शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

पंचकर्म

पंचकर्म का प्रयोजन
पंचकर्मस्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं सौंदर्य संवर्धन व रुग्ण के व्याधि निर्मूलन के लिए किया जाता है।

स्वस्थ व्यक्ति में पंचकर्म : स्वस्थ शरीर मन और बुद्घिपरक प्रयोजन।

रुग्णों में पंचकर्म : व्याधिनुसार पंचकर्म, चिकित्सापरक पंचकर्म।

रसायन : वाजीकरण प्रयोग से पूर्व पंचकर्म, स्वास्थ्य संरक्षण व व्याधि प्रतिषेधनार्थ एवं उत्तम संतान प्राप्ति हेतु पंचकर्म।
-जनपदोध्वंस (एपिडेमिक्स) में पंचकर्म।
-अष्टांग आयुर्वेद में पंचकर्म।

स्वस्थ व्यक्ति में पंचकर्म -स्वस्थ व्यक्ति में स्वास्थ्य संरक्षण, व्याधियों को रोकने और सौंदर्य वर्धन के लिए पंचकर्म के विधान का वर्णन है। इसके निम्न प्रयोजन हैं-

दिनचर्या में पंचकर्म : दिनचर्या के अनुसार प्रतिदिन अभ्यंग, उद्वर्तन, मूर्धतौल, अंजन, प्रतिमर्श नस्य, कर्णपुरण्य, पादाभ्यंग आदि पंचकर्म के अंतर्गत वर्णित हैं। इन कर्मों के नियमित प्रयोग से व्यक्ति स्वस्थ, बलवान और सुदृढ़ बनता है।

ऋतुचर्या में पंचकर्म : आयुर्वेद का एक अतिमहत्वपूर्ण सिद्घांत ऋतु परिवर्तनजन्य विकार व उनका प्रतिषेध है। अलग-अलग ऋ तुओं में वात, पित्त और कफ का संचय, प्रसार और प्रकोप प्राकृतिक रूप से होता है। इन दोषों को प्रकोपजन्य विकारों (जैसे अस्थमा, एलर्जी, एसिडिटी, माइग्रेन, साइनसाइटिस, पेट के विकार, जोड़ों का दर्द आदि) से बचाव के लिए प्रत्येक ऋ तु के अनुसार दोष का शरीर से पंचकर्म चिकित्सा द्वारा निर्हरण किया जाता है।

वर्षा ऋतु में प्रकुपित वात दोष का बस्ति कर्म द्वारा निर्हरण। शरद ऋतु में प्रकुपित पित्त दोष का विरेचन कर्म द्वारा निर्हरण। बसंत ऋतु में प्रकुपित कफ दोष का वमन कर्म द्वारा निर्हरण।

वेगारोधजन्य लक्षणों में पंचकर्मः
देर रात तक जागना और सुबह देर से उठना अधिकतर लोगों की जीवनशैली में शामिल हो चुका है। इसके कारण मल-मूत्रादि प्राकृतिक वेगों का उचित समय पर शरीर से निष्कासन नहीं हो पाता है। इसके अलावा,लंबे समय तक चलने वाली मीटिंग्स और ट्रैफिक आदि के कारण भी मल-मूत्रादि धारण करके रखना पड़ता है। अधारणीय वेगों को लंबे समय तक धाररण करना अनेक प्रकार की कष्टप्रद व प्राणघातक व्याधियों के कारण बन जाते हैं। परिस्थितिवश मल-मूत्रादि अधिक समय तक शरीर में धारण करने से जो लक्षण या व्याधियां उत्पन्न होती हैं,उनके निवारणार्थ अभ्यंग,स्वेदन बस्ति आदि उपकर्म पंचकर्म के अंतर्गत स्पष्ट किए गए हैं(डॉ. प्रीति कुलकरणी,सेहत,नई दुनिया,जुलाई 2011 प्रथमांक)

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