मंगलवार, 28 जून 2011

कामकाजी वर्ग में बढ़ रहा है बांझपन

मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से नपुंसकता की बात नई नहीं है, लेकिन दिल्ली के एक टेस्ट्यूबबेबी सेंटर के क्लिनिकल शोध में इसकी बहुत हद तक पुष्टि हुई है। क्लिनिक में बच्चे की चाहत लेकर पहुंचने वाले दंपत्तियों में से ३५ से ४० फीसदी पुरूषों के वीर्य में शुक्राणुओं की मात्रा कम पाई गई है। इनके शुक्राणुओं की क्षमता में ३० फीसदी तक कमी देखी गई। इनमें अधिकांश ऐसे पुरूष हैं जो बीपीओ, कॉल सेंटर, मार्केटिंग, मेडिकल रिप्रजेंटेटिव और जनसंपर्क के क्षेत्र में काम करने वाले लोग हैं।

दिल्ली में कैलाश कालोनी स्थित आईसस आईवीएफ सेंटर की निदेशक डॉ. शिवानी सचदेव गौड़ ने बताया कि हर महीने करीब ३० जोड़े बांझपन की शिकायत लेकर आते हैं। इसमें ४० फीसदी मामलों में पुरूषों में, ४० फीसदी मामलों में महिलाओं में और २० फीसदी मामलों में दोनों में ही कमियां पाई गई हैं। जिन पुरूषों के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी होती है या शुक्राणुओं की गति कम होती है उनमें अधिकांश मोबाइल का अधिक उपयोगकर्ता पाए गए हैं।

डॉ. शिवानी के अनुसार, ऐसे पुरुषों के मोबाइल उपयोग का संदेह इससे भी होता है कि शुक्राणुओं के कमजोर या कम होने के बारे में अन्य सभी तरह का जांच कराने पर सबकुछ सामान्य आता है। फिर ऐसा लगता है कि इनके बांझपन का कारण टॉक्सिन है, जो फोन पर अधिक बात करने के कारण हो सकता है। 


डॉ. शिवानी के अनुसार, हाल ही में कनाडा की क्विंस यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने एक शोध किया, जिसमें यह पाया कि मोबाइल फोन के अत्यधिक प्रयोग से पुरूषों के शुक्राणुओं में कमी हो जाती है और वे कमजोर हो जाते हैं। यही नहीं, मोबाइल फोन के अत्यधिक प्रयोग से गतिशीलता व एकाग्रता में भी कमी आती है, जिससे प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। इससे शुक्राणुओं की गुणवत्ता में भी कमी आती है। 

वैज्ञानिकों ने अपने शोध में यह भी पाया है कि जो लोग सेल फोन का उपयोग अधिक करते थे उनके हार्मोन भी निचले स्तर के थे। इन हार्मोन का काम मस्तिष्क के पिट्यूटरी ग्रंथि के स्तर को बनाए रखता है, जो दिमाग को संतुलित रखते हैं। सेल फोन से जो विद्युत चुंबकीय किरणें निकलती है उससे हार्मोन का स्तर और प्रजनन क्षमता दोनों गिर जाता है(नई दुनिया,दिल्ली,28.6.11)।

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