मधुमेह के रोगियों को सबसे अधिक जोखिम पैरों की ख़ैरियत का होना चाहिए, क्योंकि इस बीमारी में पैरों में शुद्ध रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है।
अगर आप मधुमेह के मरीज हों तो कहीं ऐसा तो नहीं होता है कि थोड़ी दूर चलने पर पैरों व टाँगों में दर्द शुरू हो जाता हो, पर रुक ने पर दर्द गायब हो जाता हो। ऐसा भी हो सक ता है कि आपके पैरों, उँगलियों व तलवे में बराबर झनझनाहट बनी रहती हो, जो विशेषकर सर्दी के दिनों में बढ़ जाती हो। क भी ऐसा भी हो सकता है कि आपसे एक कदम भी चलना कठिन हो। और तो और, रात में बिस्तर पर लेटते समय टाँगों में दर्द उभरता हो जिसकी वजह से आप रात में ठीक से सो नहीं पाते हों। क भी ऐसा भी होता होगा कि अचानक आपकी नींद खुल गई और पाया कि पैरों में दर्द हो रहा है। पैरों को लटकाकर बैठे रहने या थोड़ा-सा चले तो दर्द कम हो गया। आपके साथ शायद यह भी होता हो कि हर समय पैरों में दर्द बना रहता हो और कभी-कभी यह दर्द असहनीय हो जाता हो। यदि आपको इनमें से कोई एक लक्षण भी है तो लापरवाही बिलकुल न करें, क्योंकि समस्या गंभीर हो सकती है और पैर खोने की नौबत आ सकती है। समय रहते कि सी-वैस्क्युलर या कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन की सलाह लें। अनदेखी खतरनाक हो सकती है।
डायबिटीज के मरीजों में पैर कटने का खतरा बिना डायबिटीज वाले लोगों की तुलना में लगभग डेढ़ गुना ज्यादा होता है। लंबे समय से चल रही डायबिटीज खून में शुगर की अनियंत्रित मात्रा, धूम्रपान, पेशाब में एल्ब्युमिन का होना, आँखों में रोशनी का कम होना, पैरों में झनझनाहट व संवेदनहीनता का होना तथा पैरों में खून आपूर्ति कम होने से पैर काटना पड़ सकता है।
क्यों होता है दर्द और झनझनाहट
न्यूरोपैथी के कारण पैरों में दर्द व झनझनाहट रहती है, विशेषकर पैरों के तलुओं व एड़ी में। पैरों की मांसपेशियाँ क मजोर हो जाती हैं जिससे पैरों के जोड़ों पर अनावश्यक दबाव पड़ने लगता है। इन सबकी मिला-जुला असर यह होता है कि पैरों में दर्द व झनझनाहट की शिकायत हमेशा बनी रहती है। पैदल चलने से दर्द और बढ़ जाता है। दूसरा सबसे बड़ा कारण पैरों में जाने वाले शुद्ध खून की मात्रा में कमी हो जाना है। टाँगों व पैरों की ऑक्सीजन युक्त शुद्ध खून ले जाने वाली खून की नली के अंदर निरंतर चर्बी व कैल्शियम जमा होता रहता है जिसके परिणामस्वरूप खून की नली में सिकुड़न आ जाती है जिससे शुद्ध खून की आपूर्ति में बाधा पहुंचती है। शुरूआती दिनों में बरती गई लापरवाही के कारण खून की यह नली पूरी तरह बंद हो जाती है। इस दिशा में डायबिटीज के मरीज के पैरों में दर्द शुरू हो जाता है। अगर किसी वैस्क्युलर या कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन से सलाह न ली जाए,तो पैर कटवाने तक की नौबत आ सकती है। पैर की त्वचा की रक्त आपूर्ति कम हो जाने में एक और महत्वपूर्ण कारण ऑटोनोमिक सिमपैथेटिकन्यूरोपैथी है। इसकी वजह से शु्द्ध खून पैर की त्वचा में स्थित अपने गंतव्य स्थान तक नहीं पहुंच पाता क्योंकि खून की शॉर्ट सर्किटिंग हो जाती है। पैरों के गुलाबी रंग से भ्रमित न हों और जल्दबाज़ी में इस नतीज़े पर न पहुंचें कि पैरों में खून का बहाव सामान्य और पर्याप्त है।
स्वयं करें परीक्षण
लेटकर पैरों को छाती से दो फुट ऊपर एक मिनट तक रखें। अगर पैरों का रंग गुलाबी से बदलकर पीला दिखने लगे तो समझ जाइए कि पैरों में शुद्ध खून की सप्लाई कमा है। होशियार हो जाइए कि आपके पैरों में घाव बनने की आशंका बहुत ज्यादा है। तुरंत किसी वैस्क्युलर सर्जन से सम्पर्क करें।
पैरों पर अधिक खतरा क्यों
डायबिटीज में ऑटोनोमिक न्यूरोपैथी कीवजह से पसीने को पैदा करने वाली त्वचा को चिकना बनाने वाली ग्रंथियां ठीक से काम करना बंद करत देती हैं जिसके परिणामस्वरूप पैरों की त्वचा बहुत ज्यादा खुश्क हो जाती है। इससे त्वचा फटने लगती है और गड्ढे बन जाते हैं जिससे बहुत जल्दी संक्रमण फैलने का जोखिम होता है। इसी बीमारी की वजह से मांसपेशियां कमज़ोर हो जाने के कारण हड्डियों पर दबाव बढ़ जाता है। दबाव वाले स्थानों पर गोखरू का निर्माण हो जाता है(डाक्टर के के पांडेय,सेहत,नई दुनिया,नवम्बर चतुर्थांक,2011)।
बहुत काम की जानकारी ।
जवाब देंहटाएंजानकारी ही जानकारी , आभार
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी सन्देश है। जानकरी देने के लिये थैक्स ।
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी है !
जवाब देंहटाएंमधुमेह से तो मुझको भी प्यार है परंतु पैरों से किया है मधुमेह ने प्यार नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी है ... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
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