जवारे क्या वस्तु है कहाँ मिलती है
क्या चिकागो में मिलेगी
कृपया अवगत कराएँ जवारे
राधारमण जी , टिप्पणी में पूछे गए सवाल का ज़वाब देना एक ब्लोगर का नैतिक धर्म होता है । :)
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