गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

शरीर की शक्ति

इस बार चिकित्सा शास्त्र का नोबेल तीन ऐसे वैज्ञानिकों को मिला है , जिनकी खोजें आने वाले समय में दवा उद्योग के एक हिस्से पर ताला लगा सकती हैं। ये खोजें शरीर की अपनी प्रतिरोध प्रणाली ( इम्यून सिस्टम ) के बारे में हैं। जिंदा देह बगैर किसी दवा के बीमारियों का मुकाबला कैसे करती है , इसके बारे में। 

इनसे पता चलता है कि दिन - रात तमाम बैक्टीरिया , वाइरस , फफूंद और बीमारी पैदा करने वाली दूसरी चीजों से घिरे रहने के बावजूद जंगली या आवारा जानवर बीमार क्यों नहीं पड़ते , जबकि सुरक्षित परिवेश में रहने वाले खाते - पीते घरों के इंसान आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद अक्सर बीमारियां झेलते हुए ही नजर आते हैं। 

राल्फ स्टाइनमैन , जूल हॉफमैन और ब्रूस ब्यूटलर द्वारा अलग - अलग जगहों और समयों में की गई ये खोजें बुनियादी महत्व की हैं। इन्हें आधार बनाकर कैंसर , एड्स और गठिया जैसी असाध्य बीमारियों से लेकर रोजमर्रा की छोटी - मोटी बीमारियों तक का इलाज शरीर की अपनी क्षमता से ही कर लिए जाने पर दुनिया भर में काम जारी है। फार्मेकोलॉजी यानी भेषज शास्त्र की भाषा में इसे थेरैप्यूटिक वैक्सीनों का क्षेत्र कहा जा रहा है। यानी ऐसे वैक्सीन , जिनका इस्तेमाल बचाव की तरह नहहीं बल्कि बीमारी हो जाने के बाद उसके इलाज के रूप में किया जा सके। 

ध्यान रहे , इम्यून सिस्टम के बारे में हाल - हाल तक चिकित्सा शास्त्र की जानकारियां बहुत मामूली रही हैं। खून में मौजूद श्वेत रक्त कणिकाएं ( डब्लूबीसी ) शरीर में बाहर से आए हानिकारक तत्वों से लड़ती हैं , यह जानकारी पुरानी है। लेकिन वे हानिकर और अहानिकर तत्वों की पहचान कैसे करती हैं , गफलत में आकर शरीर की अपनी ही कोशिकाओं को क्यों नहीं मार डालतीं - और ऑटो इम्यून बीमारियों में ऐसा करने क्यों लगती हैं , एड्स होने पर सभी बीमारियों से लड़ने की क्षमता खत्म कैसे हो जाती है , और बिना किसी बाहरी इनफेक्शन के लोग गठिया जैसी असाध्य बीमारी के शिकार कैसे हो जाते हैं - ऐसे न जाने कितने सवाल हैं , जिनका जवाब अभी ढूंढा जा रहा है। 

जवाब तलाशने की यह प्रक्रिया उलटे ढंग से चली है। नोबेल घोषित होने के मात्र तीन दिन पहले दिवंगत हुए राल्फ स्टाइनमैन ने 1973 में डेंड्राइटिक कोशिकाओं की खोज की और बताया कि ये जन्मजात इम्यूनिटी और बाद में आने वाली सेकंडरी इम्यूनिटी के बीच की कड़ी का काम करती हैं। इसके लगभग चौथाई सदी बाद क्रमश : फलमक्खियों और चूहों की जेनेटिक्स पर काम करते हुए जूल हॉफमान और ब्रूस ब्यूटलर ने जन्मजात इम्यूनिटी के रहस्य का पर्दाफाश कर दिया। 

संसार के कम ही वैज्ञानिक हैं , जिन्हें खुद की ईजाद की हुई पद्धति से अपना इलाज कराने का मौका मिला है। राल्फ स्टाइनमैन का नाम ऐसे गिने - चुने लोगों के साथ ही लिया जाएगा , हालांकि यह इलाज उनके पैंक्रियाटिक कैंसर में उन्हें सिर्फ चार साल की जिंदगी बख्श पाया। उम्मीद करें कि इम्यूनिटी से जुड़ी ये खोजें एक दिन मानव शरीर को खतरनाक रसायनों का गोदाम बनाने का धंधा बंद कर देंगी और इसे वह गरिमा प्रदान करेंगी , जिसका यह सचमुच हकदार है(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,5.10.11)।

6 टिप्‍पणियां:

  1. दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !

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  2. ऐसी बहुत सी खोजें पहले ही हुई पड़ी हैं जिन्हें दवा कंपनियाँ सामने आने नहीं दे रही हैं ।

    ऐसी ही एक शानदार खोज करने वाली लेडी का नाम है
    Dr. Hulda R. CLARK

    इनके बताए तरीके मैंने प्रयोग किए तो कुछ हैरत अंगेज़ नतीजे देखे हैं जिन्हें कोई जल्दी से मानेगा नहीं ।

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  3. इम्यूनोथेरपी बहुत कमाल की उपलब्धि रहेगी ।

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  4. बहुत ही नायाब जानकारी दी है आपने।

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  5. bahut hi gyanopayogi jaankari..sadar naman ke sath..mere blog per bhi aayiyega

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