उत्तराखंड में औषधीय गुणों वाली दुर्लभ और सामान्य प्रजातियों की जड़ी बूटियों को संरक्षित करने के लिए सात जिलों में जीन बैंकों ने काम करना शुरू कर दिया है। इन बैंकों में दुर्लभ प्रजातियों की जड़ी बूटियों को संरक्षित करने का काम शुरू कर दिया गया है। राज्य में उद्यान और जड़ी बूटी औषधि पादप बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी तथा राज्य सरकार के अपर सचिव विद्याशंकर पांडेय ने बताया कि जीन बैंक बनाने की योजना वर्ष 2009 में शुरू की गई थी। पांडेय ने बताया कि अब तक सात जिलों के वन क्षेत्रों में जीन बैंक काम शुरू कर चुके हैं। इनमें कई दुर्लभ प्रजाति की जड़ी बूटियों को संरक्षित भी किया जा चुका है। इन बैंकों में उन जड़ी बूटियों के दोहन पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालांकि शोध तथा प्रजाति की मात्रा को और अधिक विकसित करने के लिए सीमित तरीके से उनके दोहन की अनुमति दे दी जाती है। उन्होंने बताया कि टिहरी जिले के गंगी, उत्तरकाशी के कंडारा, बागेश्वर के झूनी, पिथौरागढ़ के खलिया, चमोली जिले के मंडल, अल्मोड़ा के मोहान और चंपावत के बतिया इलाके में 200 हेक्टेयर क्षेत्र में इन बैंकों को शुरू किया गया है। इसके साथ साथ
1,500 से 2,000 हेक्टेयर क्षेत्र में औषधीय जड़ी बूटी को और अधिक विकसित करने के लिए नर्सरी भी बनाई गई है। पांडेय ने बताया कि राज्य में करीब 700 किस्म की सामान्य और दुर्लभ जड़ी बूटियां हैं। जड़ी बूटियों का उपयोग प्राचीन काल से ऐसी दवाओं को बनाने के लिए किया जाता रहा है जिससे असाध्य रोग भी ठीक हो सकते हैं(दैनिक जागरण,देहरादून,29.8.11)।
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