सोमवार, 5 सितंबर 2011

एम्स में जीन मैपिंग से कीमोथेरैपी की पीड़ा से मिलेगी राहत

कैंसर के मरीजों के लिए राहत वाली खबर है। एम्स में कैंसर पीड़ित जीन मैपिंग पद्धति का लाभ ले सकेंगे। फिलहाल ब्रेस्ट कैंसर पीड़ितों की इस पद्धति से जांच की जा रही है। आने वाले दिनों में इस पद्धति से अन्य प्रकार के कैंसर पीड़ितों की जांच भी होगी। इस पद्धति से बीमारी के शुरुआती चरण में पहचान संभव होती है। साथ ही बीमारी किस स्तर तक पहुंच गई है, इसकी सटीक जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है। ऐसे में कीमोथेरैपी के बजाय हॉर्मोन देकर भी कैंसर पीड़ितों का इलाज संभव होगा। डॉक्टरों का दावा है कि इस पद्धति के प्रचलन में आने पर लगभग 50 प्रतिशत मरीजों को कीमोथेरैपी की पीड़ा और उसके बाह्य प्रभाव से मुक्ति मिल सकती है। एम्स के कैंसर विभाग के एक प्रोफेसर ने बताया कि इस पद्धति से जीन सिग्नेचर को पकड़ा जाता है। ऐसे में पता लगाना संभव हो जाता है कि ब्रेस्ट कैंसर किस स्टेज में है। साथ ही हम यह भी पता लगाते हैं कि ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी के बाद मरीज को कीमोथेरैपी की जरूरत है या सिर्फ हॉर्मोन से ही काम चल जाएगा। बता दें कि कीमोथेरैपी या हॉर्मोन नहीं देने पर दोबारा कैंसर बनने का खतरा बरकरार रहता है। उन्होंने बताया कि अमूमन सभी मरीज को सर्जरी के बाद कीमोथेरैपी दी जाती है। लेकिन, नए टेस्ट में अगर हॉर्मोन रिसेप्टर पॉजिटिव आता है तो मरीज को सिर्फ हार्मोन देने की जरूरत होती है। उनका कहना है कि अगर कैंसर पीड़ित की सही स्टेज का पता चल जाए तो शुरुआती चरण वाले मरीजों को केवल हॉर्मोन, मिडिल वाले को हॉर्मोन के साथ कीमोथेरैपी और एडवांस स्टेज वाले को कीमोथेरैपी देनी पड़ेगी। उनका कहना है कि इस पद्धति से शुरुआती चरण को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन दूसरे चरण की पहचान के लिए तकनीक पर अनुसंधान चल रहा है। कितने प्रकार की होती है जांच जीन मैपिंग यानी जेनेटिक जांच दो तरह की होती है। प्रथम, आंकोटाइप डीएक्स (21 जीन सिग्नेचर) और दूसरा मैमाप्रिंट (17 जीन रिसेप्टर)। महंगी है जांच : इस पद्धति से जांच करने में करीब तीन लाख रुपए का खर्च आता है। लेकिन पद्धति का इस्तेमाल बढ़ने पर खर्च में कमी आती है( दैनिक भास्कर, दिल्ली,5.9.11)।

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