शनिवार, 28 मई 2011

एम्स और आर्मी रिसर्च एंड रेफरल इंस्टीट्यूट एंड हॉस्पिटल का दावा : स्टेमसेल के जरिए जुड़ेंगी हड्डियां!

अगर डॉक्टरों के इस दावे पर यकीन किया जाए तो निकट भविष्य में हड्डियों की चोट का इलाज बांह पर एक छोटा सा इंजेशक्शन लगाकर किया जा सकेगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एवं आर्मी (रिसर्च एंड रेफरल) इंस्टीट्यूट एंड हॉस्पिटल के वैज्ञानिक एक ऐसी स्टेम सेल तकनीक का परीक्षण कर रहे हैं जिसमें रोगी के शरीर में स्टेम सेल्स को इंजेक्ट कर मैग्नेट की मदद से निर्देशित किया जाएगा। यह स्टेम सेल बीमारी के समीप या कहें क्षतिग्रस्त हड्डी के पास पहुंचने के बाद हड्डी और उपास्थि में बदल जाएगी। आर्मी (आरआर) इंस्टीट्यूट एंड हॉस्पिटल के अस्थि शल्यक्रिया विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. वीपी चतुव्रेदी के मुताबिक ‘हमारा मकसद हड्डी और उपास्थि की मरम्मत करना है। हमने चूहों में नई हड्डी उगाने में सफलता पा ली है। अब इस विधि में बकरी की क्षतिग्रस्त अस्थियों की मरम्मत करने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ समय के अन्तराल के भीतर इसके मानवीय परीक्षण शुरू हो जाएंगे। इस तकनीक में उन स्टेम सेल्स का प्रयोग किया जाता है, जिनमें दूसरे सेल्स के रूप में परिवर्तित होने की क्षमता होती है। इन्हें उसी व्यक्ति के बोन मैरो से लिया जाएगा, जिन्हें इन्हें इजेक्ट किया जाता है। शरीर में इंजेक्ट करने से पहले इन स्टेम सेल्स पर मैग्नेटिक कणों के जरिए एक परत चढ़ाई जाती है। एक मैग्नेट ब्रेसलेट की मदद से इस स्टेम सेल को शरीर के उस हिस्से तक पहुंचाया जाएगा, जो क्षतिग्रस्त है। यही चुंबकीय क्षेत्र को हड्डी या उपास्थि के रूप में परिवर्तित होने में मदद करेगा। इस तकनीक की मदद से फ्रैक्चर और जोड़ों के रिप्लेसमेंट जैसे मामलों में क्रांतिकारी बदलाव आने की उम्मीद है। डा. चतुव्रेदी के मुताबिक डॉक्टर मरीजों को स्टेम सेल का इंजेक्शन लगाएंगे और इसके बाद रोगी अपने घर जा सकता है। यानी उन्हें अस्पताल में होने वाले महंगे खर्च से भी निजात मिल जाएगी। उन्होंने कहा, ‘यह बहुत ही सस्ता इलाज होगा, इसमें महंगी दवाइयों की जरूरत नहीं पड़ेगी। हम इसके सकारात्मक नतीजों को लेकर उत्साहित हैं।’ आरआर हास्पिटल में आयोजित आथरेकॉन-2011 में इस तकनीक का लाइव प्रदर्शन किया गया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश व यूरोप के कुछ मेडिकल कॉलेजों के वैज्ञानिक इस समय कूल्हों की चोट के इलाज में स्टेम सेल तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। एम्स व आर्मी बेस्ड हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में अभी तक यह तकनीक अपने या फिर दानदाता के स्टेमसेल पर आधारित है। अभी तक हड्डियों को जोड़ने के लिए मेटल प्लेट्स व पिन का इस्तेमाल किया जाता है(ज्ञानप्रकाश,राष्ट्रीयसहारा,दिल्ली,28.5.11)।

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