हिप सजर्री में होने वाला दर्द अब पुरानी बात होने वाली है। अब नए हिप के जोड़ में जहां दर्द बहुत कम महसूस होगा, वहीं दूसरी ओर आप अपने ज्वाइंट्स में एक मूवमेंट भी अनुभव करेंगे। उसके बाद आप तैर भी सकेंगे, गोल्फ भी खेल सकेंगे और बाइक भी चला सकेंगे।
अधिकांश लोग गलत जानकारी और डर के कारण हिप रिप्लेसमेंट करवाने से कतराते हैं और जीवनभर के लिए परेशानी मोल ले लेते हैं। हिप (कूल्हा) रिप्लेसमेंट अब तक 60 व उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प माना जाता था, किंतु अब कृत्रिम व मजबूत ज्वाएंट्स (जोड़ों को) लगाने की नवीनतम तकनीक ने युवाओं को भी आकर्षित किया है।
दर्द तो मानो छूमंतर
हिप ज्वाएंट्स में ऑस्ट्रियो आर्थराइटिस की वजह से ज्यादातर हिप रिप्लेसमेंट कराया जाता है। यह उन लोगों के लिए भी फायदेमंद होता है जिनके हिप में किसी प्रकार की चोट लगी हो, रूमेटाइड आर्थराइटिस के शिकार हों या हड्डी में गांठ हो या फिर ब्लड सप्लाई की मात्र कम हो। हिप आर्थराइटिस में होने वाले दर्द से जब अन्य किसी प्रकार से राहत नहीं मिलती, तब हिप रिप्लेसमेंट (टोटल हिप आथ्रेप्लास्टी) दर्द से राहत दिलाता है।
क्या है तकनीक
मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ ऑथ्रेपीडिक्स एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट के निदेशक व चीफ सर्जन डॉ. एस. के. एस. मौर्या के अनुसार, ‘हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी में फेमरल हेड यानी जांघ (थाई) की बॉल को मैटल बॉल से रिप्लेस किया जाता है। धातु की यह बॉल मैटल स्टेम से जुड़ी होती है, जो आपकी थाई में अच्छी तरह लगा होता है। एक प्लास्टिक व मैटल सॉकेट को हिप की हड्डी में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है ताकि क्षतिग्रस्त सॉकेट को बदला जा सके। कृत्रिम रूप से बनाए गए इन अंगों को प्राकृतिक रूप से बने कूल्हे जैसा आकार दिया जाता है, ताकि यह सामान्य कूल्हे के जोड़ की ही तरह दिखे और उसके जैसा काम भी करे। सभी हिस्सों को इस तरह जोड़ा जाता है व ऑरगैनिक मैटीरियल कोटिंग की जाती है, ताकि आपकी हड्डी की वृद्धि इसमें संभव हो सके।’ आमतौर पर हिप रिप्लेसमेंट में 1 से 2 घंटे का समय लगता है।
लेटेस्ट टेक्नीक
इन दिनों जोड़ों के प्रत्यारोपण के बेहतर विकल्पों को भी ढूंढ लिया गया है। सेरेमिक में डेल्टा सेरेमिक व मैटल इंप्लांट्स में एक्स एल मैटल ने आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली धातुओं की जगह ले ली है, जिससे कम से कम नुकसान व अधिक से अधिक लाभ मिल रहा है। इसके अतिरिक्त हिप रिप्लेसमेंट प्रोसेस में प्रोक्जिमा एक नई अंग प्रत्यारोपण विधि है। प्रोक्जिमा के उपयोग से अधिक से अधिक हड्डियां संरक्षित रह जाती हैं, क्योंकि पारंपरिक रूप से शल्य क्रिया के दौरान इस्तेमाल होने वाले स्टेम की तुलना में इस स्टेम का आकार छोटा होता है। इसका डिजाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि अंग प्रत्यारोपण के बाद उसका प्राकृतिक स्वरूप कायम रह सके। भार के अनुसार जांघ की हड्डी के साथ एक बेहतर संतुलन स्थापित हो सके, इसी हिसाब से इसे डिजाइन किया गया है।
मिनिमल इन्वेसिव हिप रिप्लेसमेंट
हिप रिप्लेसमेंट की सर्जरी के दौरान एक नई तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। कूल्हे के जोड़ को बदलने के लिए मिनिमल इन्वेसिव हिप रिप्लेसमेंट में समान रूप से कृत्रिम अंगों का उपयोग किया जाता है, मगर शल्य क्रिया इस तरह की जाती है कि केवल तीन से पांच इंच का चीरा लगता है। मौजूदा तकनीक में 10 से 12 इंच का चीरा लगाया जाता है। जो लोग मिनिमल इन्वेसिव हिप रिप्लेसमेंट अपनाते हैं, उनका इलाज आसानी से हो जाता है(सुमन बाजपेयी,हिंदुस्तान,दिल्ली,3.11.11)।
कल सुबह जानिएः
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क्या होता है मेडिकल फेशियल
aapke blog par aakar bahut jaankari milti hai,,,.
जवाब देंहटाएंaapke paryaash ke liye subhkaamnayen or dhanywaad..
jai hind jai bharat
अच्छी जानकारी मिली ...
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