बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

महिलाओं में अवसाद

मनोविज्ञानियों को यह सवाल अक्सर परेशान करता है कि कोई मां आखिर कैसे खुद के जने स्वस्थ बच्चे को किसी कागज या कपड़े में लपेट कर अस्पताल , अनाथालय या किसी अन्य ऐसी सार्वजनिक जगह पर छोड़ आती है जहां उस पर किसी और नजर पड़ जाए और वह उसे पालने - पोसने के लिए ले जाए। 

अनचाही संतान या गरीबी जैसे सामाजिक कारणों के अलावा इसका एक और बड़ा कारण है प्रसव के बाद माता - पिता में पैदा होने वाला अवसाद। ब्रिटेन की एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया है कि उन लोगों ( महिलाओं - पुरुषों , दोनों ) में ऐसे अवसाद का काफी खतरा है जिन्हें मां - बाप बने ज्यादा अरसा न हुआ हो। करीब 90 हजार लोगों के डेटा के आधार पर की गई इस रिसर्च में यह नतीजा निकाला है कि प्रसव के पश्चात 13.9 प्रतिशत महिलाएं और 3.6 प्रतिशत पिता अवसाद की चपेट में आते हैं। 

पहली बार मां - बाप बने लोगों में यह संभावना 10 प्रतिशत से भी अधिक होती है कि वे अपने बच्चे को लेकर डिप्रेस हो जाएं। खासकर बच्चे के जन्म के बाद के 3 से 6 महीने की अवधि मां - बाप के लिए बहुत कष्टकारी होती है। महिलाओं को इस तरह के मानसिक अवसाद से खुद को बाहर निकाल पाना आसान नहीं होता। कई बार ऐसी हालत में वे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती हैं। इस अवसाद की कई वजहें हो सकती हैं। जैसे बच्चे की देखभाल के कारण नींद पूरी न होना , दिनचर्या अस्त - व्यस्त होना , दफ्तर या व्यवसाय में पूरा ध्यान न दे पाना या फिर बच्चे अथवा स्वयं की ही कोई बीमारी। 

भारत जैसे देशों में स्थिति और भी भयावह हो सकती है क्योंकि यहां माताओं की प्रसव पूर्व सेहत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। बच्चा पैदा होने के बाद उनकी शारीरिक - मानसिक सेहत कैसी रहेगी , यह देखने की कोई खास जरूरत यहां नहीं समझी जाती। शायद यही वजह है कि भारत उन देशों में शामिल है जहां मातृ मृत्यु दर काफी ज्यादा है। 

फिलहाल यह दर एक लाख माताओं में 212 है जो 2007-09 के 254 के मुकाबले कम है। संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डिवेलपमेंट लक्ष्य के मुताबिक 2015 तक इसे 109 तक लाकर ही राहत महसूस की जा सकती है। बच्चे के जन्म से पहले और बाद में यहां पुरुषों के अवसादग्रस्त होने का खतरा भले कम हो , लेकिन महिलाओं को तो हर हाल में सौ कष्ट सहने हैं। उन्हें तो यहां इसलिए भी कोसा जाता है कि उन्होंने लड़की क्यों जनी ? यह एक ताना ही उन्हें डिप्रेस करने के लिए काफी है(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,4.10.11)।

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपने अच्छा चेताया है .....आभार

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  2. बच्चे के जन्म से पहले और बाद में यहां पुरुषों के अवसादग्रस्त होने का खतरा भले कम हो , लेकिन महिलाओं को तो हर हाल में सौ कष्ट सहने हैं। उन्हें तो यहां इसलिए भी कोसा जाता है कि उन्होंने लड़की क्यों जनी ? यह एक ताना ही उन्हें डिप्रेस करने के लिए काफी है(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,4.10.11)।

    Aapki post Pyari maa blog par bhi pesh ki ja rahi hai Sabhar ...

    pyarimaan.blogspot.com

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  3. आज कुमार राधा रमण जी की पोस्ट साभार पेश की जा रही है और साथ में एक फोटो जो मीनाक्षी पंत जी के ब्लॉग से लिया गया है :
    http://pyarimaan.blogspot.com/2011/10/blog-post_05.html

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  4. मैंने यह ब्लॉग आज ही देखा , स्वास्थ्य संबंधी इतनी बढ़िया जानकारी देने के लिए शुक्रिया । नियमित पढ़ना चाहूंगी ।

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  5. बढ़िया पोस्ट...
    समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  6. स्थिति सचमुच में चिन्तनीय है।

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  7. बेहतरीन जानकारी राधारमण जी , बहुत बहुत शुक्रिया । आपके ब्लॉग पर एक अलार्म फ़िट कर देता हूं ताकि नियत समय पर आकर आपका ब्लॉग पढा जा सके वैसे झांक तो मैं जाता ही हूं रोजिन्ना

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