पान एक औषधीय पान है, शौकिया खाने वाले पानों से अलग है। इसका रस सेप्टिकरोधी होने के साथ दर्दनिवारक भी होता है। विशेष औषधीय गुणधर्म के कारण इसका उपयोग आयुर्वेद में भी होता है। बच्चों के मस्तिष्क का विकास जन्म के प्रथम ३ दिनों में तेजी से होता है। उस समय माता को इस पान के साथ निम्न १२ घटकों को मिलाकर व लोहे के इमामदस्ते में ३२ बार कूटकर भोजन के बाद खिलाया जाए तो बच्चे को माता के दूध के साथ वे समस्त रसायन भी मिलेंगे, जो इन १२ घटकों के मिलाने से उत्पन्न होते हैं। ये शिशु के जैविक तथा मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पान के साथ १२ घटकों को सम्मिलित करने के कारण इसे त्रयोदशी पान कहा जाता है। महाराष्ट्र के कोंकण प्रांत में यह प्रथा आज भी प्रचलित है। इसके अलावा यह बड़ों के लिए भी लाभदायक होता है। पान में मिलाए जाने वाले घटक व उनके उपयोग पर एक नज़र-
चूना
इसमें कैल्शियम होता है। यह दांतों और हड्डियों को मज़बूती प्रदान करता है।
कत्था
यह खैर वृक्ष की छाल से तैयार किया जाता है। कत्था खाँसी, गला रोग व मुख के छालों को दूर करता है। यह रक्त के शुद्धिकरण में भी सहायक होता है।
कपूर
यह मेंथोल का निर्माता व इन्फेक्शन को दूर करने में सहायक होता है।
लौंग
विटामिन ई से भरपूर, पाचक, रुचिकर गंधविनाशक, कृमि, पीड़ानाशक, दंतशूला व पायरिया मिटाने में सहायक होता है।
इलायची
पाचन क्रिया सुधारने में मददगार, वृक्क विकार तथा आँतों के रोग से मुक्ति एवं बुखार भगाने में भी सहायक होती है।इसमें कैल्शियम होता है। यह दाँतों व हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है।
सौंफ
छोटे बच्चे को दूध पीने से जो गैस बनती है उसे दूर करने में सहायक तथा बुद्धि को विकसित करने में सहायक होती है।
जायपत्ती
मांसपेशी, धमनी, शिरा एवं स्नायु को मजबूती प्रदान करने में सहायक होती है। उदरशूल, अतिसार, वात रोग, कफ, दुर्बलता दूर करने में भी सहायक होती है।
केसर
यह कृमि को नष्ट करने में सहायता देती है।
कंक्रोल
गले को साफ करता है। स्वरयंत्र को अच्छा रखता है तथा आवाज में मधुरता लाता है।
खसखस
शक्तिवर्धक होती है।
खोपरा
जीभ के सभी प्रकार के छालों को नष्ट करने में तथा पाचन क्रिया में सहायक। साथ ही ग्लूकोज, विटामिन-ओ व विटामन-सी प्रदान करता है।
सुपारी
इसका कसैला रस पाचन की क्रिया में सहायक होता है। कृमि, अतिसार व मूत्र विकार को दूर करने में यह सहायक होता है।
नाग्यवेल का पान
इस पत्ते का रस रक्त को गाढ़ा होने से रोकता है। श्वसन रोग, डिप्थीरिया व गाँठ शोध दूर करने में भी यह सहायक होता है।
विधि
नाग्यबेल के पान के रेशे निकालकर उपरोक्त १२ घटकों को खरल में ३२ बार पीसकर पान में मिलाने के पश्चात जापे वाली माँ को ३२ बार चबाने को कहा जाता है जिसके फलस्वरूप नवजात शिशु को माँ के दूध द्वारा वे सभी घटक प्राप्त होते हैं(सरिता काणे व विजया नाईक,नायिका,नई दुनिया,7.12.11)।
खूबसूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है ... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी।
जवाब देंहटाएंनाग्यवेल, या नागरवेल के पान की प्रकृतो उष्ण होती है, यह सर्दी-जुकाम में बहुत ही उपयोगी है। यह मेरा स्वानुभव है कि जब भी सर्दी-जुकाम होता है, दो बार के प्रयोग से ही आराम हो जाता है।
सूचना परक लेख!!
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