मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

बच्चों में रोटावायरस डायरिया

रोटावायरस छोटे बच्चों में डायरिया होने का एक प्रमुख कारण है। डायरिया से दुनिया में हर साल पांच लाख से भी अधिक बच्चों की मौत हो जाती है। हालांकि ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट यानी (ओआरएस) जैसे सस्ते उपाय से इसका उपचार हो सकता है। फिर भी इस रोग की वजह से बच्चों की मृत्यु जारी है। जन-स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक 6 महीने से कम आयु के बच्चों का टीकाकरण इस मर्ज से बचाव का एक आसान तरीका है, जिससे इन मौतों को रोका जा सकता है। जून 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन भी दुनिया भर में शिशुओं को रोटावायरस का टीका लगाने की सिफारिश कर चुका था। पिछले 4 सालों से दो ओरल रोटावायरस वैक्सीन विश्व बाजार में उपलब्ध हैं। ये टीके भारत के निजी क्षेत्र में पहले से ही उपलब्ध हैं और आम तौर पर शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ नवजात शिशुओं के माता-पिता को इस टीके को लगाने की सलाह देते हैं, किंतु दुखद बात यह है कि जिन बच्चों को सबसे अधिक जोखिम है उनकी पहुंच इस रोटावायरस वैक्सीन तक नहीं है। भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में रोटावायरस वैक्सीन को शामिल करने के बारे में अभी तक दुविधा बरकरार है। 
"देश में निर्मित रोटावायरस वैक्सीन के आने के बाद इस बारे में तुरंत फैसला करना और भी जरूरी हो गया है। यह वैक्सीन भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई है और भारतीय टीका कंपनियां इसका उत्पादन करेंगी। बहरहाल, राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में रोटावायरस वैक्सीन को शामिल करने से देश में डायरिया से होने वाली 44,000 मौतों को हर साल कम किया जा सकेगा। इसलिए देश के सबसे गरीब और सबसे जरूरतमंद बच्चों के लिए यह जीवन बचाने वाला टीका सुलभ कराना सरकार और हम सभी प्रबुद्ध लोगों की जिम्मेदारी है"- डॉ. नवीन ठक्कर गांधीधाम, कच्छ (गुजरात) पूर्व अध्यक्ष-इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (दैनिक जागरण,26.4.11)

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