सोमवार, 19 सितंबर 2011

मिलावटी दूध कहीं कर न दे किडनी फेल

कंज्यूमर वायस की स्टडी की मानें तो अब पैकेटबंद दूध से भी बीमारी हो सकती है। इस स्टडी में कई बड़े ब्रांड तक फेल हो गए और पाया गया कि सही तापमान मेंटेन न होने की वजह से पैकेट वाले दूध में कई बैक्टीरिया पनप जाते हैं जिनसे कई बीमारियां हो सकती हैं। इस रिपोर्ट के मद्देनजर यह जानना जरूरी है कि घरों तक पहुंच रहा दूध कितना सुरक्षित है? लोगों तक शुद्ध व पौष्टिक दूध पहुंचता भी है या नहीं? 

राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में मिलावटी दूध की आपूर्ति बड़े पैमाने पर हो रही है। यही नहीं, जिस पॉली पैक में दूध की आपूर्ति हो रही है वह भी इसे जहरीला बना रहा है। पिछले दिनों कंज्यूमर वॉइज संस्था ने १२ बड़ी कंपनियों के दूध के सैंपल लिए थे। इनमें से एक भी कंपनी का दूध स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं पाया गया। जांच में इन कंपनियों के दूध में मानक से अधिक बैक्टीरिया पाए गए, जो दूध की पौष्टिकता को नष्ट करने के लिए पर्याप्त थे। इन कंपनियों के आधा लीटर दूध के पैकेट में मानक से करीब १० गुना अधिक पैथाजीन, टोटल प्लेट काउंट, कोलिफार्म जैसे माइक्रोबायोलॉजिकल तत्व पाए गए, जो पेट के लिए बेहद नुकसानदायक हैं। कंपनियों के प्लांट में पैकिंग के बाद बाजार तक पहुंचते-पहुंचते दूध में माइक्रोबायोलॉजिकल तत्व उत्पन्न हो जाते हैं। 

दूध के पैकेट को प्लांट से उपभोक्ता तक पहुंचने में कम से कम छह घंटे लग जाते हैं। संरक्षण के दोयम दर्ज की प्रक्रिया के कारण तब तक दूध में बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाता है। दूध को हमेशा -८ डिग्री सेंटीग्रेड पर संरक्षित किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होने के कारण दूध पैथाजीन, टोटल प्लेट काउंट, कोलिफार्म जैसे बैक्टीरिया के प्रभाव में आ जाता है। पैथाजीन, टोटल प्लेट काउंट व कोलिफार्म की वजह से पेट में दर्द, अपच, उल्टी, दस्त होने के साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है। पॉली पैक दूध के अलावा बड़े पैमाने पर लोग मिलावटी दूध भी पी रहे हैं। इससे स्थाई रूप से पेट व किडनी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। दिल्ली मेडिकल काउंसिल के सदस्य डॉ. अनिल बंसल के मुताबिक राजधानी में मिलने वाले दूध में बड़े पैमाने पर मिलावट की खबर आती रहती है। 

मिलावटखोर दूध में यूरिया और चूना जैसे तत्व मिलाते हैं, जो बेहद नुकसानदायक हैं। यह पेट खराब होने से लेकर किडनी तक को प्रभावित कर सकते हैं। डॉ. अनिल बंसल के अनुसार हमारा शरीर यूरिया उत्पादित करता है। यह शरीर का बेकार पदार्थ है, जिसे किडनी शरीर से बाहर निकालती है। यूरिया मिश्रित दूध पीने की वजह से शरीर में यूरिया की मात्रा बढ़ जाएगी, जो लंबी अवधि में किडनी को भी फेल कर सकती है। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन, जनकपुरी शाखा के पूर्व अध्यक्ष व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश महाजन के अनुसार, दूध में मिलावट करने के लिए बड़े पैमाने पर चूने का प्रयोग किया जाता है। चूना मिला दूध पीने के कारण उल्टी, दस्त, अपच, एलर्जी जैसी समस्याएं स्थायी रूप से हो सकती हैं। मिलावटी दूध की वजह से शरीर में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन आदि की कमी हो जाती है, जिससे बच्चों का सही विकास नहीं होता और महिलाओं की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। 

जयपुर गोल्डन अस्पताल के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. कैलाश सिंगला के अनुसार हैवी मेटल की वजह से गैस्ट्राइटिस, कोलाइटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, डायरिया, कैल्शियम की कमी जैसी बीमारी के शिकार दिल्ली वाले हो रहे हैं। दूध उबाल कर पीएं : कच्चे दूध को ४५ डिग्री सेंटीग्रेड पर कम से कम २० मिनट तक उबालना चाहिए। इससे दूध के अंदर के बैक्टीरिया, फंगस, यीस्ट व कोलिफार्म समाप्त हो जाते हैं। लेकिन पैकेटबंद दूध इस कदर जहरीला हो जाता है कि २० मिनट तक इसे उबालने पर इसकी पोषकता भी नष्ट हो जाती है। दूध में मौजूद बीटा लैक्टोग्लोबिन नामक प्रोटीन के समाप्त होने के कारण प्रोटीन की कमी बनी रहती है(संदीप देव,नई दुनिया,दिल्ली,18.9.11)।

7 टिप्‍पणियां:

  1. पता नहीं कौन क्या बेच रहा है? बड़ा डर लगता है आजकल।

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  2. जानकारी वर्धक पोस्ट.... अंत में मिली जानकारी अच्छी लगी की दूध को कितने तापमान पर रखना और उबालना चाहिए धन्यवाद
    कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  3. पता नहीं चलता है कि इस मिलावट से कैसे बचें ..........आगाह करने के लिए आभार आपका

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  4. जानकारी वर्धक पोस्ट आभार .......

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  5. पैकेट बंद दूध pasteurized होता है । फिर २० मिनट उबलने की क्या ज़रुरत है ? वैसे आजकल किसी भी चीज़ का कोई भरोसा नहीं । सब राम भरोसे ही चल रहा है ।

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  6. Doctor T.S. daral ki baat to sahi hai....20 minute tak ubaalne ki zaroorat kya hai ...

    bhai saab, main soch raha tha sehat kaise banau... yahan to pata chal raha hai ke sab kuch milavati h..

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