शुक्रवार, 20 मई 2011

युवाओं में तेज़ी से बढ़ रहा है मधुमेह

असंतुलित जीवन के चलते मधुमेह बड़ी तेजी से लोगों को अपना शिकार बनाता जा रहा है। बुजुर्ग ही नहीं, युवा वर्ग भी तेजी से इसकी चपेट में आता जा रहा है।

वर्तमान में पांच करोड़ से अधिक भारतीय इस बीमारी से ग्रस्त हैं और यह आशंका भी जताई जा रही है कि अगले दो दशकों में ही यह आंकड़ा दोगुना हो जाएगा, लेकिन अगर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की मानें तो फिलहाल इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ये आंकड़े बेमानी हैं और सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के पास इस बीमारी से संबंधित सटीक जानकारी ही नहीं है।

आईसीएमआर में छपे एक लेख में खुलासा किया गया है। इसके मुताबिक मधुमेह की जडें़ काफी गहरी हैं। ढाई हजार वर्ष पहले भी इस बीमारी के साक्ष्य भारत में मिले हैं, लेकन साठ के दशक से इस बीमारी ने गति पकड़ी और अब महामारी की ओर अग्रसर है। लेकिन, बीमारी किस स्तर तक पहुंच गई है इसके लिए अब तक राष्ट्रीय स्तर कोई भी न तो कोई अध्ययन किया गया है और न ही कोई सर्वे।

बीते पचास वर्षो में बहु-स्थानीय स्तर पर केवल छह सर्वे किए गए हैं। वर्ष 1970 में आईसीएमआर ने ऐसा ही एक सर्वे किया था, लेकिन इसमें केवल छह स्थानों को ही शामिल किया गया था। जबकि, बीते चालीस वर्षो में भारत की आबोहवा और जनसंख्या का प्रारुप भी काफी बदल गया है। ऐसे में इस सर्वे के आंकड़ों का अब कोई औचित्य नहीं रह गया है।


वर्ष 2001 में नेशनल अरबन डाइबिटिक सर्वे संस्था द्वारा भी एक सर्वे किया गया था, लेकिन इसका दायरा भी सीमित था। इसी प्रका, वर्ष 2004 में द प्रिवेलेंस ऑफ डाइबिटीज इन इंडिया और वर्ष 2008 में विश्व स्वास्थ्य संगठन व आईसीएमआर ने संयुक्त रूप से रिस्क फैक्टर सर्विलांस स्टडी की थी। 

लेकिन, कोई भी सर्वे राष्ट्रीय स्तर पर नहीं किया गया है, यानि इनमें सभी राज्यों, शहरों और गांवों को शामिल नहीं किया गया है। लेख के मुताबिक इन अध्ययनों में कई तरह की खामियां हैं, मसलन अध्ययन में शामिल लोगों की संख्या सीमित होना, जांच रिपोर्टों के विभिन्न मानक, परिणामों का अपूर्ण लेखा-जोखा, शारीरिक प्रारूप व भोजन पैटर्न के विश्व स्तरीय मानकों को नजरअंदाज करना आदि। इतना ही नहीं, बीमारी की जटिलताओं से संबंधित जनसंख्या आधारित कोई विस्तृत अध्ययन भी नहीं किया गया है। 

सही आंकड़ों के अभाव के चलते बीमारी की गंभीरता और इसकी जटिलताओं के बारे स्पष्ट में आंकलन करना काफी मुश्किल है। साथ ही बीमारी पर काबू पाने के लिए योजनाएं बनाना भी काफी कठिन हो रहा है।

"कुछ महीने पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर एक अध्ययन शुरू किया गया है। उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ ही चंडीगढ़ व झारखंड में अध्ययन इस वर्ष पूरा हो जाएगा। इसमें सभी राज्यों के शहरी एवं ग्रामीण इलाकों को शामिल किया जा रहा है।"

डॉ. वीएम कटोच,
आईसीएमआर के महानिदेशक
(धनंजय कुमार,दैनिक भास्कर,दिल्ली,20.5.11)

2 टिप्‍पणियां:

  1. इसलिए कहते हैं की प्रशंसा की खीर के साथ आलोचना की कड़वी खुराक भी लेते रहना चाहिए युवा ब्लोगरों को. कम-स-कम ब्लॉग जगत के युवा तो मधुमेह से मुक्त रहें.

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