नींद में लगातार अनियमितता बनी रहने से पीड़ित व्यक्ति अगले दिन तनावग्रस्त महसूस करता है और लगातार सिरदर्द की भी शिकायत रहती है। वहीं इससे स्मरणशक्ति कमजोर होने की आशंका भी बढ़ जाती है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि खर्राटों की वजह से नींद पूरी न हो पाने से कई स्वास्थ्य समस्याओं को न्यौता मिलता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही बीमारियों के बारे में..
हाई ब्लड प्रेशर
स्लिप एप्निया से पीड़ित व्यक्ति को नींद में सांस लेने में होने वाली परेशानियों के चलते शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। इससे अनावश्यक तनाव की स्थिति बनती है और पीड़ित हाइपरटेंशन यानी हाई बीपी का शिकार हो जाता है।
ऐसे में शरीर का सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम (एसएनएस) कमजोर पड़ने लगता है। इसकी मुख्य भूमिका तनाव को नियंत्रित करने में सहायक नोराड्रेनेलिन हार्मोन को सक्रिय करने की होती है। ऐसा नहीं हो पाने से व्यक्ति के तनावग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है।
हृदय रोग
एक शोध में पाया गया है कि स्लिप एप्निया से पीड़ित 50 फीसदी मरीजों को हार्ट अटैक रात के समय या सुबह के समय ही आता है, क्योंकि वे नींद में ठीक प्रकार से सांस नहीं ले पाते हैं। इससे ऑक्सीजन की पूर्ति ठीक ढंग से नहीं हो पाती है और शरीर में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ने लगती है। ऐसे में रक्त वाहिकाओं पर अनावश्यक दबाव पड़ता है, जिससे हृदय रोगों या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
टाइप 2 डायबिटिज
स्लिप एप्निया और टाइप 2 डायबिटिज के बीच गहरा संबंध है। टाइप 2 डायबिटिज से पीड़ित 80 फीसदी लोगों को स्लिप एप्निया की समस्या होती ही है। विशेषज्ञ कहते हैं कि जब व्यक्ति चैन की नींद सोता है, तभी उसका शरीर इंसुलिन का अवशोषण ठीक प्रकार से कर पाता है। नींद की कमी वास्तव में इंसुलिन प्रतिरोधक का काम करती है, जिससे डायबिटिज का खतरा बढ़ जाता है।
अस्थमा
जिन लोगों को अस्थमा की समस्या होती है, उनके नींद संबंधित गड़बड़ियों या स्लिप एप्निया से पीड़ित होने की आशंका भी अधिक होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी के चिल्ड्रन्स मेडिकल सेंटर में अस्थमा से पीड़ित महिलाओं पर किए गए शोध में सामने आया है कि अस्थमा होने पर स्लीप एप्निया का खतरा दो गुना तक बढ़ जाता है। वहीं अस्थमा के जो मरीज दिन के समय नींद लेते हैं, उनकी रात की नींद अक्सर खराब होती ही है।
वजन बढ़ना
स्लिप एप्निया से पीड़ित व्यक्ति के एंडोक्राइन सिस्टम पर नकारात्मक असर पड़ता है। साथ ही ग्रेहलीन नामक हार्मोन की सक्रियता बढ़ने से पीड़ित का मन काबरेहाइड्रेटयुक्त और मीठे खाद्य पदार्थो को खाने का अधिक करता है।
भोजन की इन गड़बड़ियों के चलते नींद का पैटर्न भी गड़बड़ होने लगता है। ऐसे में पीड़ित के शरीर में एक्सरसाइज के लिए जरूरी एनर्जी नहीं बचती है और अतिरिक्त कैलोरी फैट में तब्दील हो जाती है, जिससे वजन बढ़ने की समस्या होने लगती है(दैनिक भास्कर,जम्मू,25.6.11)।
अच्छी और लाभप्रद जानकारी से भरी पोस्ट ,आभार.......
जवाब देंहटाएंजानकारी उपलब्ध कराती बढ़िया पोस्ट....
जवाब देंहटाएंbariya prayAS
जवाब देंहटाएंसुखी वही है जिसे नींद अच्छी आती है ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी ।
अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई है आपने।
जवाब देंहटाएंThanks for this informative post.
जवाब देंहटाएंमगर यह भी सुनिए:-
"घोड़े भी न बिकते" तो में सो लेता था बचपन में,
अब हो गया 'खुर्राट' जो पहुंचा हूँ मैं पचपन में,
इक दिन जो न 'खर्राटे' भरे मैंने तो यारों,
दफ़नाने चले बाँध के वो मुझ को कफ़न में.
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