रविवार, 12 जून 2011

देश में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा की हालत खराब

योग को लेकर देश में एक तरफ निजी क्षेत्र एवं योग गुरुओं का बोलबाला बढ़ रहा है। योग पद्धति विदेशों में फैलती जा रही है। वहीं सरकारी क्षेत्र में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का बुरा हाल है। हालत यह है कि देश के आठ राज्यों में एक अदद योग केंद्र खोलने की सालों पुरानी योजना को आज तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। हाल ही में सरकार द्वारा कराए गए एक सव्रे से पता चला है कि कई रोगों के इलाज के लिए लोग योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा ले रहे हैं। कई मर्ज ऐसे भी है जिनका दूसरी पद्धति में उपचार ही नहीं है। बावजूद इसके स्वास्थ्य मंत्रालय में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा पूरी तरह से उपेक्षित है। सरकार ने पांच प्रमुख देशी पद्धतियों को प्रोत्साहित करने के लिए आयूस (आयुव्रेद, योग, यूनानी, सिद्धा एवं होम्योपैथी) नामक एक अलग विभाग बनाया है। स्थास्थ्य सचिव के समकक्ष अलग से सचिव (आयूस) की नियुक्ति कर दी गई थी मगर स्वास्थ्य का नब्बे फीसद से ज्यादा बजट अंग्रेजी (ऐलोपैथी) पद्धति के हिस्से में चले जाने के कारण मंत्रालय का नया महकमा कुछ खास नहीं कर पा रहा है। अधिकांश परियोजनाएं धन के आभाव में ज्यों की त्यों पड़ी हैं। सबसे ज्यादा उपेक्षा योग की हो रही है। जबकि इस समय देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भारतीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा की मांग है। लेकिन सरकार इस मांग को पूरा नहीं कर पा रही है जिसका भरपूर फायदा निजी क्षेत्र और योग गुरु उठा रहे हैं। केंद्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा परिषद ने आठ राज्यों में योग अनुसंधान केंद्रों की स्थापना पर विचार शुरू किया था मगर अभी तक केवल झज्जर (हरियाणा) के निकट देवारखाना एवं मांडया (कनार्टक) के निकट नागमंगला में जमीन आवंटित हुई है। उड़ीसा सरकार ने एक केंद्र की स्थापना का प्रस्ताव परिषद के पास भेजा था मगर अभी तक उस पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। इस प्रस्ताव के लिए केंद्र सरकार ने 20 एकड़ जमीन की मांग की है। जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार एवं उत्तराखंड में योग अनुसंधान केंद्रों की स्थापना के प्रस्तावों को भी ताक पर रख दिया गया है। आयूस के तहत आने वाली पांच पद्धतियों के देश भर में कुल 91 केंद्र व परिषदें हैं। इनमें योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा का मात्र एक केंद्र दिल्ली में है उसमें भी कई काम लंबित पड़े हुए हैं। देश भर में सर्वाधिक 31 केंद्र आयुव्रेद के हैं। उसके बाद होम्योपैथी के 30, यूनानी पद्धति के 23 और सिद्धा के छह केंद्र हैं। हालांकि आयुव्रेद में भी आठ राज्य और छह केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां आयुव्रेद का एक भी केंद्र नहीं है। ये हैं हरियाणा, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, झारखंड, गोवा, चंडीगढ़, दादर, दमन, लक्षद्वीप एवं पुड्डुचेरी। देशी पद्धतियों के सर्वाधिक 10 केंद्र उत्तर प्रदेश में हैं। मगर राज्य में कोई भी योग केंद्र नहीं है। इसी तरह हरियाणा, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, चंडीगढ़, दादर, दमन एवं लक्षद्वीप में एक भी होम्योपैथी का अनुसंधान केंद्र नहीं है(ज्ञानेन्द्र सिंह,राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,12.6.11)।

3 टिप्‍पणियां:

  1. संस्कृत की तरह यह भी विलुप्त होने के कगार पर है.

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  2. चिन्ता का विषय है.

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  3. विदेशों में योग पूर्णतः कमर्शियल है इसलिए फैल रहा है ... फेशन से शुरू हो कर आज जीवन का अंग बन रहा है ... अपने देश में ब ही कुछ ऐसा ही करना होगा ... इस दिशा में सरकार कुछ नही करेगी उसे इसमे सांप्रदायिकता नज़र आने लगी है ...

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