दिल की चिंता तो हम सब करते हैं लेकिन उसके लिए हम ईमानदारी से कोशिश नहीं करते। खानपान में थोड़ा बदलाव कर और अपनी लाइफ स्टाइल से सिगरेट स्मोकिंग जैसी आदतों को दूर कर हम अपने दिल की सेहत को दुरुस्त रख सकते हैं।
हृदय रोग अधिकांश लोगों में मृत्यु, विकलांगता और कार्य के घंटों के नुकसान के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है। ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और हमारे देश में किए गए अनेक प्रमुख अध्ययनों के अनुसार दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई, बेंगलुरु, जयपुर, तिरुवनंतपुरम समेत तमाम महानगरों में 35 वर्ष की आयु से ऊपर की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या हृदय धमनी रोग (कोरोनरी हार्ट डिसीज) से पीड़ित है। ग्रामीण भारत के आंकड़े कम हैं, लेकिन ये भी निरंतर वृद्धि (लगभग 4 प्रतिशत) दर्शा रहे हैं।
ये आंकड़े अत्यंत चिंताजनक हैं जो यह संकेत देते हैं कि अनुमानत: भारत में 6 करोड़ लोग हृदय की धमनियों में रुकावट से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित हैं। इसलिए उन जोखिम वाले कारणों को समझना बहुत महत्वपूर्ण है जो समस्या के लिए जिम्मेदार हैं।
सन 2000 में एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्ययन इंटरहार्ट में बताया गया कि 90 प्रतिशत मामलों में 9 जोखिम कारक ही दिल के दौरों के कारण बनते हैं। इस अध्ययन में शामिल 30 प्रतिशत रोगी दक्षिण एशियाई देशों से थे।
जोखिम के कारक
प्रतिकूल जोखिम कारणों में अत्यधिक धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, खराब कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर (एपीओबी/एपीओए1 का बढ़ा हुआ अनुपात), डायबिटीज मैलिट्स, मोटापा व मनो-सामाजिक दबाव प्रमुख होते हैं। सुरक्षात्मक जोखिम कारणों में फलों एवं सब्जियों का दैनिक सेवन, नियमित व्यायाम, शराब का सीमित सेवन शामिल हैं।
याद रखें
प्रतिदिन 20 से अधिक सिगरेट या बीड़ी पीने से दिल का जोखिम 5 गुना, 10 से 19 तक सिगरेट या बीड़ी पीने से 3 गुना तथा 5 से कम सिगरेट या बीड़ी पीने से यह जोखिम 1.5 गुना बढ़ जाता है। एक सिगरेट जिंदगी के 11 मिनट कम कर देती है और सिगरेट के धुएं से दिल के दौरों का खतरा 90 प्रतिशत अधिक बढ़ जाता है।
क्या है उपयुक्त रक्तचाप
उपयुक्त रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) 120/180 एमएमएस एचजी. 110/75 एमएमएस से अधिक बीपी होने को स्ट्रोक व हार्ट अटैक की दरों में वृद्धि के रूप में देखा जाता है। अनेक महामारी विज्ञान अध्ययनों व जीवन बीमा आंकड़ों द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है। सिस्टॉलिक या डायस्टॉलिक प्रेशर में 10 एमएमएस की वृद्धि से हृदय संबंधी समस्या का जोखिम दोगुना हो जाता है। दुर्भाग्यवश उच्च रक्तचाप में किसी तरह के लक्षण नहीं होते। इस कारण इसकी पहचान व प्रबंधन एक चुनौती है। इसलिए इसे कई बार ‘साइलेंट किलर’ (खामोश हत्यारा) कहा जाता है।
कुछ भ्रम
रक्तचाप उम्र के साथ बढ़ता है। यह सामान्य प्रक्रिया है। 60 वर्ष के व्यक्ति का ब्लड प्रेशर 160 और 80 वर्ष के व्यक्ति का 180 (उम्र +100) होता है, यह सत्य नहीं है। सभी आयु वर्गो के लिए सामान्य बीपी 120/80 एमएमएस होना चाहिए।
बीपी कम करने वाली दवाएं
सामान्य रूप से ब्लड प्रेशर के 140/85 एमएमएस से अधिक होने पर दवा लेने की सलाह दी जाती है। कुछ विशेष स्थितियों में 130/80 एमएमएस के स्तर पर भी दवाइयां लेने की संस्तुति की जाती है। ऐसे लोगों में मधुमेह से पीड़ित रोगी, गुर्दे के रोग व उच्च ब्लड यूरिया व क्रेटिनिन वाले रोगी, पहले दिल के रोग या स्ट्रोक से पीड़ित रह चुके रोगी शामिल होते हैं।
बीपी कम करने के उपाय
रक्तचाप को 10 से 15 एमएमएस कम करने के लिए बिना दवाइयों वाले उपायों में नियमित व्यायाम, प्रतिदिन नमक की मात्र 4-5 ग्राम से अधिक लेना, प्रतिदिन 4-5 बार ताजे फल एवं सब्जियों का इस्तेमाल, अल्कोहल से परहेज, वजन कम करना आदि शामिल हैं।
ये उपाय हर उस व्यक्ति को अपनाने चाहिए जिन्हें रक्तचाप है। जीवनशैली से जुड़े इन तरीकों से दवाइयों की मात्र व संख्या कम की जा सकती है। सभी लोगों को इन दवा रोधी तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि उनका रक्तचाप 120/80 एमएमएस रह सके।
कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रखने के लिए
उपयुक्त कोलेस्ट्रॉल के लिए नियमित व्यायाम, वजन कम करना, ओमेगा 3 वसीय अम्लों (जैतून का तेल, सरसों का तेल, बादाम, अखरोट, ठंडे पानी में पाई जाने वाली मछलियां जैसे सालमन, ट्राऊट आदि) में वृद्धि आदि शामिल हैं।
दबाव या तनाव
दबाव या तनाव एक महत्वपूर्ण जोखिम है। इससे एड्रेनेलिन का स्नव बढ़ता है। लगातार तनाव से ब्लड प्रेशर बढ़ता है। इससे मधुमेह हो सकता है और हृदय की धमनियां संकरी हो सकती हैं। तनाव को कम करने में श्वसन व्यायाम, सामान्य व्यायाम, योग, ध्यान व मालिश वाले तनाव प्रबंधन कार्यक्रम उपयोगी साबित हुए हैं। ये ऐसे तरीके हैं जो तनाव के कारण उत्पन्न होने वाले एडरेनलिन का प्रभाव घटाते हैं। ये आरामदायक तकनीकें काफी सुरक्षित भी हैं। उच्च जोखिम वाले लोगों को इससे काफी लाभ होगा। इसके साथ, फलों व सब्जियों से भरपूर प्रोटीन लेना, कम नमक लेना काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है(डा. उपेन्द्र कौल,हिंदुस्तान,दिल्ली,5.10.11) ।
दिल की तबीयत खराब हो जाए तो हमारी तबीयत खराब हो जाती है। ऐसे में दिल का अच्छी तरह इलाज जरूरी हो जाता है। होमियोपैथिक चिकित्सा किसी भी बीमारी का पूरी तरह सफाया करने के लिए प्रसिद्ध है। तो दिल की बीमारी के इलाज के लिए भी इसका लाभ क्यों न उठाया जाए।
बदलते दौर में आदतों के साथ-साथ कई नई समस्याएं भी अलग-अलग रूप धारण कर लेती हैं। दिल की बीमारी कुछ इन्हीं समस्याओं में से एक है। वर्तमान में जो भी परिस्थितियां हों, लेकिन आने वाला समय सेहत के लिए और भी खतरनाक होने वाला है। जानकारों की मानें तो कम हो रही शारीरिक भाग-दौड़ और बढ़ते मानसिक भार के कारण आने वाले समय में लगभग हर व्यक्ति को रक्तचाप और दिल की बीमारी हो सकती है। ऐसे में दवाओं का बोझ कहां तक आप बरदाश्त कर पाते हैं, ये आपके एम्यून सिस्टम पर भी निर्भर करेगा।
डॉक्टरों के अनुसार दिल की बीमारी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। पहले इसे बुढ़ापे की बीमारी माना जाता था। लेकिन अब यह कम उम्र के लोगों को भी अपनी चपेट में ले रही है। ऐसे में अपने दिल की सेहत का खयाल रखना जरूरी है। बेहतर लाइफस्टाइल और सही जानकारी से इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है। बीमारी हो ही जाए तो भी सही इलाज और देखभाल से जिंदगी अच्छी कट सकती है।
परिवार में दिल की बीमारी की हिस्ट्री होने के अलावा सही लाइफस्टाइल न अपनाने पर भी ब्लॉकेज की आशंका बढ़ जाती है। खानपान ठीक न होना, स्मोकिंग करना, एक्सरसाइज न करना, बेहद बिजी और टेंशन में रहना जैसे फैक्टर बीमारी की आशंका को 15 से 20 फीसदी बढ़ा देते हैं। हालांकि वक्त पर ब्लॉकेज का पता लगने और सही इलाज होने से हार्ट अटैक से बचा जा सकता है। एनडीएमसी के चीफ मेडीकल ऑफिसर (होम्यो) सुभाष अरोड़ा ने बताया कि इस बीमारी से लड़ने में दुनिया की कोई भी दवा सिर्फ आपकी सहायता कर सकती है। लेकिन कोशिश आपको खुद ही करनी होगी, क्योंकि जब तक आप अपनी लाइफ स्टाइल में कोई बदलाव नहीं करेंगे, कोई भी दवा कारगर सिद्ध नहीं होगी। सुभाष अरोड़ा के मुताबिक ऐसी परिस्थितियों में एलोपैथी दवाएं बीमारी को दबा देती हैं, लेकिन होम्योपैथी दवाएं उसका जड़ से निवारण करती हैं। निश्चित तौर पर दिल के लिए होम्योपैथी दवाएं एक अच्छे साथी की तरह काम करती हैं।
सबसे खास बात ये है कि इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। ये दवाएं सिर्फ बीमारी को ठीक करने का काम करती हैं, किसी दूसरी बीमारी का कारण नहीं बनती। हालांकि डॉक्टर सुभाष यह भी कहते हैं कि होम्योपैथी दवाएं भी तभी काम करती हैं, जब आप अपने लाइफस्टाइल में थोड़ा बदलाव करते हैं। प्रकृति के खिलाफ जाकर कोई दवा काम नहीं कर सकती।
दरअसल, दिल से जुड़ी अधिकतर बीमारियों का कारण आज का डिब्बा बंद खाना है, जिसमें अत्यधिक मात्र में सोडियम होता है। हमारा शरीर न तो उतनी शारीरिक मेहनत कर पाता है और न ही सोडियम इतनी आसानी से घुल पाता है। इसके चलते रक्त चाप और कॉलेस्ट्रॉल के बढ़ने की शिकायत आम है।
खाने में करें बदलाव
खाने में तेल के इस्तेमाल से ब्लॉकेज तेजी से बढ़ता है, इसलिए तेल का इस्तेमाल कम से कम करें। वैसे भी तेल का अपना कोई स्वाद नहीं होता। खाने में स्वाद मसालों से आता है। इसके अलावा अनाज, फलों और सब्जियों में भी फैट होता है। ये सब खाने से शरीर को 18 फीसदी फैट मिल जाता है, इसलिए अलग से ऑयल की जरूरत नहीं पड़ती।
दूध और दूध से बनी चीजें भी सीमित मात्र में खाएं। मीट, चिकन, अंडा, दूध, पनीर आदि चीजें कॉलेस्ट्रॉल का स्नोत होती हैं। जिनका कॉलेस्ट्रॉल पहले ही ज्यादा है, वे दिन में 200 ग्राम से ज्यादा दूध न लें। डबल टोंड दूध न पीने पर होने वाली कैल्शियम की कमी की भरपाई राजमा, मोठ, चना, पत्तेदार सब्जियां, कमल ककड़ी, मेथी आदि से की जा सकती है।
ज्यादा से ज्यादा फल खाएं। डायबिटीज के मरीज ऐसे फल खाएं जिनमें मिठास कम हो ताकि शुगर लेवल नियंत्रित रहे।
सिगरेट, शराब या किसी भी तरह के तंबाकू से तौबा कर लें। ये दिल के सबसे बड़े दुश्मन होते हैं(मृत्युंजय भारती,हिंदुस्तान,दिल्ली,5.10.11)।
I am a patient of high BP and Sugar.I find this post very useful for the patients like me.Thanks.
जवाब देंहटाएंबढ़िया उपयोगी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
prevention is better than cure
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी आभार !
उपयोगी और सार्थक जानकारी से भरी हुई पोस्ट ..
जवाब देंहटाएंgood informatiom to maintain good health.
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